Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 189 'क्त्वा' से सम्बन्धित उदाहरण इस प्रकार हैं:- हसित्वा-हसेऊण अथवा हसिऊण-हँस करके; हेत्वर्थक-कृदन्त-द्योतक संस्कृतीय प्राप्तव्य प्रत्यय 'तव्य' से सबधित उदाहरण इस प्रकार है:- हसितव्यम् हसेअव्वं अथवा हसिअव्वं हंसना चाहिये अथवा हँसी के योग्य है; भविष्यत् काल बोध प्रत्यय प्रत्ययों से सम्बन्धित उदाहरण इस प्रकार है:- हसिष्यति-हसेहिइ अथवा हसिहिइ-वह हँसेगा; इन उदाहरणों से प्रतीत होता है कि उपर्युक्त कृदन्तों में अथवा भविष्यत्काल के प्रयोग में अकारान्त धातुओं के अन्त्यस्थ स्वर 'अ' के स्थान पर या तो 'ए' की प्राप्ति होगी अथवा 'इ' की प्राप्ति होगी।
प्रश्नः- अकारान्त धातुओं के सम्बन्ध में ही ऐसा विधान क्यों बनाया गया है? अन्य स्वरान्त धातुओं के सम्बन्ध में ऐसे विधान की प्राप्ति क्यों नहीं होती है?
उत्तरः-चूँकि अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर ही 'ए' अथवा 'इ' की आदेश प्राप्ति पाई जाती है और अन्य किसी भी अन्य स्वर के स्थान पर 'ए' अथवा 'इ' की आदेश प्राप्ति नहीं पाई जाती है; इसलिये केवल अन्त्य 'अ' के लिये ही ऐसा विधान निश्चित किया गया है। जैसे:-कृत्वा काऊण करके इस उदाहरण में सम्बन्धक-भूत कृदन्त द्योतक प्रत्यय 'ऊण' का सद्भाव होने पर भी धातु आकारान्त होने से इस धातु के अन्त्यस्थ स्वर 'आ' के स्थान किसी भी प्रकार के अन्य स्वर की आदेश प्राप्ति नहीं हुई है। इस प्रकार यह सिद्धान्त निश्चित हुआ कि केवल अकारान्त धातुओं के अन्त्यस्थ 'अ' के स्थान पर ही क्त्वा', तुम-तव्य और भविष्य कालवाचक प्रत्ययों के परे रहने पर 'ए' अथवा 'इ' की आदेश प्राप्ति होती है; अन्य अन्त्यस्थ स्वरों के स्थान पर उपर्युक्त प्रत्ययों के परे रहने पर भी किसी भी अन्य स्वर की आदेश प्राप्ति नहीं होती है। ___ हसित्वा संस्कृत भूतकृदन्त का रूप है। इसके प्राकृत-रूप हसेऊण और हसिऊण होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१५७ से मूल प्राकृत धातु 'हस' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर क्रम से 'ए' और 'इ' प्राप्ति; ३-१४६ से संबन्ध कृदन्त-अर्थक प्राप्त संस्कृत प्रत्यय 'क्त्वा-त्वा' प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत में 'तूण' प्रत्यय की प्राप्ति और १-१७७ से प्राकृत में प्राकृत प्रत्यय 'तूण' में स्थित 'त्' का लोप होकर शेष रूप से प्राप्त 'ऊण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों प्राकृत रूप हसेऊण और हसिऊण सिद्ध हो जाते हैं। __ हसितुम संस्कृत का हेत्वर्थ-कृदन्त का रूप है। इसके प्राकृत रूप हसेउं और हसिउं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१५७ से मूल प्राकृत धातु 'हस' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर क्रम से 'ए' और 'इ' की प्राप्ति; ४-४४८ से हेत्वर्थ कृदन्त के अर्थ में संस्कृत में प्राप्तव्य प्रत्यय 'तुम्' के समान ही प्राकृत में भी 'तुम्' प्रत्यय की प्राप्ति; १-१७७ से प्राप्त प्रत्यय 'तुम्' में स्थित व्यञ्जन का लोप और १-२३ से 'त्' व्यञ्जन के लोप होने के पश्चात् शेष रहे हुए प्रत्यय रूप 'उम्' में स्थित अन्त्य हलन्त 'म्' के स्थान पर पूर्ण वर्ण 'उ' पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों प्राकृत रूप हसेउं और हसिउं सिद्ध हो जाते हैं।
हसितव्यम् संस्कृत का विधि-कृदन्त का रूप है। इसके प्राकृत रूप हसेअव्वं और हसिअव्वं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१५७ से मूल प्राकृत धातु 'हस' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर क्रम से 'ए' और 'इ' की प्राप्ति; ४-४४८ से विधि-कृदन्त के अर्थ में संस्कृत में प्राप्तव्य प्रत्यय 'तव्य' के समान ही प्राकृत में भी 'तव्य' प्रत्यय की प्राप्ति; १-१७७ से प्राप्त प्रत्यय 'तव्य' में स्थित 'त्' व्यञ्जन का लोप; ३-२५ से प्राप्तांग 'हसेअव्वं और हसिअव्वं' में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर पूर्व वर्ण 'व्व' पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों प्राकृत रूप हसेअव्वं और हसिअव्वं सिद्ध हो जाते हैं। __हसिष्यति संस्कृत का अकर्मक रूप है। इसके प्राकृत रूप हसेहिइ और हसिहिइ होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१५७ से मूल प्राकृत-धातु 'हस' में स्थित अन्त्य स्वर'अ' के स्थान पर आगे भविष्यत्काल बोधक प्रत्यय का कारण से क्रम से 'ए और इ' की प्राप्तिः ३-१६६ से क्रम से प्राप्तांग 'हसे और हसि' में भविष्यत-काल-अर्थक रूप के निर्माण के लिए 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति की और ३-१३९ से भविष्यत्काल-अर्थक रूप में निर्मित एवं प्राप्तांग 'हसेहि और हसिह' में प्रथम पुरुष के एकवचन में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर भविष्यतकाल का प्राकृत रूप हसेहिइ और हसिहिइ सिद्ध हो जाते है।
'काऊण' कृदन्त रूप की सिद्धि-सूत्र-संख्या १-२७ में की गई है।-३-१५७।। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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