Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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258 : प्राकृत व्याकरण
गच्छति= (१) अईइ, (२) अइच्छइ, (३) अणुवज्जइ, (४) अवज्जसइ, (५) उक्कुसइ, (६) अक्कुसइ, (७) पच्चड्डइ, (८) पच्छन्दइ, (९) णिम्महइ, (१०) णीइ, (११) णोणइ; (१२) णीलुक्कइ, (१३) पदअइ, (१४) रम्भइ, (१५) परिअल्लइ, (१६) वोलइ, (१७) परिअलइ, (१८) णिरिणासइ, (१९) णिवहइ, (२०) अवसेहइ, (२१) अवहरइ, और (२२) गच्छइवह गमन करता है अथवा वह गमन करती है।
संस्कृत-भाषा में 'गमन करना, जाना' अर्थक 'हम्म' ऐसी एक और धातु है इसके आधार से प्राकृत-भाषा में भी 'जाना' अर्थ में 'हम्म' धातु रूप का प्रयोग देखा जाता है:- हम्मति हम्मइ वह जाता है अथवा वह गमन करती है। । उपर्युक्त 'हम्म' धातु के पूर्व में क्रम से णि, णी, आ, और प, उपसर्गों की संयोजना करके इसी 'जाना-अर्थ में चार (धातु) रूपों का और भी निर्माण कर लिया जाता है, जो कि क्रम से इस प्रकार है:- (१) णिहम्म, (२) णीहम्म, (३) आहम्म, और (४) पहम्म। इनके उदाहरण इस प्रकार हैं:- (१) निहम्मति= णिहम्मइ = वह जाती है अथवा गमन करता है। (२) निहम्मतिणीहम्मइ वह निकलती है अथवा वह बाहर जाता है। (३) आहम्मति= आहम्मइ= वह आता है अथवा वह आगमन करता है। प्रहम्मति = पहम्मइ= वह तेज गति से जाता है, वह शीघ्रता पूर्वक गमन करता है। इस प्रकार से 'जाना' अर्थक 'हम्म' धातु के विभिन्न प्रयोगों को समझ लेना चाहिये ।।४-१६२।।
. आङा अहिपच्चुअः।। ४-१६३।। आङा सहितस्य गमेः अहिपच्चुअ इत्यादेशो वा भवति।। अहिपच्चुअइ। पक्षे आगच्छइ।।
अर्थ:- 'आ' उपसर्ग सहित संस्कृत-धातु 'गम् गच्छ' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से अहिपच्चुअ (धातु) रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'आगच्छ' भी होता है। जैसे:- आगच्छति अहिपच्चुअइ अथवा आगच्छइ-वह आता है।। ४-१६३।।।
समा अब्भिडः ॥४-१६४॥ समायुक्तस्य गमेः अब्भिड इत्यादेशो वा भवति।। अब्भिडइ। संगच्छ।।।
अर्थः- 'सं' उपसर्ग सहित संस्कृत धातु 'गम गच्छ' के स्थान पर प्राकृत-- भाषा में विकल्प 'अब्भिड' (धातु) रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'संगच्छ' भी होता है। जैसे:- संगच्छति= अब्भिडइ अथवा संगच्छइ-वह संगति करता है अथवा वह मिलती है ।। ४-१६४।।
अभ्याडोम्मत्थः ।।४-१६५।। अभ्याङ भ्यां युक्तस्य गमे : उम्मत्थः इत्यादेशो वा भवति।। उम्मत्थइ। अब्भागच्छइ। अभिमुखमागच्छतीत्यर्थः।।
अर्थः- 'अभि' उपसर्ग तथा 'आ' उपसर्ग सहित संस्कृत-धातु 'गम् गच्छ' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'उम्मत्थ' (धातु) रूप की आदेश प्राप्ति होती है। वैकल्पिक पक्ष होने से 'अब्भागच्छ' भी होता है। जैसे:अभ्यागच्छति =उम्मत्थइ अथवा अब्भागच्छइ =वह सामने आता है, वह अभिमुख आती है ।। ४-१६५।।
प्रत्याङा पलोट्टः ।।४-१६६।। प्रत्याभ्यां युक्तस्य गमेः पलोट इत्यादेषो वा भवति।। पलोट्टइ। पच्चागच्छइ।। ____अर्थः- 'प्रति उपसर्ग और 'आ' उपसर्ग सहित संस्कृत-धातु 'गम्= गच्छ' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'पलोट्ट' (धातु) रूप की आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में संस्कृत-धातु- 'प्रति+आ+गम्-प्रत्यागच्छ' का
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