Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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104 : प्राकृत व्याकरण
'पेच्छ' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२३ में की गई है। ___ इमान् संस्कृत द्वितीया बहुवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप 'णे' और 'इमे' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में 'ण' अंग रूप की प्राप्ति उपर्युक्त रीति अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१४ से प्राप्तांग 'ण' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर आगे द्वितीया विभक्ति बहुवचन के प्रत्यय का सद्भाव होने से 'ए' की प्राप्ति
और ३-४ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'शस्' का प्राकृत में लोप होकर प्रथम रूप 'णे' सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप 'इमे' की सिद्ध सूत्र-संख्या ३-७२ में की गई है। 'पेच्छ' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२३ में की गई है।
अनेन संस्कृत तृतीया एकवचनान्त पुल्लिग सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप 'णेण' और 'इमेण' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में 'ण' अंग रूप की प्राप्ति उपर्युक्त रीति अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१४ से प्राप्तांग 'ण' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'आगे तृतीया विभक्ति एकवचन के प्रत्यय का सद्भाव होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३-६ से प्राप्तांग ‘णे' में तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'णेण' सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप 'इमेण' की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-७२ में की गई है।
एभिः संस्कृत तृतीया बहुवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है इसके प्राकृत रूप णेहि और 'इमेहि' होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में 'ण' अंग रूप की प्राप्ति उपर्युक्त रीति-अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१५ से प्राप्तांग 'ण' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' के स्थान पर 'आगे तृतीया विभक्ति बहुवचन के प्रत्यय का सद्भाव होने से 'ए' की प्राप्ति और ३-७ से प्राप्तांग णे' में तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'भिस्' के स्थान पर प्राकृत में 'हि' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप 'णेहि' सिद्ध हो जाता है। __ द्वितीया रूप-(एभिः=) इमेहि में सूत्र-संख्या ३-७२ से मूल संस्कृत शब्द 'इदम्' के स्थान पर प्राकृत में 'इम' अंग रूप की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही सूत्र-संख्या ३-१५ एवं १-७ से प्राप्त होकर द्वितीय रूप 'इमेहि भी सिद्ध हो जाता है। कयं क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-१२६ में की गई है।।३-७७।।
अमेणम् ।। ३-७८ ।। इदमोमा सहितस्य स्थाने इणम् इत्यादेशो वा भवति।। इणं पेच्छ। पक्षे। इम।
अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'इदम्' के द्वितीया विभक्ति के एकवचन में पुल्लिंग प्राप्तव्य प्रत्यय 'अम्' की संयोजना होने पर प्राप्त रूप 'इमम्' के स्थान पर प्राकृत में 'इणम्' रूप की आदेश प्राप्ति वैकल्पिक रूप से हुआ करती है। इसमें यह स्थित बतलाई गई है कि- 'इदम् शब्द और अम् प्रत्यय' इन दोनों के स्थान पर 'इणम्' रूप की आदेश प्राप्ति वैकल्पिक रूप से हुआ करती है। जैसे:- इमम् पश्य-इणं पेच्छ अर्थात् इसको देखो। वैकल्पिक पक्ष का सद्भाव होने से पक्षान्तर में इमम् का प्राकृत रूप 'इम' भी होता है। __ इमम् संस्कृत द्वितीया एकवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप इणं और इमं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या ३-७८ से सम्पूर्ण संस्कृत रूप 'इमम्' के स्थान पर प्राकृत में 'इणं रूप की आदेश प्राप्ति होकर प्रथम रूप इणं सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप इमं की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-७२ में की गई है। 'पेच्छ' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२३ में की गई है।३-७८।।
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