Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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138 : प्राकृत व्याकरण 'चउण्ह' होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१७७ से 'त्' का लोप; २-७९ से 'र' का लोप और ३-१२३ से प्राप्तांग 'चउ' में षठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ह' और 'ण्ह' प्रत्ययों की क्रम से आदेश प्राप्ति होकर दोनों रूप'चउण्ह' और 'चउण्ह सिद्ध हो जाते हैं।
पञ्चानाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है। इसके प्राकृत रूप पञ्चण्ह और पञ्चण्हं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१२३ से संस्कृत के समान ही प्राकृत अंग रूप 'पञ्च' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ण्ह' ओर ‘ण्ह' प्रत्ययों की क्रम से आदेश प्राप्ति होकर दोनों रूप 'पञ्चण्ह' और 'पञ्चण्ह' सिद्ध हो जाते हैं।
षण्णाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है। इसके प्राकृत रूप 'छण्ह' और 'छण्ह होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-२६५ से मूल संस्कृत शब्द 'षट्' में स्थित 'ष' व्यञ्जन के स्थान पर प्राकृत में छ' व्यञ्जन की आदेश प्राप्ति; १-११ से (अथवा २-७७ से) अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'ट' का लोप और ३-१२३ से प्राप्तांग 'छ' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'पह' और 'ण्ह' प्रत्ययों की क्रम से
आदेश प्राप्ति होकर दोनों रूप 'छण्ह' और 'छण्ह सिद्ध हो जाते हैं। ___ सप्तानाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप हैं। इसके प्राकृत रूप 'सत्तण्ह' और 'सत्तण्ह होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या २-७७ से मूल संस्कृत शब्द 'सत्त' में स्थित हलन्त 'प' का लोप; २-८९ से लोप हुए 'प' के पश्चात् शेष रहे हुए 'त' को द्वित्व 'त्त' की प्राप्ति और ३-१२३ से प्राप्तांग ‘सत्त' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत मं‘ण्ह' और 'अहं' प्रत्ययों की क्रम से आदेश प्राप्ति होकर दोनों रूप 'सत्तण्ह'
और 'सत्तण्ह सिद्ध हो जाते हैं। __अष्टानाम् सस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है। इसके प्राकृत रूप अट्टण्ह और अटुण्हं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या २-२४ से मूल संस्कृत शब्द 'अष्ट' में स्थित संयुक्त व्यञ्जन 'ट' के स्थान पर 'ठ' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'ठ' को द्वित्व 'ठठ्' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ठ्' के स्थान पर 'ट्' की प्राप्ति और ३-१२३ से प्राप्तांग 'अट्ठ' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'ह' और ण्ह' प्रत्ययों की आदेश प्राप्ति होकर दोनों रूप 'अट्ठण्ह' और 'अट्ठण्ह सिद्ध हो जाते हैं।
नवानाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है। इसका प्राकृत रूप 'नवण्ह' होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१२३ से मूल संस्कृत के समान ही प्राकृत अंग रूप 'नव' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ण्ह' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर 'नवण्ह' रूप सिद्ध हो जाता हैं। ___ दशानाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और विशेषण) रूप है। इसका प्राकृत रूप 'दसण्ह' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२६० से 'श' के स्थान पर 'स्' की प्राप्ति; १-८४ से प्रथम दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति और ३-१०३ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में पहं' प्रत्यय की आदेश-प्राप्ति होकर 'दसण्हं रूप सिद्ध हो जाता है।
पञ्चदशानाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त संख्यात्मक सर्वनाम (और (विशेषण) रूप है। इसका प्राकृत रूप पण्णरसण्हं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-४३ से संयुक्त व्यञ्जन 'ज' के स्थान पर 'ण' वर्ण की आदेश प्राप्ति; २-८९ से आदेश-प्राप्त 'ण' की द्वित्व ण्ण' को प्राप्ति; १-२१९ से 'द' वर्ण के स्थान पर 'र' वर्ण को आदेश प्राप्ति; १-२६० से 'श् के स्थान पर 'स्' की प्राप्ति; १-८४ से प्रथम दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति और ३-१२३ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'आम' के स्थानीय रूप'नाम' के स्थान पर 'ण्ह' प्रत्यय को आदे
आदेश पाप्ति होकर 'पण्णरसण्ड' रूप सिद्ध हो जाता है।
दिवसानाम संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त रूप है। इसका प्राकृत रूप दिवसाणं होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-१२ से मूल संस्कृत के समान ही प्राकृत अंग रूप 'दिवस' में स्थित अन्त्य हस्व स्वर 'अ' के स्थान पर आगे षष्ठी बहुवचन
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