Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 207 रोदिष्यामि संस्कृत क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूपान्तर रोच्छं होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१७१ से सम्पूर्ण-पद के स्थान पर प्राकृत-पद की आदेश प्राप्ति होकर रोच्छं रूप की सिद्धि हो जाती है। __इसी प्रकार से शेष सात प्राकृत-रूपों में वेच्छं, दच्छं, मोच्छं, वोच्छं, छेच्छं, भेच्छं और भोच्छं भी सूत्र-संख्या ३-१७१ से ही सस्कृत सम्पूर्ण क्रियापदों के रूपों की क्रमिक रूढ-रूपात्मक आदेश प्राप्ति होकर क्रम से ये प्राकृत क्रियापद के रूप स्वयमेव और अनायास ही सिद्ध हो जाते हैं। ३-१७१।।
सोच्छादय इजादिषु हि लुक् च वा।। ३-१७२।। श्वादीनां स्थाने इजादिषु भविष्यदादादेशेषु यथासंख्यं सोच्छादयो भवन्ति। ते एवादेशा अन्त्य स्वराद्यवयवर्जा इत्यर्थः। हिलुक् च वा भवति।। सोच्छिइ। पक्षे। सोच्छिहिइ। एवं सोच्छिन्ति। सोच्छिहिन्ति। सोच्छिसि। सोच्छिहिसि। सोच्छित्था। सोच्छिहित्था। सोच्छिह। सोच्छिहिह। सोच्छिमि। सोच्छिहिमि। सोच्छिस्सामि। सोच्छिहामि। सोच्छिस्स। सोच्छं। सोच्छिमो। सोच्छिहिमो। सोच्छिसामो। सोच्छिहामो। सोच्छिहिस्सा। सोच्छिहित्था। एवं मुमयोरपि। गच्छि।। गच्छिहिइ। गच्छिन्ति। गच्छिहिन्ति। गच्छिसि। गच्छिहिसि। गच्छित्था। गच्छिहित्था। गच्छिह। गच्छिहिह। गच्छिमि। गच्छिहिमि। गच्छिस्सामि। गच्छिहामि। गच्छिस्सं। गच्छं। गच्छिमो। गच्छिहिमो। गच्छिस्सामो। गच्छिहामो। गच्छिहिस्सा। गच्छिहित्था। एवं मुमयोरपि।। एवं रूदादीनामप्युदाहार्यम्।। ___ अर्थः- सूत्र-संख्या ३-१७१ में जिन संस्कृत धातुओं के प्राकृत-रूपान्तर भविष्यत्कालवाचक अवस्था के अर्थ में रूढ रूप से प्रदान किये गये हैं; उन रूढ रूपों में वर्तमानकालद्योतक पुरुष बोधक प्रत्ययों की संयोजना करने से उसी पुरुष बोधक अर्थ की अभिव्यंजना भविष्यत्काल के अर्थ में प्रकट हो जाती है। वैकल्पिक रूप से कभी-कभी उन रूढ रूपों के आगे भविष्यत कालबोधक-प्रत्यय 'हि' की अथवा तृतीय पुरुष के सद्भाव में 'स्सा, हा' की अथवा 'हिस्सा, हित्था' की प्राप्ति भी होती है। तत्पश्चात् पुरुष बोधक प्रत्ययों की जोड़ क्रिया की जाती है। सारांश यह है कि इन रूढ़ रूपों में भविष्यतकाल बोधक मूल प्रत्यय 'हि' का वैकल्पिक रूप से लोप होता है। शेष सम्पूर्ण क्रिया भविष्यत् के प्रदर्शन के अर्थ में अन्य धातुओं के समान ही इन रूढ प्राप्त धातु रूपों के लिये भी जानना चाहिये। उदाहरण इस प्रकार हैं-श्रोष्यति सोच्छिइ-वह सुनेगा। पक्षान्तर में भविष्यत्काल अर्थक प्रत्यय 'हि' की प्राप्ति होने पर। श्रोष्यति का प्राकृत-रूपांतर 'सोच्छिहिइ''वह सनेगा' ऐसा ही होगा। प्रथमपुरुष के बहुवचन का दृष्टान्तः-श्रोष्यन्ति-सोच्छिन्ति और पक्षान्तर में सोच्छिहिन्ति-वे सुनेंगे। द्वितीय पुरुष के एकवचन का दृष्टान्त :-श्रोष्यसि सोच्छिमि और पक्षान्तर में सोच्छिहिसि-तू सुनेगा। द्वितीय पुरुष के बहवचन का दृष्टांत :-श्रोष्यथ-सोच्छित्था और सोच्छिह: पक्षान्तर में सोच्छिहित्था और सोच्छिाहिह-तम सुनोगे। तृतीय पुरुष के एकवचन का दृष्टान्तः- श्रोष्यामि सोच्छिमि; पक्षान्तर में- सोच्छिहिमि, सोच्छिस्सामि, सोच्छिहामि, सोच्छिस्सं और सोच्छं-मैं सुनूँगा। तृतीय पुरुष के बहुवचन का दृष्टान्तः- श्रोष्यामः सोच्छिहिमो; पक्षान्तर में-सोच्छिम्सामी, सोच्छिहामो, सोच्छिहिस्सा, सोच्छिहित्था; सोच्छिहिमु और सोच्छिस्सामु तथा सोच्छिहामु; सोच्छिहिम और सोच्छिस्साम तथा सोच्छिहाम-हम सुनेंगे। इसी सिद्धान्त की संपुष्टि ग्रन्थकार पुनः 'गम् गच्छ' धातु द्वारा करते हैं:- प्रथमपुरुष के एकवचन का दृष्टान्त-गमिष्यति=गच्छिइ; पक्षान्तर में गच्छि-हिइ-वह जावेगा। प्रथमपुरुष के बहुवचन का दृष्टान्तःगमिष्यन्ति गच्छिन्ति; पक्षान्तर में गच्छिहिन्ति वे जावेंगे। द्वितीय पुरुष के एकवचन का दृष्टान्तः- गमिष्यसि-गच्छिसि; पक्षान्तर में गच्छिहिसि-तू जावेगा। द्वितीय पुरुष के बहुवचन का दृष्टान्तः- गमिष्यथ-गच्छित्था और गच्छिह; पक्षान्तर में गच्छिहित्था
और गच्छिहिह-तुम जाओगे। तृतीय पुरुष के एकवचन का दृष्टान्तः- गमिष्यामि गच्छिमि; पक्षान्तर में गच्छिहिमि, गच्छिस्सामि, गच्छिहामि, गच्छिस्सं और गच्छं-मैं जाऊँगा। तृतीय पुरुष के बहुवचन का दृष्टान्तः- गमिष्यामः-गच्छिमो; पक्षन्तर में गच्छिहिमो, गच्छिस्सामो, गच्छिहामो, गच्छिहिस्सा, गच्छिहित्था; गच्छिहिमु, गच्छिस्सामु, गच्छिहामु, गच्छिहिम, गच्छिस्साम और गच्छिहाम-हम जावेंगे। इसी प्रकार से शेष रही हुई उपर्युक्त धातुओं के भी रूप स्वयमेव समझ लेने चाहिये।
उपर्युक्त उदाहरणों में कुछ एक पुरुष बोधक प्रत्ययों से सम्बन्धित उदाहरण वृत्तिकार ने नही दिये हैं; उन्हें स्वयमेव जान लेना चाहिये; वे प्रत्यय इस प्रकार हैं:- ए, न्ते, इरे और से।
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