Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 267
दहेरहिऊलालुं खौ।।४-२०८।। दहेरेतावादेशौ वा भवतः।। अहिऊलइ। आलुखई। डहइ।।
अर्थः- 'जलाना, दहन करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'दह' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'अहिऊल और 'आलुंख' ऐसे दो धातु रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'डह' भी होता है। उक्त तीनों धातु-रूपों के उदाहरण कम से इस प्रकार है:- दहति= (१) अहिऊलई (२) आलुखेइ और (३) डहइ-वह जलाता है अथवा वह दहन करता है।।४-२०८।।
ग्रहो वल-गेण्ह-हर-पंग-निरुवाराहि पच्चुआः।।४-२०९॥ ग्रहेरेते षडादेशो वा भवन्ति।। वलइ। गेण्हइ। हरइ। पंगइ। निरुवारह। अहिपच्चुअइ।
अर्थः- 'ग्रहण करना, लेना, अर्थक संस्कृत-धातु 'ग्रह' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में छह धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) वल, (२) गेण्ह, (३) हर, (४) पंग, (५) निरूवार और (६)
अहिपच्चुअ इनके उदाहरण यों हैं:- गृहणाति= (१) वलइ, (२) गण्हइ, (३) हरइ, (४) पंगई, (५) निरूवारइ, और (६) अहिपच्चुअइ-वह ग्रहण करता है अथवा वह लेता है।।४-२०९।।
क्त्वा -तुम्-तव्येषु-घेत्।।४-२१०।। ग्रहः क्त्वा-तुम्-तव्येषु घेत् इत्यादेशौ वा भवति।। क्त्वा। घेत्तूण। घेतूआण। क्वचिन्न भवति। गेण्हि। तुम्। घेत्तूं। तव्य। घेत्तव्व।। ___ अर्थः- 'दो क्रियाओं के पूर्वापर संबंध को बताने वाले 'करके अर्थ वाले संबंधार्थ कृदन्त के प्रत्यय लगाने पर, तथा 'के लिये' अर्थ वाले हेत्वर्थ कृदन्त के प्रत्यय लगाने पर और 'चाहिये' अर्थ वाले 'तव्य' आदि प्रत्यय लगाने पर संस्कृत-धातु 'ग्रह' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में 'घेत्' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। संस्कृत-प्रत्यय 'क्त्वा' वाले संबंधार्थ कृदन्त का उदाहरण यों है:- गृहीत्वा घेत्तूण और घेत्तुआण आदि-ग्रहण करके। कभी-कभी 'ग्रह' धातु के स्थान पर उक्त संबंधार्थ कृदन्त के प्रत्यय लगाने पर 'घेत्' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति नहीं होती है।
जैसे:- गृहीत्वा=गेण्हिअ ग्रहण करके। ___ हेत्वर्थ कृदन्त के प्रत्यय 'तुम्' सम्बन्धी उदाहरण 'ग्रह घेत' का इस प्रकार है:- ग्रहीतुम्=घेत्तुं ग्रहण करने के लिये। 'चाहिये' अर्थक 'तव्य' प्रत्यय का उदाहरण यों है:- ग्रहीतव्यम्=घेत्तव्वं-ग्रहण करना चाहिये अथवा ग्रहण करने के योग्य है। यों 'ग्रह' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में उक्त अर्थो में आदेश प्राप्त 'घेत्' धातु-रूप की स्थिति को जानना चाहिय।।४-२१०।।
वचो वोत॥४-२१॥ तर्वोत् इत्यादेशो भवति क्त्वा-तुम्-तव्येषु।। वोत्तूण। वोत्तुं। वोत्तव्वं
अर्थः- 'करके अर्थ वाले सम्बन्धार्थ कृदन्त के प्रत्यय लगने पर, तथा 'के लिये' अर्थ वाले हेत्वर्थ कृदन्त के प्रत्यय लगने पर और 'चाहिये' अर्थ वाले 'तव्य' आदि प्रत्यय लगने पर संस्कत-धात 'वद' के स्थान पर प्राकत-१ में 'वोत' धात-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। उक्त तीनों प्रकार के क्रियापदों के उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:(१) 'क्त्वा' प्रत्यय, का उदाहरणः उक्त्वा -वोत्तूण कह करके अथवा बोल करके (२) 'तुम्' प्रत्यय का उदाहरण:वक्तुम्वोत्तुं बोलने के लिये अथवा कहने के लिये। (३) 'तव्य' प्रत्यय का उदाहरण:- वक्तव्यम्=वोत्तव्वं बोलना चाहिये अथवा कहना चाहिये, बोलने के योग्य है अथवा कहने के योग्य है।।४-२११ ।।
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