Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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148 : प्राकृत व्याकरण पेच्छ-मालाओ को देखो; इस उदाहरण में आकारान्त शब्द 'माला' में द्वितीया विभक्ति से संबंधित 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होने पर भी अकारान्त शब्द 'वच्छ+ (शस्=) लुक'=वच्छे के समान शब्दान्त्य स्वर 'आ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति नहीं हुई है। मालाभिः कृतम् मालाहि कयं-मालाओं से किया हुआ है; इस दृष्टान्त में भी 'अन्त्य स्वर आ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति नहीं हुई है। मालाभ्यः आगतः मालाहिन्तो, मालसुन्तो आगओ-मालाओं से आया हुआ है। इस पंचमी बहुवचनान्त उदाहरण में भी 'वच्छेहिन्तो, वच्छेसुन्तो के समान अन्त्य स्वर 'आ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति नहीं हुई है। मालासु स्थितम् मालासु ठिअं-मालाओं पर रक्खा हुआ है। इसमें भी वच्छेसु के समान अन्त्य स्वर 'आ' स्थान पर 'ए' की प्राप्ति नहीं हुई है। इसी प्रकार से इकारान्त, उकारान्त शब्दों का एक-एक उदाहरण इस प्रकार है:- अग्नीन् अग्गिणो=अग्नियों को; इस उदाहरण में द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में 'वच्छे' के समान अग्नि अग्गि-शब्दान्त्य स्वर 'इ' के स्थान पर 'ए' का सद्भाव नहीं हुआ है। वायून-वाउणो वायुओं को; इसमें भी 'वच्छे' के समान द्वितीया बहुवचनात्मक प्रत्यय का सद्भाव होने पर भी वायु-वाउ-शब्दान्त्य स्वर 'उ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति नहीं हुई है। यों अन्य उदाहरणों की कल्पना स्वयमेव कर लेना चाहिये; ऐसा संकेत वृत्तिकार ने वृत्ति में प्रदत्त शब्द 'इत्यादि से किया है।
'हाहाण' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१२४ में की गई है। 'कयं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१२६ में की गई है। 'मालाओ' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-२७ में की गई है। 'पेच्छ' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२३ में की गई है।
'मालाभिः' संस्कृत तृतीया बहुवचनान्त स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप मालाहि होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-७ से तथा ३-१२४ के निर्देश से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'भिस्' के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मालाहि रूप सिद्ध हो जाता है।
'कयं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१२६ में की गई है। .. 'मालाहिन्तो' और मालासुन्तो रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१२७ में की गई है।
आगओ सूत्र की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२०९ में की गई है।
मालासु संस्कृत सप्तमी बहुवचनान्त स्त्रीलिंग रूप है। इसका प्राकृत रूप भी मालासु होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-४४८ से सप्तमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'सुप=सु के समान ही प्राकृत में भी 'सु' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मालासु रूप सिद्ध हो जाता है।
"ठिअं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१६ में की गई है। 'अग्गिणो और वाउणो' रूपों की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-२० में की गई है। ३-१२९।।
द्विवचनस्य बहुवचनम्।। ३-१३०।। सर्वासां विभक्तिनां स्यादीनां त्यादीनां च द्विवचनस्य स्थाने बहुवचनं भवति ॥ दोण्णि कुणन्ति। दुवे कुणन्ति। दोहिं। दोहिन्तो। दोसुन्तो। दोसु। हत्था।। पाया। थणया। नयणा। ____ अर्थः-सभी प्रकार के शब्दों में सभी विभिक्तियों के प्रत्ययों की संयोजना होने पर संस्कृत प्राप्तव्य द्विवचन के प्रत्ययों के स्थान पर प्राकृत में बहुवचन के प्रत्ययों की प्राप्ति हुआ करती है। इसी प्रकार से सभी धातुओं में सभी लकारों के अथवा काल के प्रत्ययों की संयोजना होने पर संस्कृत प्राप्त द्विवचन बोधक प्रत्ययों के स्थान पर प्राकृत में बहुवचन के प्रत्ययों की प्राप्ति हुआ करती है। प्राकृत भाषा में संस्कृत भाषा के समान द्विवचन बोधक प्रत्ययों का अभाव है; तदनुसार द्विवचन के स्थान पर प्राकृत में बहुवचन का ही प्रयोग हुआ करता है। यह सर्व सामान्य नियम सभी शब्दों के लिये तथा
सभी धातुओं के लिये समझना चाहिये। इस सिद्धान्तानुसार प्राकृत में केवल दो ही वचन हैं- एकवचन और बहुवचन के Jain Education International For Private & Personal Use Only
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