Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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228 : प्राकृत व्याकरण
अथ चतुर्थ पादः
इदितो वा ॥४-१॥ सूत्रे ये इदितो धातवो वक्ष्यन्ते तेषां ये आदेशास्ते विकल्पेन भवन्तीति वेदितव्यम्। तत्रैव चोदाहरिष्यते।।
अर्थः- यहाँ से आगे जिन सूत्रों में संस्कृत-धातुओं के स्थान पर प्राकृत में आदेश-विधि कही जायगी; उन सभी आदेश-प्राप्त धातुओं की स्थिति विकल्प से ही होती है; ऐसा जानना चाहिये। आदेश-प्राप्त धातुओं के उदाहरण यथास्थान पर, वहां पर ही प्रदर्शित किये जाएँगें। कहने का तात्पर्य यह है कि संस्कृत धातुओं के स्थान पर प्राकृत-भाषा में एक ही धातु के स्थान पर एक ही अर्थ वाली अनेक धातुओं के शब्द रूप पाये जाते हैं; उन सभी का संग्रह इस चतुर्थ-पाद में आदेश रूप से एवं वैकल्पिक रूप से किया गया है।।४-१।। कथेर्वज्जर-पज्जरोप्पाल-पिसुण-संघ-बोल्ल-चव-जम्प-सीस-साहाः ॥४-२।। __ कथे र्धातोर्वज्जरादयो दशादेशा वा भवन्ति।। वज्जरइ। पज्जरइ। उप्पालइ। पिसुणइ। संघई। बोल्लइ। चवइ। जम्पइ। सीसइ। साहइ।। उब्बुक्कइ इति तूत्पूर्वस्य बुक्क भाषणे इत्यस्य। पक्षे। कहइ।। एते चान्यैर्देशीषु पठिता अपि अस्माभिर्धात्वादेशीकृता विविधेषु प्रत्यधेषु प्रतिष्ठन्तामिति।। तथा च। वज्जरिओ कथितः वज्जरिऊण कथयित्वा। वज्ज-रणं कथनम्। वज्जरन्तो कथयन्। वज्जरिअव्वं कथयितत्व्यमिति रूप सहस्राणि सिध्यन्ति। संस्कृत-धातुवच्च प्रत्ययलोपागमादि विधिः।। ।
अर्थः- संस्कृत धातु 'कथ्' अर्थात् 'कहना' के स्थान पर प्राकृत भाषा में दस प्रकार के आदेश-रूपों की विकल्प से प्राप्ति होती है। जो कि इस प्रकार हैं:- कथ्= (१) वज्जर, (२) पज्जर, (३) उप्पाल, (४ पिसुण, (५) संघ, (६), बोल्ल, (७) चव (८) जम्प, (९) सीस और (१०) कह। इन धातुओं में और आगे आने वाली सब अकारान्त धातुओं में सूत्र-संख्या ४-२३९ से विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति होकर व्यंजनान्त धातुओं जैसी स्थिति से ये धातु 'अकारान्त' स्थिति को प्राप्त हुई हैं। इन अकारान्त रूप से दिखाई पड़ने वाली धातुओं के सम्बन्ध में इस स्थिति का सदैव ध्यान रहे।
वृत्ति में आदेश-प्राप्त धातुओं को उदाहरण पूर्वक इस प्रकार समझाया गया है:- कथयति-वज्जरइ, पज्जरइ, उप्पालइ, पिसणड. संघर्ड. बोल्लड.चवई. जम्पई.सीसड और साहडः इन दस ही धात रूपों का एक ही अर्थ है वह कहता है। चूंकि यह आदेश-विधि वैकल्पिक है अन्तः पक्षान्तर में कथयति के स्थान पर कहइ रूप भी होता है। प्रश्नः- 'उब्बुक्कइ' इस रूप की प्राप्ति कैसे होती है?
उत्तरः- बुक्क धातु का अर्थ भाषण करना होता है; न कि कथन करना; इसलिये बुक्क धातु को अधिकृत धातु कथ् के स्थान पर आदेश-स्थिति की प्राप्ति नहीं होती है। इस बुक्क धातु में उत्' उपसर्ग है; जो कि 'उ' अथवा 'उब्' के रूप में अवस्थित है। इस विवेचन से संस्कृत धातु रूप भाषते के स्थान पर प्राकृत में उब्बुक्कइ रूप की आदेश प्राप्ति हुई है।
संस्कृत-धातुओं के स्थान पर प्राकृत में उपलब्ध धातु-रूपों को अन्य वैयाकरणों ने 'देशी भाषाओं के धातु-रूपों की संज्ञा दी है; परन्तु हमने (हेमचन्द्र ने) तो इन धातु-रूपों को वैकल्पिक रूप से आदेश प्राप्त धातु ही मानी है, तथा ये प्राकृत भाषा की ही धातुएं हैं; ऐसा पूर्णतया मान लिया गया है; इसलिये इनमें विविध काल-बोधक प्रत्ययों को तथा आज्ञार्थक आदि सभी लकारों के एवं कृदन्तो के प्रत्ययों को जोड़ना चाहिये। थोड़े से उदाहरण इस प्रकार हैं:
(१) कथितः वज्जरिओ-कहा हुआ; (२) कथयित्वा-वज्जरिऊण कह करके; (३) कथनम् वज्जरणं-कहना, कथन करना; (४) कथयन् वज्जरन्तो कहता हुआ; (५) कथयितव्यम् वज्जरिअव्वं-कहना चाहिये; यों हजारों रूपों की साधना स्वयमेव कर लेनी चाहिये।
इन धातुओं में प्रत्यय, लोप, आगम' आदि की विधियाँ संस्कृत-धातुओं के समान ही जाननी चाहिये।४-२।।
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