Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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190 : प्राकृत व्याकरण
वर्तमाना-पञ्चमी-शतृषु वा।। ३-१५८।। __ वर्तमाना पंचमी शतृषु परत अकारस्य स्थाने एकारो वा भवति। वर्तमान। हसेइ हसइ। हसेम हसिम। हसेमु हसिमु॥ पञ्चमी। हसेउ हसउ। सुणेउ सुणउ।। शतृ। हसेन्तो हसन्तो।। क्वचिन्न भवति। जयइ॥ क्वचिदात्वमपि। सुणाउ।।
अर्थः- प्राकृत भाषा की अकारान्त धातुओं में वर्तमानकाल के पुरुष बोधक-प्रत्ययों का सद्भाव होने पर अथवा आज्ञार्थक या विधिअर्थक लकारों के प्रत्ययों का सद्भाव होने पर अथवा शतृ-बोधक याने वर्तमान-कृदन्त-द्योतक-प्रत्ययों का सद्भाव होने पर उन अकारान्त धातुओं में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ए' की प्राप्ति हुआ करती है। वर्तमानकाल से सम्बन्धित उदाहरण इस प्रकार हैं:- हसति-हसेइ अथवा हसइ-वह हँसता है। हसामः हसेम अथवा हसिम और हसेमु अथवा हसिमु-हम हंसते हैं। इन उदाहरणों में यह बतलाया गया है कि 'हस' धातु अकारान्त है और इसमें वर्तमानकाल द्योतक प्रत्यय 'इ' और 'म' की प्राप्ति होने पर इस 'हस' धातु के अन्त्य 'अ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ए' की प्राप्ति हुई है। इसी प्रकार से आज्ञार्थक और विधिअर्थक लकारों के उदाहरण भी इस प्रकार है:- हसतु-हसेउ अथवा हसउ-वह हँसे; श्रृणोतु (शृणोतु)-सुणेउ अथवा सुणउ-वह सुने; इन आज्ञार्थक-बोधक उदाहरणों से भी यही प्रतीत होता है कि अकारान्त धातु 'हस और सुण' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर आगे आज्ञार्थक-प्रत्यय का सद्भाव होने के कारण से वैकल्पिक रूप से 'ए' की प्राप्ति हुई है। वर्तमान-कृदन्त के उदाहरण यों हैं:- हसत् अथवा हसन्-हसेन्तो हसन्तो-हँसता हुआ; इस वर्तमान कृदन्त द्योतक उदाहरण में भी यही प्रदर्शित किया गया है कि प्राकृत धातु 'हस' के अन्त्यस्थ 'अ' के स्थान पर आगे वर्तमान-कृदन्त-द्योतक प्रत्यय 'न्त' का सद्भाव होने के कारण से वैकल्पिक रूप से 'ए' की प्राप्ति हुई है। इस प्रकार इस सूत्र में यह विधान निश्चित किया गया है कि वर्तमानकाल के आज्ञार्थ-विध्यर्थक लकार के और वर्तमानकाल कृदन्त के प्रत्यय परे रहने पर अकारान्त धातुओं के अन्त्यस्थ 'अ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ए' की प्राप्ति होती है। ___ कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि अकारान्त धातु के अन्त्यस्थ 'अ' के स्थान पर उपर्युक्त प्रत्ययों का सद्भाव होने पर भी 'ए' की प्राप्ति नहीं होती है। जैसे:- जयति जयइ वह जीतता है। यहाँ पर प्राकृत में 'जयेइ रूप नहीं बनेगा। कभी-कभी अकारान्त धातु के अन्त्यस्थ 'अ' के स्थान पर उपर्युक्त प्रत्ययों का सद्भाव होने पर 'आ' की प्राप्ति भी देखी जाती है। जैसे:- श्रृणोतु-सुणाउ वह श्रवण करे। इस उदाहरण में अकारान्त प्राकृत धातु 'सुण' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर आगे आज्ञार्थक-लकार के प्रत्यय का सद्भाव होकर 'आ' की प्राप्ति हो गई है। ___ हसति संस्कृत का अकर्मक रूप है। इसके प्राकृत रूप हसेइ और हसइ होते हैं। इनमें से प्रथम रूप से सूत्र-संख्या ३-१५८ से मूल प्राकृत अकारान्त धातु 'हस' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ए' की प्राप्ति और ३-१३९ से वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप हसेइ सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप हसइ की सिद्धि सूत्र-संख्या २-१९८ में की गई है। __हसामः संस्कृत का अकर्मक रूप है। इसके प्राकृत रूप हसेम, हसिम, हसेमु और हसिमु होते हैं। इनमें से प्रथम और तृतीय रूपों में सूत्र-संख्या ३-१५८ से मूल प्राकृत अकारान्त धातु 'हस' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ए' की प्राप्ति और ३-१४४ से क्रम से प्राप्तांग 'हसे और हसे' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के बहुवचनार्थ में संस्कृत प्रत्यय 'मस्' के स्थान पर प्राकृत में म से 'म और मु' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर प्रथम और तृतीय रूप 'हसेम और हसेमु' सिद्ध हो जाते हैं।
हसिम तथा हसिमु में सूत्र-संख्या ३-१५५ से मूल-प्राकृत अकारान्त धातु 'हस' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'इ' की प्राप्ति और ३-१४४ से क्रम से प्राप्तांग 'हसि और हसि' में वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के
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