Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 305 माना जाता है। जैसे:- आ हा हा! संपन्नाः मम मनोरथाः प्रियवयस्याय-ही-ही!! संपन्ना मे मणोलधा पियवयस्सस्स-अहाहा!! (बड़े ही हर्ष की बात है कि) प्रिय मित्र के लिये मेरी जो मन की कल्पनाएं थीं, वे
सब की सब (सानंद) सम्पन्न हुई है।। (२७) सूत्र-संख्या ४-२८६ में सर्व-सामान्य-सूचना के रूप में यह संविधान किया गया है कि शेष सभी विधान
'शौरसेनी-भाषा' के लिये 'प्राकृत-भाषा' के संविधान के अनुसार ही जानना। यों यह फलितार्थ हुआ कि 'मागधी-भाषा' के लिये भी वे सभी नियमोपनियम लागू पड़ते है; जो कि 'प्राकृत-भाषा' के लिये तथा 'शौरसेनी-भाषा' के लिये लिखे गये हैं। इसी बात की संपुष्टि के लिये इसी सूत्र की वृत्ति में ऊपर शौरसेनी-भाषा के लिये लिखित सूत्र-संख्या ४-२६० से लगातार ४-२८६ तक के सूत्रों को उदाहरण पूर्वक
उद्धृत किये हैं। उपरोक्त सूचना के अतिरिक्त ग्रंथ-कर्ता आचार्य श्री ने वृत्ति में सूत्र-संख्या १-४ से आरम्भ करके चारों पादों के सूत्रों को सम्मिलित करते हुए सूत्र-संख्या ४-२५७ तक के सूत्रों में वर्णित सभी प्रकार के विधि-विधानों का 'अधिकार' इस मागधी-भाषा के लिये भी निश्चय-पूर्वक जानना' ऐसा स्पष्टतः निर्देश किया है। इन सूत्रों में जो जो उदाहरण है, जो-जो परिवर्तन, लोप, आगम, आदेश, प्रत्यय, अथवा वर्ण-विकार आदि व्याकरण-सम्बन्धी व्यवस्थाएँ है; वे सब की सब मागधी-भाषा के लिये भी है; ऐसा जानना चाहिये। पाठकों को चाहिये कि वे ऐसी परिकल्पनाएँ कर लें और तर्क-पूर्वक इन्हें सम्यक्-प्रकार से स्वयमेव समझ ले।।४-३०२।।
इति मागधी भाषा व्याकरण समाप्त
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