Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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180 : प्राकृत व्याकरण
करिज्जर में सूत्र - संख्या ३ - १५३ से मूल प्राकृत धातु 'कर' में स्थित आदि स्वर 'अ' के स्थान पर आगे प्रेरणार्थक भाव सूचक प्रत्यय के सद्भाव का ३ - १५२ द्वारा लोप कर देने से 'आ' की प्राप्ति; १ - १० से प्राप्तांग 'कार' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' का आगे प्राप्त कर्मणि प्रयोग वाचक प्रत्यय इज्ज' में स्थित ह्रस्व स्वर 'इ' का सद्भाव होने से लोप; ३ - १६० से प्राप्तांग हलन्त 'कार' में कर्मणि प्रयोग वाचक प्रत्यय 'इज्ज' की प्राप्ति; १-५ से हलन्त 'कार' के साथ में उक्त प्राप्त प्रत्यय 'इज्ज' की संधि होकर 'कराविज्ज' अंग की प्राप्ति और ३- १३९ से प्राप्तांग 'कारिज्ज' में वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ते' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर तृतीय रूप कारिज्जइ सिद्ध हो जाता है।
कराविज्जई में सूत्र-संख्या ३ - १५२ से मूल प्राकृत - धातु 'कर' में प्रेरणार्थक-प्रत्यय 'आदि' की प्राप्ति; १-५ से 'कर' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के साथ में आगे रहे हुए 'आवि' प्रत्यय के आदि स्वर 'आ' की संधि होकर 'कवि' अंग की प्राप्ति; १-१० से प्राप्तांग 'करावि' में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'इ' का आगे कर्मणि-प्रयोग-सूचक प्राप्त प्रत्यय 'इज्ज' में स्थित आदि ह्रस्व स्वर 'इ' का सद्भाव होने से लोप, ३- १६० से प्राप्तांग हलन्त 'कराव्' में कर्मणि-प्रयोगवाचक प्रत्यय 'इज्ज' की प्राप्ति; १-५ से हलन्त 'कराव' के साथ में उक्त प्राप्त प्रत्यय 'इज्ज' की संधि होकर 'कराविज्ज' अंग की प्राप्ति और ३-१६९ से प्राप्तांग 'कराविज्ज' में वर्तमानकाल के प्रथम पुरुष के एकवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'ते' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर चतुर्थ रूप कराविज्जई सिद्ध हो जाता है।
हास्यते संस्कृत का कर्मणि वाचक रूप है। इसके प्राकृत रूप हासीअइ, हसावीअइ, हासिज्जइ और हसाविज्जइ । इनमें से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या ३ - १५३ से मूल प्राकृत धातु 'हस' में स्थित आदि स्वर 'अ' के स्थान पर आगे प्रेरणार्थक-भाव-सूचक प्रत्यय के सद्भाव का ३ - १५२ द्वारा लोप कर देने से 'आ' की प्राप्ति; १- १० से प्राप्तांग 'हास' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के आगे प्राप्त कर्मणि वाचक प्रत्यय 'ईअ' में स्थित दीर्घस्वर 'ई' का सद्भाव होने से लोप; ३-१६० से प्राप्तांग हलन्त 'हास्' में कर्मणि-प्रयोग वाचक-प्रत्यय 'ईअ' की प्राप्ति; १-५ से हलन्त 'हास्' के साथ में उक्त प्राप्त प्रत्यय 'इअ' की संधि हो जाने से 'हासीअ' अंग की प्राप्ति और ३- १३९ से प्राप्तांग 'हासीअ' में वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ते' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप हासीअइ सिद्ध हो जाता है।
हसावीअइ में सूत्र-संख्या ३ - १५२ से मूल प्राकृत धातु 'हस्' में प्रेरणार्थक-प्रत्यय 'आवि' की प्राप्ति; १-५ से 'हस' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के साथ में आगे रहे हुए 'आवि' प्रत्यय के आदि स्वर 'आ' की संधि; ३ - १६० से प्राप्तांग 'हसावि' में कर्मणि-प्रयोगवाचक प्रत्यय 'ईअ' की प्राप्ति; १-५ से प्राप्तांग 'हसावि' में स्थित अन्त्य ह्रस्व स्वर 'इ' के साथ में आगे प्राप्त प्रत्यय 'ईअ' में स्थित आदि दीर्घ स्वर 'ई' की संधि होकर दोनों स्वरों के स्थान पर दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति और ३-१३९ से प्राप्तांग 'हसावीअ' में वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ते' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर द्वितीय रूप हसावीअइ सिद्ध हो जाता है।
हासिज्ज में सूत्र - संख्या ३ - १५३ से मूल प्राकृत धातु 'हस' में स्थित आदि स्वर 'अ' के स्थान पर आगे प्रेरणार्थक भाव सूचक प्रत्यय के सद्भाव का ३- १५२ द्वारा लोप कर देने से 'आ' की प्राप्ति; १ - १० से प्राप्तांग 'हास' में स्थित अन्त्य स्वर ‘अ' के आगे प्राप्त कर्मणि-प्रयोग-वाचक प्रत्यय 'इज्ज' में स्थित हस्व स्वर 'इ' का सद्भाव होने से लोप; ३-१६० से प्राप्तांग हलन्त हास् में कर्मणि-प्रयोग-वाचक प्रत्यय 'इज्ज' की प्राप्ति; १-५ से हलन्त 'हास्' के साथ में उक्त प्राप्त प्रत्यय 'इज्ज' की संधि हो जाने से 'हासिज्ज' अंग की प्राप्ति और ३- १३९ से प्राप्तांग 'हासिज्ज' में वर्तमानकाल के प्रथमपुरुष: एक-वचन में संस्कृत प्रत्यय 'ते' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर तृतीय रूप हासिज्जइ सिद्ध हो जाता है।
हसाविज्जइ में सूत्र- संख्या ३ - १५२ से मूल प्राकृत धातु 'हस' में प्रेरणार्थक प्रत्यय 'आवि' की प्राप्ति; १-५ से 'हस' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के साथ में आगे रहे हुए प्रत्यय 'आवि' के आदि स्वर 'आ' की संधि होकर 'हसावि' अंग की प्राप्ति; १ - १० से प्राप्तांग 'हसावि' में स्थित अन्त्य ह्रस्व स्वर 'इ' के आगे कर्मणि-प्रयोग - सूचक प्रत्यय 'इज्ज' में स्थित आदि ह्रस्व स्वर 'इ' का सद्भाव होने से लोप; ३ - १६० से प्राप्तांग हलन्त 'हसाव्' में कर्मणि-प्रयोग-वाचक प्रत्यय 'इज्ज'
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