Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 233
धवले र्दुमः।। ४-२४।। धवलयतेर्ण्यन्तस्य दुमादेशो वा भवति॥ दुमइ। धवलइ। स्वराणां स्वरा (बहुलम्) (४-२३८) इति दीर्घत्वमपि। दूमि धवलितमित्यर्थः।।
अर्थः- प्रेरणार्थक ‘ण्यन्त' प्रत्यय के साथ संस्कृत धातु 'धवल' के स्थान पर प्राकृत में विकल्प से 'दुम' धातु-रूप की आदेश प्राप्ति होती है। जैसेः-धवलयति दुमइ अथवा धवलइ-वह सफेद कराता है, वह प्रकाशमान कराता है।
सूत्र-संख्या ४-२३८ के विधान से प्राकृत भाषा के पदों में रहे हुए स्वरों के स्थान पर प्रायः अन्य स्वरों की अथवा दीर्घ के स्थान पर हस्व स्वर की और हस्व स्वर के स्थान पर दीर्घ स्वर की प्राप्ति हुआ करती है। जैसे:- धवलितम् दूमिअं अथवा दुमिअं-सफेद कराया हुआ अथवा प्रकाशमान कराया हुआ ।। ४-२४।।
तुले रोहामः।। ४-२५।। तुलेण्यन्तस्य ओहाम इत्यादेशो वा भवति। ओहामइ। तुलई।।
अर्थः- प्रेरणार्थक प्रत्यय ‘ण्यन्त' सहित संस्कृत धातु 'तुल' के स्थान पर प्राकृत में विकल्प से 'ओहाम' धातु रूप की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। जैसे :- तुलयति ओहामइ=वह तोल कराता है। पक्षान्तर में 'तुलइ =वह तोल कराता है।।४-२५।।
विरचेरोलुण्डोल्लुण्ड-पल्हत्थाः।।४-२६॥ विरेचयतेय॑न्तस्य ओलुण्डादयस्नय आदेशा वा भवन्ति।। ओलुण्डइ। उल्लुण्डइ। पल्हत्थइ। विरेअइ।। __ अर्थः- प्रेरणार्थक प्रत्यय 'ण्यन्त' सहित संस्कृत धातु 'विरेच्' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से तीन धातु आदेश हुआ करते हैं; जो कि क्रम से इस प्रकार हैं:- (१) ओलुण्ड, (२) उल्लुण्ड और (३) पल्हत्थ। पक्षान्तर में विरेअ रूप भी होगा। उदाहरण यों है:-विरेचयति-ओलुण्डइ, उल्लुण्डइ, पल्हत्थइ-वह बाहर निकलवाता है; वह विरेचन (झराना टपकाना) कराता है। पक्षान्तर में विरेचयति का विरेअइ रूप भी बनेगा।। ४-२६।।
तडेराहोड-विहोडौ।।४-२७।। तडेय॑न्तस्य एतावादेशो वा भवतः। आहोडइ। विहोडइ। पक्षे। ताडेइ।
अर्थः- प्रेरणार्थक प्रत्यय ‘ण्यन्त' सहित संस्कृत धातु 'तड्' के स्थान पर प्राकृत में 'आहोड' और 'विहोड' ऐसी दो धातुओं की विकल्प से आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में 'ताड' रूप की भी प्राप्ति होगी। जैसेः- ताडयति=आहोडइ और विहोडइ-वह मारपीट कराता है, वह ताड़ना कराता है। पक्षान्तर में तोडेइ' रूप होगा ।।४-२७।।
मिश्रेर्वीसाल-मेलवौ।।४-२८॥ मिश्रयतेय॑न्तस्य वीसाल मेलव इत्यादेशौ वा भवतः।। वीसालइ। मेलवइ। मिस्सइ।
अर्थः- प्रेरणार्थक प्रत्यय ‘ण्यन्त' सहित संस्कृत धातु 'मिथ्र' के स्थान पर प्राकृत भाषा में विकल्प से दो धातु-रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। वे हैं (१) वीसाल और मेलवा पक्षान्तर में 'मिस्स' रूप भी होगा। उदाहरण यों है:- मिश्रयति-वीसालइ और मेलवइ-वह मेल मिलाप कराता है, वह भेल संभेल कराता है। पक्षान्तर में मिस्सइ रूप होता है।।४-२८||
उद्धृलेर्गुण्ठः ॥ ४-२९॥ उद्भूलेर्ण्यन्तस्य गुण्ठ इत्यादेशो वा भवति।। गुण्ठइ। पक्षे। उद्धलेइ।।
अर्थः- प्रेरणार्थक प्रत्यय ‘ण्यन्त' सहित तथा उद् उपसर्ग सहित संस्कृत धातु 'धूल' के स्थान पर प्राकृत में 'गुण्ठ' धातु-रूप को विकल्प से आदेश प्राप्ति होती है। पक्षान्तर में उर्दूल रूप भी बनेगा। जैसे:-उद्धृलयति-गुण्ठइ अथवा उद्धृलेइ-वह ढंकाता है वह व्याप्त कराता है, वह अच्छिादित कराता है ।। ४-२९।।
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