Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 293 प्राकृत-भाषा में ऐसा संविधान पाया जाता है कि संस्कृत भाषा के शब्दों में रहे हुए स्वरों का अथवा व्यञ्जनों का परस्पर में 'व्यत्यय' अर्थात् आगे का पीछे और पीछे का आगे होकर संस्कृतीय शब्द प्राकृतीय बन जाते है।। जैसे:- अन्यं इदानीम् बोधिम् अन्नं दाणिं बोहि अब दूसरे को शुद्ध धर्मज्ञान को (बोधि को) समझाओ।।४-२७७।।
तस्मात्ताः॥४-२७८॥ शौरसेन्यां तस्माच्छब्दस्य ता इत्यादेशो भवति।। ता जाव पविसामि। ता अलंएदिणा माणेण।।
अर्थः- 'उस कारण से' अथवा 'उससे' अर्थक संस्कृत-पद 'तस्मात् के स्थान पर शौरसेनी भाषा में 'ता' शब्द रूप की आदेश-प्राप्ति होती है। जैसे:- तस्मात् यावत् प्रविशामि=ता जाव पविसामि-उस कारण से तब तक में प्रवेश करता हैं। तस्मात अलम एतेन मानेन ता अलं एदिणा माणेण-उस कारण से इस भान (अभिमान से)-अब बस करो अर्थात् अब अभिमान का त्याग करदो यों 'ता' शब्द का अर्थ ध्यान में रखना चाहिये।।४-२७८।।
मोन्त्याण्णो वेदे तोः।।४-२७९।। शौरसेन्यामन्त्यान्मकारात् पर इदेतोः परयोर्णकारागमो वा भवति॥ इकारे। जुत्तणिम, जुत्त मिण। सरसिं णिमं.सरिसमिण। एकारे। किंणेदं किमेद एवं णेदं एवमेद।।
अर्थः- शौरसेनी भाषा में यदि शब्दान्त्य हलन्त 'मकार' हो और उस हलन्त मकार के आगे यदि 'इकार अथवा एकार' हो तो ऐसे 'इकार अथवा एकार' के साथ में विकल्प से हलन्त 'णकार' की आगम प्राप्ति होती है। 'इकार और एकार' सम्बन्धी उदाहरण इस प्रकार क्रम से हैं:- (१) युक्तम् इदम् जुत्तणिमं अथवा जुत्तामिणं-यह (बात) सही है। (२) सदृशं इदम् सरिसं णिमं अथवा सरिसमिणंयह समान-(एक जैसा है) इन दोनो उदाहरणों में 'इम' के स्थान पर णिमं की प्राप्ति हुई है; यों 'इकार' में 'णकार' की आगम-प्राप्ति को समझ लेना चाहिये। यह आगम प्राप्ति वैकल्पिक है, अतः द्वितीय 'इम' के स्थान पर णिमं की प्राप्ति हुई है; यो इकार में णकार की आगम प्राप्ति को समान लेना चाहिये। इस आगम प्राप्ति वैकल्पिक है अतः द्वितीय इय के स्थान पर णिमं की प्राप्ति नहीं हई है। "एकार' सम्बन्धी उदाहरण यों है- (१) किं एतत् कि णेदं अथवा किमेद=यह क्या है ? (२) एवं एतत् एवं णेदं
अथवा एवमेदं यह ऐसा है। इन उदाहरणों में 'एदं के स्थान पर विकल्प से 'णेदं रूप की प्राप्ति हुइ है; 'एकार' 'णकार' की आगम प्राप्ति को विकल्प से जान लेना चाहिये।।४-२७९।।
एवार्थ य्ये व॥४-२८०॥ एवार्थे य्येव इति निपातः शौरसेन्यां प्रयोक्तव्यः।। मम य्येव बम्भणस्या सोय्येव एसो॥
अर्थ:-'निश्चय-वाचक' संस्कृत-अव्यय 'एव' के स्थान पर अथवा 'एय' के अर्थ में शौरसेनी भाषा में 'य्येव' अव्यय रूप का प्रयोग किया जाना चाहिये। जैसे-(१) मम एव ब्राहमणस्य-ममय्यव बम्भणस्स-मुझ ब्राह्मण का ही। (२) स एव एषः सो य्येव एसो-वह ही यह है। यों इन दोनों उदाहरणों में एव' के स्थान पर 'य्येव' की प्राप्ति हुई है।।४-२८०॥
हजे चेट्याहाने।।४-२८१।। शौरसेन्याम् चेट्याहाने हजे इति निपातः प्रयोक्तव्यः।। हजे च दूरिके।। __ अर्थः- दासी को संबोधन करते समय में अथवा बुलाने के समय में शौरसेनी-भाषा मे 'हब्जे' अव्यय का __ प्रयोग किया जाता है। जैसे- अरे! चतुरिके!=हजे चदुरिके!=अरे चतुर दासी! अरे बुद्विमान दासी।।४-२८१।।।
हीमाणहे विस्मय-निर्वेदे।।४-२८२।। शौरसेन्यां हीमाणहे इत्ययं निपातो विस्मये निर्वेदे च प्रयोक्तव्यः।। विस्मये। हीमाणहे जीवन्त-वच्छा मे जणणी।। निर्वेदे हीमाणहे पलिस्सन्ता हगे एदेण निय-विधिणो दुव्ववसिदेण।।
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