Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 251 दुहावइ, (२) णिच्छलइ, (३) णिज्झोडइ (४) णिव्वरइ, (५) पिल्लूरइ, (६) लूरइ। पक्षान्तर में छिन्दइ-वह छेदता है अथवा वह खण्डित करती है ।। ४-१२५।।
___ आङा ओ अन्दोद्दालौ ॥४-१२५।। आङा युक्तस्य छिदेरोअन्द उद्दाल इत्यादेशौ वा भवतः ओअन्दइ। उद्दालइ। अच्छिन्दइ।।
अर्थः- 'आ' उपसर्ग सहित संस्कृत-धातु 'छिद्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में 'ओअन्द, उद्दाल' ऐसे दो धातु-रूपों की विकल्प से आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से अच्छिन्द की भी प्राप्ति होती है। उदाहरण यों हैं:अच्छिनति ओअन्दइ, उद्दालइ अथवा अच्छिन्दइ-वह खींच लेता हे अथवा वह हाथ से छीन लेती है।।४-१२५।।
मृदो मल-मढ-परिहट-खड्ड-चड्ड-मड्ड-पन्नाडाः ॥४-१२६॥ मृद्नातेरेते सप्तादेशा भवन्ति।। मलइ। मढइ। परिहट्टइ। खड्डइ। चड्डइ। मड्डइ। पन्नाडइ।।
अर्थः- 'मर्दन करना, मसलना' अर्थक संस्कृत-धातु 'मृद्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में सात धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि इस प्रकार हैं:-(१) मल, (२) मढ, (३) परिहट्ट, (४) खड्ड, (५) चड्ड, (६) मड्ड और (७) पन्नाड। इनके उदाहरण इस प्रकार हैं:- मृद्नाति=(१) मलइ, (२) मढइ, (३) परिहट्टइ, (४) खड्डइ, (५) चड्डइ, (६) मड्डइ और (७) पन्नाडइ-वह मर्दन करता है अथवा वह मसलती है ।। ४-१२६ ।।
स्पन्देश्चुलुचुलः॥४-१२७।। स्पन्देश्चुलुचुल इत्यादेशो वा भवति।। चुलुचुलइ। फन्दइ।।
अर्थ'-'फडकना, थोड़ा हिलना' अर्थक संस्कृत-धातु 'स्पन्द्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'चुलुचुल' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'फन्द' की भी प्राप्ति होगी। उदाहरण यों हैं:- स्पन्दति-चुलुचुलइ अथवा फन्दइ-वह फरकती है अथवा वह थोड़ा हिलता है।। ४-१२७।।
निरः पदेर्वलः।। ४-१२८॥ निपूर्वस्य पदेवल इत्यादेशो वा भवति।। निव्वलइ। निप्पज्ज।।
अर्थः- "निर्' उपसर्ग सहित संस्कृत धातु 'पद्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'निव्वल' धातु रूप कर आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'निप्पज्ज' की भी प्राप्ति होगी। उदाहरण इस प्रकार है:- निष्पद्यते निव्वलइ अथवा निप्पजइ-वह निष्पन्न होता है, वह सिद्ध होता है अथवा वह बनती है।। ४-१२८।।
विसंवदेर्विअट्ट-विलोट-फंसाः॥४-१२९।। विसंपूर्वस्य वदेरेते त्रय आदेशा वा भवन्ति।। विअट्टइ। विलोट्टइ। फंसइ। विसंवयइ।।
अर्थः- 'वि' उपसर्ग तथा 'सं' उपसर्ग, इस प्रकार दोनों उपसर्गो के साथ संस्कृत-धातु 'वद्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से तीन धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि इस प्रकार हैं:- (१) विअट्ट (२) विलोट्ट और (३) फंस। वैकल्पिक पक्ष होने से 'विसंवय' को भी, प्राप्ति होगी। उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:- विसंवदति=(१) विअट्टइ (२) विलोट्टइ, (३) फंसइ और (४) विसंवयइ-वह अप्रमाणित करता है अथवा वह असत्य साबित करता है ।। ४-१२९।।
शदो झड-पक्खोडौ ॥४-१३०।। शीयतेरेतावादेशौ भवतः।। झडइ। पक्खोडइ॥ अर्थः- 'झड़ना, टपकना' अर्थक संस्कृत-धातु 'शद्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में दो धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति
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