Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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168 : प्राकृत व्याकरण
प्राप्ति होती है। उदाहरण इस प्रकार है:- हसाव: और हसाम: - हसामो अथवा हमामु अथवा हसाम = हम दोनों अथवा हम (सब) हँसते हैं या हँसती हैं। त्वरावहे और त्वरामहेतुवरामो अथवा तुवरामु अथवा तुवराम हम दोनों अथवा हम (सब) शीघ्रता करते हैं या शीघ्रता करती हैं।
हसावः और हसामः संस्कृत के वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के क्रम से द्विवचन के और बहुवचन के परस्मैपदीय अकर्मक क्रियापद के रूप हैं। इनके प्राकृत रूप दोनों वचनों में समान रूप से ही हसामो, हसामु और हसाम होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या ३ - १५५ से प्राकृत धातु 'हस' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति, ३ - १३० सेद्विवचन के स्थान पर बहुवचन का प्रयोग करने की आदेश प्राप्ति, यों प्राप्तांग 'हसा' में ३ - १४४ से वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के द्विवचनार्थ में एवं बहुवचनार्थ में संस्कृत में क्रम से प्राप्त प्रत्यय 'वस्' और 'मस्' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'मो मु, ' प्रत्ययों प्राप्ति होकर क्रम से द्विवचनीय अथवा बहुवचनीय प्राकृत रूप हसामो, हसामु और हसाम सिद्ध हो जाते हैं।
त्वराव और त्वरामहे संस्कृत के वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के क्रम से द्विवचन और बहुवचन के आत्मनेपदीय अकर्मक क्रियापद के रूप हैं। इनके प्राकृत रूप दोनों वचनों में समान रूप से ही तुवरामो, तुवरामु और तुवराम होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या ४-१७७ से संस्कृत मूल धातु 'त्वर' के स्थान पर प्राकृत में 'तुवर' रूप की आदेश प्राप्ति, ४ - २६९ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति, ३ - १३० से द्विवचन के स्थान पर बहुवचन का प्रयोग करने की आदेश प्राप्ति, यों प्राप्तांक धातु 'तुवर' में विकरण प्रत्यय 'अ' की प्राप्ति, ४-२५५ से प्राप्त विकरण प्रत्यय 'अ' के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति; ३ - १३० से द्विवचन के स्थान पर बहुवचन का प्रयोग करने 'आदेश प्राप्ति, यों प्राप्तांग - धातु 'तुवरा' में ३-१४४ से वर्तमानकाल तृतीय पुरुष के द्विवचनार्थ एवं बहुवचनार्थ में संस्कृत में क्रम से प्राप्त प्रत्यय 'वहे' और 'महे' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'मो मु, म' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर क्रम से द्विवचनीय बहुवचनीय प्राकृत-रूप तुवरामो, वराम और तुवराम सिद्ध हो जाते हैं । ३ -१४४ ।।
अत एवैच् से ।। ३-१४५।।
त्यादेः स्थाने यौ एच् से इत्येतावादेशौ उक्तौ तावकारान्तादेव भवतो नान्यस्मात् ।। हसए । हससे ॥ तुवरए । तुवरसे ।। कर करसे ।। अन इति किम् । ठाइ । ठासि ।। वसुआइ वसुआसि ।। होइ । होसि ।। एवकारोकारान्ताद् एच से एवं भवत इति विपरीतावधारण- निषेधार्थः । तेनाकारान्ताद् इच् सि इत्येतावपि सिद्धौ । हसइ । हससि ॥ वेवई । वेवसि ||
अर्थः- सूत्र - संख्या ३- १३९ में और ३-१४० में वर्तमानकाल के एकवचन में प्रथम पुरुष के अर्थ में तथा द्वितीय पुरुष के अर्थ में क्रम से जो 'एच् ए' एवं से' प्रत्यय का उल्लेख किया गया है, वे दोनों प्रत्यय केवल अकारान्त धातुओं में प्रयुक्त किये जा सकते हैं, इनका प्रयोग आकारान्त, ओकारान्त आदि धातुओं में नहीं किया जा सकता है। उदाहरण इस प्रकार है:- हसति = हसए वह हंसता है अथवा वह हंसती है। हससि हससे तू हंसता है अथवा तू हंसती है । त्वरते - तुवरए - वह जल्दी करता है अथवा वह जल्दी करती है । त्वरसे तूवरसे - तू जल्दी करता है अथवा तू जल्दी करती है। करोति-करए-वह करता है अथवा वह करती है। करोषि = करसे तू करता है अथवा तू करती है । इत्यादि ।
प्रश्नः- अकारान्त धातुओं में ही 'ए' तथा 'से' का प्रयोग किया जा सकता है, ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तरः- अकारान्त धातुओं के अतिरिक्त आकारान्त, ओकारान्त धातुओं में इन 'ए' तथा 'से' प्रत्ययों का प्रयोग कभी भी नहीं होता है और अकारान्त धातुओं के अतिरिक्त शेष धातुओं में केवल 'इ' तथा 'सि' का ही प्रयोग होता है, ऐसी निश्चात्मक स्थित होने से ही 'अकारान्त' जैसे विशेषणात्मक शब्द की संयोजना करनी पड़ी है। उदाहरण इस प्रकार है:तिष्ठति=ठाइ= वह ठहरता है अथवा वह ठहरती है । तिष्ठसि ठासि= तू ठहरता है अथवा तू ठहरती है। उद्वाति-वसुआइ=वह सूखता है अथवा वह सूखती है। उद्वासि वसुआसि तू सूखता है अथवा तू सूखती है । भवति - होइ - वह होता है अथवा वह होती है। भवसि=होसि=तू होता है अथवा तू होती है, इत्यादि ।
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