Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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262 : प्राकृत व्याकरण __'दृश्=पश्य' के स्थान पर आदेश प्राप्त पन्द्रह धातु-रूपों के उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:- पश्यति(१) निअच्छइ, (२) पेच्छइ, (३) अवयच्छइ, (४) अवयज्झइ, (५) वज्जइ, (६) सव्ववइ, (७) देक्खइ, (८)
ओअक्खइ, (९) अवक्खइ, (१०) अवअक्खइ, (११) पुलोएइ, (१२) पुलएइ, (१३) निअइ, (१४) अवआसइ, और, (१५) पासइ-वह देखता है ।।४-१८१।।
स्पृशः फास-फंस-फरिस-छिव-छिहालुं खालिहाः।। ४–१८२।। स्पृशतेरेते सप्त आदेशा भवन्ति।। फासइ। फंसइ। फरिसइ। छिवइ। छिहइ। आलुखइ। आलिहइ॥
अर्थः- 'स्पर्श करना, छूना' अर्थक संस्कृत धातु 'स्पर्श' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में सात धातुओं की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि वे क्रम से इस प्रकार है:- (१) फास (२) फंस, (३) फरिस, (४) छिव, (५) छिह (६) आलुख
और (७) आलिह। उक्त सातों एकार्थक धातुओं के उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:- स्पृशति-(१) फासइ, (२) फसइ, (३) फरिसइ, (४) छिवइ, (५) छिहइ, (६) आलुखइ और (७) आलिहइ-वह छूता है अथवा वह स्पर्श करता है।। ४-१८२।।
प्रविशे रिअः ॥४-१८३॥ प्रविशेः रिअ इत्यादेशौ वा भवति ॥ रिअइ। पविसइ।।
अर्थः- 'प्रवेश करना, पैठना, घुसना, अर्थक संस्कृत धातु 'प्र+विश' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'रिअ' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'पविस' भी होता है। जैसेः- पविशति-रिअइ अथवा पविसइ-वह प्रवेश करता है, वह घुसता है, वह अन्दर जाता है ।। ४-१८३।।
प्रान्मृश-मुषोह॒सः ।। ४-१८४।। प्रात्परयो म॑शति मुष्णात्योर्व्हस इत्यादेशो भवति।। पम्हुसइ। प्रमृशति। प्रमुष्णाति वा॥
अर्थः- 'प्र' उपसर्ग सहित 'स्पर्श करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'प्र+मृश' के स्थान पर तथा 'प्र' उपसर्ग सहित 'चोरना, चोरी करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'प्र+मुष्' के स्थान पर यों दोनों धातुओं के स्थान पर प्राकृत-भाषा में केवल एक ही धातु-रूप 'पम्हुस' की आदेश प्राप्ति होती है। द्वि अर्थक प्राकृत-धातु 'पम्हुस' का प्रांसगिक अर्थ संदर्भ के अनुसार कर लिया जाना चाहिये। उदाहरण इस प्रकार है:- प्रमृशति-पम्हुसइ-वह स्पर्श करता है अथवा वह छूता है। प्रमुष्णाति-पम्हुसइ-वह चोरता है अथवा वह चोरी करता है। यों प्रसंगानुसार अर्थ को समझ लेना चाहिये।।४-१८४।।
पिषे र्णिवह-णिरिणास-णिरिणज्ज-रोञ्च-चड्डा ।। ४-१८५।। पिषेरेते पञ्चादेशा भवन्ति वा।। णिवहइ। णिरिणासइ। णिरिणज्जइ। रोञ्चइ। चड्डइ। पक्षे। पीसइ॥
अर्थः- 'पीसना, चूर्ण करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'पिश' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से पांच धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) णिवह, (२) णिरिणास, (३) णिरिणज्ज, (४) रोञ्च और (५) चड्ड। वैकल्पिक पक्ष होने से 'पीस' भी होता है। उक्त छह धातुओं के उदाहरण इस प्रकार हैं :- पिनष्टि = (१) णिवहइ, (२) णिरिणासइ, (३) णिरिणज्जइ, (४) रोञ्चइ, (५) चड्डइ और (६) पीसइ-वह पीसता है अथवा वह चूर्ण करता है। ।। ४-१८५।।।
भषे(क्कः ।। ४–१८६।। भषेर्भुक्क इत्यादेषो वा भवति। भुक्कइ। भसइ।
अर्थः- ' कना, कुत्ते का बोलना' अर्थक संस्कृत-धातु 'भष्' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'भुक्क' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'भस' भी होता है जैसे:- भषति-भुक्कइ अथवा भसइ-वह
कुत्ता भूकता है।। ४-१८६।। Jain Education International
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