Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित 313
दशसु नख- दर्पणेषु एकादश तनुधरं रूद्रम् ॥ १॥ नृत्यतश्च लीलापादोत्क्षेपेण कंपिता वसुधा । उच्छलन्ति समुद्राः शैला निपतन्ति तं हरं नमत ॥ २॥
अर्थः- उस 'हर महादेव" को तुम नमस्कार करो, जो कि प्रेम-क्रियाओं से क्रोधित हुई पार्वती के चरणों में (उसको प्रसन्न करने के लिये) झुका हुआ है और ऐसा करने से पार्वती के पैरों के दस ही नख-रूपी दस-दर्पणों में जिस (महादेव) का प्रतिबिम्ब पड़ रहा है और यों जो (महादेव) दस नखों में दस शरीर वाला प्रतीत हो रहा है और ग्यारहावां जिस (महादेव) का खुद का (मूल) शरीर है, इस प्रकार जिस (महादेव) ने अपने ग्यारह (एकादश) शरीर बना है; शरीर बना रखे है; ऐसे रूद्र शिव को तुम प्रणाम करो ॥ १ ॥
'विलक्षण' नृत्य ं करते हुए और क्रीड़ा-वशांत् पैरों को अचिंत्य ढंग से फेंकने के कारण से जिसने पृथ्वी को भी कंपायमान कर दिया है और 'नृत्य तथा क्रीड़ा' के कारण से समुद्र भी उछल रहे है, एवं पर्वत भी टूट पड़ने की स्थिति में है; ऐसे महादेव को तुम नमस्कार करो ।। २ ।।४-३२६ ।।
नादि - युज्योरन्येषाम् ॥४- ३२७ ।।
चूलिका - पैशाचिके पि अन्येषामानार्याणां मतेन तृतीय तुर्ययोरादौ वर्तमानयो र्युजि धातौ च आद्य-द्वितीयो न भवतः।। गतिः गति धर्मः धम्मो || जीमूतः जीमूतो ।। झर्झरः । झच्छरो ।। डमरूकः डमरूको।। ढक्का: ढक्का।। दामोदरः। दामोतरो।। बालकः। बालको।। भगवती । भकवती । नियोजितम् । नियोजित।।
अर्थः-अनेक प्राकृत-व्याकरण के बनाने वाले आचार्यों का मत है कि - चूलिका - पैशाचिक - भाषा में 'क' वर्ग से प्रारम्भ करे 'प' वर्ग तक के तृतीय अक्षर अथवा चतुर्थ अक्षर यदि शब्द के आदि में रहे हुए हों तो इनके स्थान पर सूत्र - संख्या ४- ३२५ से क्रम से प्राप्तव्य प्रथम अक्षर के तथा द्वितीय अक्षर की प्राप्ति नहीं होती है। अर्थात् तृतीय अक्षर के स्थान पर तृतीय ही रहेगा और चतुर्थ अक्षर के स्थान पर चतुर्थ अक्षर ही रहेगा। इसी प्रकार से 'जोड़ना - मिलाना' अर्थक धातु 'युज' में रह हुए 'जकार' वर्ण के स्थान पर 'चकार' वर्ण की प्राप्ति नहीं होगी । यों इन आचार्यों का मत है कि शब्द में अनादि रूप से और असंयुक्त रूप से रहे हुए वर्गीय तृतीय तथा चतुर्थ अक्षरों के स्थान पर क्रम से अपने ही वर्ग के प्रथम तथा द्वितीय अक्षर की प्राप्ति होती है। उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) 'ग' का उदाहरण :गतिः=गती=चाल। (२) ‘घ' का उदाहरण :- धर्मः = घर्मः=घम्मो-धूप। (३) 'ज' काः-जमूितः -जीमृतो- मेघ- बादल। (४) 'झ' का उदाहरण :- झर्झर :- झच्छरो = झांझ बाजा विशेष । (५) 'ड' का उदाहरण :- डमरूकः - डमरूको-शिवजी का बाजा विशेष । (६) 'ढ' का उदाहरण :- ढक्काः=ढक्का=बाजा विशेष। (७) 'द' का उदाहरण :- दामोदरः = दामोतरो-श्रीकृष्ण वासुदेव। (८) ‘द' का उदाहरण :- बालकः - बालको - बच्चा । (९) 'भ' का उदाहरण :- भगवती - भकवती देवी, श्रीमती । और (१०) 'युज्' धातु का उदाहरण :- नियोजितम् - नियोजितं = जोड़ा हुआ ।।४-३२७।।
शेषं प्राग्वत्।।४-३२८।।
चूलिका - पैशाचिके तृतीय- तुर्ययोरित्यादि यदुक्तं ततोन्यच्छेपं प्राक्तन पैशाचिक वत् भवति ।। नकर ।। मक्कनो ॥ अनयोनों णत्वं न भवति । णस्य च नत्वं स्यात् । एवमन्यदपि ।
अर्थः-चूलिका-पैशाचिक-भाषा में ऊपर कहे हुए सूत्र - संख्या ४-३२५ से ४- ३२७ तक के सूत्रों में वर्णित विधि-विधानों के अतिरिक्त शेष सभी विधि-विधान पैशाचिक भाषा के अनुसार ही जानना चाहिये। 'नकर' (= नगर शहर) में रहे हुए 'नकार' के स्थान पर और 'मक्कनो' (मार्गणः' :- याचक - भिखारी) में रहे हुए 'नकार' के स्थान पर चूलिका - पैशाचिक - भाषा 'कार' की प्राप्ति नहीं होती है । इस भाषा में 'णकार' के स्थान पर 'नकार' की प्राप्ति होती है । यों पैशाचिक भाषा में और चूलिका-पैशाचिक - भाषा में परस्पर में अन्य विधि-विधानों द्वारा होने वाले परिवर्तनो की संप्राप्ति की कल्पना भी स्वयमेव कर लेनी चाहिये; ऐसी विशेष सूचना ग्रन्थकार वृत्ति में ' एवमन्यदपि ' शब्दों द्वारा दे रहे हैं।।४-३२८।। इति चुलिका - पैशाची - भाषा-व्याकरण- समाप्त
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