Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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298 : प्राकृत व्याकरण
इसलिये ग्रन्थ-कर्ता को भी 'ग्रीष्म' शब्द में रहे हुए हलन्त 'षकार' के लिये उपर्युक्त नियम के प्रतिकूल विधान करना पड़ा है। इसका उदाहरण इस प्रकार है:- ग्रीष्म वासरः गिम्ह वाशले-ग्रीष्म ऋतु का दिन। यों 'ग्रीष्म' का रूपान्तर 'गिम्ह' ही जानना।।४-२८९।।
ट-ष्ठयोस्टः।।४-२९०॥ द्विरुक्तस्य टस्य षकाराक्रान्तस्य च ठकारस्य मागध्यां सकाराक्रान्तः टकारो भवति।। पट्टा पस्टे। भस्टालिका। भस्टिणी।। ष्ठ। शुस्टु कद।। कोस्टागाल।। ___ अर्थः-संस्कृत भाषा के शब्दों में उपलब्ध द्वित्व 'ट्ट' के स्थान पर और हलन्त 'षकार' सहित 'ठकार' के स्थान पर मागधी - भाषा में हलन्त 'सकार' सहित 'टकार' की प्राप्ति होती है। द्वित्व 'टकार' के उदाहरण यों हैं:- (१) पट्टः=पस्टे=पदार्थ विशेष (२) भट्टारिका-भस्टालिका भट्टार की स्त्री। भट्टिनी भस्टिणी भट्ट की स्त्री। 'ष्ठ' के उदाहरण इस प्रकार है:- (१) सुष्ठुकृतम्-शुष्टु-कदं-अच्छा किया हुआ। (२) कोष्ठागारम्=कोस्टागालं-धान्य आदि रखने का स्थान विशेष।।४-२९०।।
स्थ-र्थयोस्तः ॥४-२९१॥ स्थ, र्थ, इत्येतयोः स्थाने मागध्यां सकाराक्रान्तः तो भवति। स्थ। उवस्तिदे। शुस्तिदे।। र्थ। अस्त-वदी। शस्तवाहे॥
अर्थः- संस्कृत भाषा के शब्दों में उपलब्ध 'स्थ' एवं र्थ के स्थान पर मागधी भाषा में हलन्त 'सकार' पूर्वक 'तकार' की प्राप्ति होती है। 'स्थ' के उदाहरणः-(१) उपस्थितः उवस्तिदे-मौजूद-हाजिर, (२) सुस्थितः शुस्तिदे-अच्छी तरह से रहा हुआ। 'थ' के उदाहरण:- (१) अर्थवतिः = अस्त-वदी धन का मालिक। (२) सार्थवाहः-शस्तवाहे सद्-गृहस्थ अथवा बड़ा व्यापारी।।४-२९१।।
ज-द्य-यां-यः।।४-२९२।। मागध्यां जद्ययां स्थाने यो भवति॥ ज। याणदि। यणवदे। अय्युणे। दुय्यणे। गय्यदि। गुण-वय्यिदे॥ द्य। मय्य।। अय्य किल विय्याहले आगदे या यादि। यधाशुलूव।। याण-वत्त।। यदि।। यस्य यत्व-विधानम् आदेर्योजः (१-२४५) इति बाधनार्थम्।
अर्थः- संस्कृत भाषा के शब्दों में उपलब्ध 'ज', 'द्य' और 'य' के स्थान पर मागधी भाषा में 'य' की प्राप्ति होती है। 'ज' के उदाहरण:- (१) जानाति-याणदि, वह जानता है। (२) जनपदः=यणवदे-प्रान्त का कुछ भाग विशेष-परगना, तहसील। (३) अर्जुनः अय्युणे-पाणडु पुत्र, महाभारत का नायक (४) दुर्जनः दुय्यणे-दुष्ट पुरूष। (५) गर्जति=गय्यति गर्जता है। (६) गुणवर्जितः गुण-वय्यिदे-गुणों से रहित।। 'ध' के उदाहरणः- (१) मद्यं मय्यं शराब। (२) अद्य किल=अय्य किल=निश्चय ही आज। (३) विद्याधरः आगतः विय्याहले आगदे-विद्याघर (देवता विशेष) आ गया है।। 'य' के उदाहरणः- (१) याति=यादि जाता है। (२) यथासरूपम्=यधा शलूवं समान रूप वाला। (३) यानवर्तम्=याणवत्तं वाहन विशेष का होना। (४) यति यदि-संन्यासी
इसी व्याकरण के प्रथम पाद में सूत्र-संख्या २४५ में 'आदेोजः के विधानानुसार यह बतलाया गया है कि संस्कृत भाषा के शब्दों में यदि आदि में 'यकार' हो तो उसके स्थान पर 'जकार' की प्राप्ति हो जाती है; इस विधान के प्रतिकूल मागधी-भाषा में 'यकार' के स्थान पर 'यकार' ही होता है, 'जकार' नहीं होता है; ऐसा बतलाने के लिये ही इस सत्र में 'ज' और 'घ' के साथ-साथ 'य' भी लिखा गया है जो कि ध्यान में रखने के योग्य है। यों यह सत्र उक्त-संख्या १-२४५ के प्रतिकूल है अथवा अपवाद स्वरूप है; यह भी कहा जा सकता है। जैसे:- यतिः यदी-साधु अथवा संन्यासी।।४-२९२।।
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