Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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332 : प्राकृत व्याकरण
उदाहरण यों हैं:- तं बोल्लिअइ जु निव्वहइ-तत् जल्प्यते यत् निर्वहति (उससे) वही बोला जाता है, जिसको वह निभाता है।।४-३६०||
इदम दमुः क्लीबे।।४-३६१।। अपभ्रंशे नपुसंकलिंगे वर्तमानयेदमः स्यमोः परयोः इमु इत्यादेशौ भवति।। इमुकुलु तुह तणउ।। इमु कुलु देक्खु।।
अर्थः-अपभ्रंश भाषा में इदम् सर्वनाम के नपुंसकलिंगवाचक रूप में प्रथमा विभक्ति में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' की संयोजना होने पर तथा द्वितीया विभक्ति में 'अम्' प्रत्यय प्राप्त होने पर मूल शब्द 'इदम् और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर दोनों विभक्तियों के एकवचन में 'इमु रूप की आदेश प्राप्ति होती है।। जैसे:- (१) इदम् कुलम् इमु कुलु-यह कुल-यह वंश। (२) तव तृणम्=तुह तणंउ-तुम्हारा घास अथवा त्वत् तणयं-तुह तणउं-तुम से सम्बन्ध रखने वाला (यह कुल है) (३) इदं कुलं पश्य-इमु कुलु देक्खु-इस कुल को देख।।४-३६१।।
एतदः स्त्री-पुं-क्लीबे एह-एहो-एहु॥४-३६२।। अपभ्रंशे स्त्रियां पुसि नपुंसक वर्तमानस्यैतदः स्थाने स्यमोः परयोर्यथा-संख्यम् एह एहो एहु इत्यादेशा भवति।। एएह कुमारी एहो नरू एहु मणोरह-ठाणु।।। एहउँ वढ चिन्तन्ताहं पच्छइ होइ विहाणु।।१।।
अर्थः-अपभ्रंश भाषा में 'एतत् सर्वमान के पुल्लिंग में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'सि' प्रत्यय प्राप्त होने पर तथा द्वितीया विभक्ति के एकवचन में 'अम्' प्रत्यय प्राप्त होने पर मूल शब्द 'एतत्' और 'प्रत्यय' दोनों के स्थान पर 'एहो' पद रूप की आदेश प्राप्ति होती है। इसी प्रकार से 'एतत् सर्वमान के स्त्रीलिंग में प्रथमा के एकवचन में तथा द्वितीया के एकवचन में मूल शब्द और प्रत्यय के स्थान पर 'एह' पद रूप की आदेश प्राप्ति नपुंसकलिंग में भी 'एतत् सर्वनाम की
और द्वितीया के एकवचन में मल शब्द तथा प्रत्यय दोनों के स्थान पर 'एह पद रूप की आदेश प्राप्ति जानना चाहिये;। उदाहरण क्रम से यों हैं:- (१) एषो नरः-एहो नरू=यह नर पुरूष। (२) एषा कुमारी एहकुमारी यह कन्या। (३) एतन्मनोरथ स्थानम्-एहु मणोरह-ठाणु-यह मनोरथ स्थान।। पूरी गाथा का अनुवाद यों हैं:संस्कृत : एषा कुमारी एष (अहं) नरः एतन्मनोरथ-स्थानम्।।
एतत् मूर्खाणां चिन्तमानानां पश्चात् भवति विभातम्।।१।। हिन्दी:-यह कन्या है और मैं पुरूष हूँ; यह (मेरी) मन-कल्पनाओं का स्थान है; यों सोचते हुए मूर्ख पुरूषों के लिये शीघ्र ही प्रातः काल हो जाता है (और उनकी मनो-कामनाएं ज्यों की त्यों ही रह जाती है।)।।१।।४-३६२।।
एइर्जस-शसोः ।।४-३६३।। अपभ्रंशे एतदो जस्-शसोः परयोः एइ इत्यादेशो भवति।। एइ ति घोड़ा एह थलि। (४-३३०) एइ पेच्छ।।
अर्थः-अपभ्रंश भाषा में 'एतत् सर्वमान में प्रथमा विभक्ति बहुवचन वाचक प्रत्यय 'जस्' की प्राप्ति होने पर तथा द्वितीया विभक्ति बहुवचन वाचक प्रत्यय 'शस्' की संयोजना होने पर मूल शब्द 'एतत् और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर दोनों ही विभक्तियों में 'एइ' पद-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:- एते ते अश्वाः=एइ ति घोड़ा-ये वे (ही) घोड़े। (२) एषा स्थली-एह थलि-यह भूमि।। एतान् पश्य-एइ पेच्छ-इनको देखो।।४-३६३।।
अदस ओइ।।४-३६४॥ अपभ्रंशे अदसः स्थाने जस् शसोः परयोः आइ इत्यादेशौ भवति।। जइ पुच्छह घर वड्डाइं तो वड्डा घर ओइ।। विहलिअ-जण-अब्भुद्धरणु कन्तु कुडीरइ जोइ।।१।।
अमूनि वर्तन्ते पृच्छ वा।। Jain Education International
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