Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 263
कृषेः कडू-साअड्डाचाणञ्छाइञ्छाः ॥ ४-१८७।। कृषेरेते षडादेशा वा भवन्ति।। कड्डइ। साअड्डइ। अञ्चइ। अणच्छइ। अयञ्छइ। आइञ्छइ। पक्षे। करसिइ।
अर्थः- खेती करना अथवा खींचना' अर्थक संस्कृत-धातु 'कृष्' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से छह धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) कडू, (२) साअड, (३) अञ्च, (४) अणच्छ, (५) अयञ्छ और (६) आइञ्छ। वैकल्पिक पक्ष होने से 'करिस' भी होता है। उक्त एकार्थक सातों धातुओं के उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं :- कर्षति= (१) कडुइ, (२) साअड्डइ, (३) अञ्चइ, (४) अणच्छइ, (५) अयञ्छइ, (६) आइञ्छइ और (७) करिसइ-वह खीचता है अथवा वह खेती करता है।।।४-१८७।।
असावखोडः ॥४-१८८॥ असि विषयस्य कृषेरक्खोड इत्यादेशो भवति।। अक्खोडेइ। असिं कोशात् कर्षतीत्यर्थः॥
अर्थः- 'तलवार को म्यान में से खीचना' इस अर्थक संस्कृत-धातु 'कृष' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में 'अक्खोड' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:- कर्षति अक्खोडेइ-वह तलवार को म्यान में से खींचता है ।। ४-१८८।।
गवेषेर्दूदुल्ल-ढण्ढोल-गमेस-घत्ताः ।। ४-१८९॥ गवेषेरेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति।। ढुंदुल्लइ। ढंढोलइ। गमेसइ। घत्तइ। गवेसइ।।
अर्थः- 'ढूँढना, खोजना, अन्वेषण करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'गवेष्=गवेषय' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से चार धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) ढुंदुल्ल, (२) ढंढोल, (३) गमेस और, (४) घत्त। वैकल्पिक पक्ष होने से 'गवेस' भी होता है। जैसे:- गवेषयति= (१) ढुंढुल्लइ, (२) ढंढोलइ, (३) गमेसइ, (४) घत्तइ, और (५) गवेसइ-वह ढूंढता है, वह खोजता है अथवा वह अन्वेषण करता है। ।। ४-१८९।।
श्लिषेः सामग्गावयास-परिअन्ताः ।। ४-१९०॥ रिलष्यतेरेते त्रय आदेशा वा भवन्ति।। सामग्गइ। अवयासइ। परिअन्तइ। सिलेसइ।। अर्थः- 'आलिंगन करना, गले लगना' अर्थक संस्कृत-धातु 'श्लिष' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से तीन धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) सामग्ग, (२) अवयास और, (३) परिअन्त। वैकल्पिक पक्ष होने से 'सिलेस' भी होता है। उक्त चारों एकार्थक धातुओं के उदाहरण यों हैं :श्लिष्यति=(१) सामग्गइ, (२) अवयासइ, (३) परिअन्तइ और (४) सिलेसइ= वह आलिंगन करता है अथवा वह गले लगता है। ।। ४-१९०।।
म्रक्षे श्रचोप्पडः ।। ४-१९१॥ म्रक्षेश्चाप्पड इत्यादेशौ वा भवति।। चोप्पडइ। मक्खइ।। अर्थः- 'स्निग्ध करना अथवा घी तेल आदि लगाना' अर्थक संस्कृत-धातु 'म्रक्ष' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'चोप्पड' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'मक्ख' भी होता है। जैसे:म्रक्षति= चोप्पडइ अथवा मक्खइ-वह स्निग्ध करता है अथवा वह घी-तेल आदि लगाता है।।४-१९१।।
कांक्षेराहहिलंघाहिलंख-वच्च-वम्फ-मह-सि-विलुम्पाः।।४-१९२॥
कांक्षतेरेतेष्टादेशा वा भवन्ति।। आहइ। अहिलंघइ। अहिलंखइ। वच्चइ। वम्फइ। महइ। सिहइ। विलुंपइ। कंखइ॥
अर्थः- 'चाहना, अभिलाषा करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'कांक्ष्' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से आठ
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