Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 245 अर्थः- 'पकाना' अर्थक संस्कृत-धातु 'पच्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से 'सोल्स और पउल ऐसे दो धातु-की आदेश प्राप्ति होती है। रूपान्तर 'पय' भी होगा। जैसेः- पचति-सोल्लइ और पउलइ अथवा पयइ-वह पकाता है ।। ४-९०॥
मुचेश्छड्डा व हेड-मेल्लोस्सिक्क-रेअवणिल्लुञ्छ-धंसाडाः॥४-९१॥ मुच्चतेरेते सप्तादेशा वा भवन्ति।। छड्डइ। अवहेडइ। मेल्लइ। उस्सिक्कइ। रेअवइ। णिल्लुञ्छइ। धंसाडइ। पक्षे। मुअइ। __अर्थः- ‘छोड़ना-त्याग करना' अर्थक संस्कृत-धातु 'मुच्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से सात धातु की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) छड्ड, (२) अवहेड, (३) मेल्ल, (४) उस्सिक्क, (५)रेअव, (६) णिल्लुञ्छ और (७) धंसाड, पक्षान्तर में 'मुअ' भी होगा। यों आठों ही धातु-रूपों के उदाहरण क्रम से इस प्रकार है:- मञ्चति-(१) छड्डइ (२) अवहेडइ, (३) मेल्लई, (४) उस्किइ, (५) रेअवइ, (६) णिल्लुञ्छइ, (७) धंसाडइ अथवा मुअई-वह छोड़ता है अथवा वह त्याग करता है ।। ४-९१।।
दुःखे णिव्वलः ॥४-९२॥ दुःख विषयस्य मुचेः णिव्वल इत्यादेशो वा भवति।। णिव्वलेइ। दुःखं मुझतीत्यर्थः।।
अर्थः- 'दुःख को छोड़ना' अर्थ में संस्कृत-धातु 'मुच्' के स्थान पर प्राकृत-भाषा में विकल्प से 'णिव्वल' (धातु) की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे:- दुःखं मुञ्चति-णिव्वलेइ-वह दुःख को छोड़ता है। पक्षान्तर में दुहं मुअइ होगा।।४-९२।।
वच्चेर्वेहव-वेलव-जूर वो मच्छाः ।।४-९३॥ वचतेरेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति।। वेहवइ। वेलवइ। जूरवइ। उमच्छइ। वञ्चइ।।
अर्थः- 'ठगना' अर्थक संस्कृत-धातु 'वञ्च' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से चार धातु की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) वेहव, (२) वेलव, (३) जूरव और उमच्छ। रूपान्तर 'वञ्च' भी होगा। उक्त पांचों धातु-रूपों के उदाहरण इस प्रकार हैं:- वञ्चति= (१) वेहवइ, (२) वेलवइ। (३) जूरवइ, (४) उमञ्चइ और (५) वञ्चइ-वह ठगता है।। ४-९३।
रचरूग्गहावह-विड, विड्डाः ॥४-९४॥ रचेर्धातोरेते त्रय आदेशा वा भवन्ति। उग्गहइ। अवहइ। विडविड्डइ। रयइ।
अर्थः- "निर्माण करना, बनाना' अर्थक संस्कृत धातु 'रच' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से तीन (धातु) रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार है:- (१) उग्गह, (२) अवह और (३) विडविड्ड। वैकल्पिक पक्ष होने से 'रय' भी होगा। उक्त चारों धातु रूपों के उदाहरण क्रम से इस प्रकार हैं:- रचयति=(१) उग्गहइ, (२) अवहइ, (३) विडविड्डइ और (४) रयइ वह निर्माण करती है-वह रचती है अथवा वह बनाती है।। ४-९४।।
समारचेरूवहत्थ-सारव-समार-केलायाः ॥४-९५॥ समारचेरेतेचत्वार आदेशा वा भवन्ति।। उवहत्थइ। सारवइ। समारइ। केलायइ। समारयइ।
अर्थः- 'रचना बनाना' अर्थक संस्कृत 'समारच' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से चार धातु (रूपों ) की आदेश प्राप्ति होती है। जो कि क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) उवहत्थ, (२)सारव, (३) समार और (४) केलाय।
वैकल्पिक पक्ष होने से 'समा+रच्' के स्थान पर 'समारय' भी होगा। उदाहरण इस प्रकार हैं:- समारचयति=(१)उवहत्थइ, (२) सारवइ, (३) समारइ, (४) केलायइ और (५) समारयइ-वह रचता है-वह बनाती है ।। ४-९५।।
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