Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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106 : प्राकृत व्याकरण
३-८० से मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'किम्' में द्वितीया विभक्ति के एकवचन में 'अस्' प्रत्यय की संयोजना होने पर शब्द सहित प्रत्यय के स्थान पर 'किं' रूप की नित्यमेव आदेश प्राप्ति होकर किं रूप सिद्ध हो जाता है।
'ते' संस्कृत चतुर्थी एकवचनान्त सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप भी 'ते' ही होता. इसमें सूत्र - संख्या ३ - ९९ से मूल संस्कृत शब्द 'युष्मद्' में संयोजित चतुर्थी एकवचन बोधक संस्कृत प्रत्यय 'ङ' के कारण से संस्कृत आदेश प्राप्त रूप 'ते' के स्थान पर प्राकृत में भी 'ते' रूप की आदेश प्राप्ति और ३ - १३१ चतुर्थी षष्ठी की एकरूपता प्राप्त होकर प्राकृत रूप 'ते' सिद्ध हो जाता है।
प्रतिभाति संस्कृत क्रियापद रूप है। इसका प्राकृत रूप पडिहाइ होता है। इसमें सूत्र - संख्या २- ७९ से 'र्' का लोप; १-२०६ से प्रथम 'त्' के स्थान पर 'ड्' की प्राप्तिः १ - १८७ से भ्' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३- १३९ से वर्तमानकाल प्रथमपुरुष एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ति' के स्थान पर प्राकृत में 'इ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पडिहाइ रूप सिद्ध हो जाता है ।। ३-८० ।।
इदम् तद् एतद् इत्येतेषां स्थाने ङस् आम् इत्येताभ्यां सह यथासंख्यं से सिम् इत्यादेशौ वा भवतः।। इदम् । से सीलम् । से गुणा । अस्य शीलं गुणा वेत्यर्थः ।। सिं उच्छाहो। एषाम् उत्साह इत्यर्थः । तद् । से सीलं । तस्य तस्या वेत्यर्थः।। सिं गुणा । तेषां तासां वेत्यर्थः । एतद् । से अहिअं । एतस्याहितमित्यर्थः । । सिं गुणा । सिं सीलं । एतेषां गुणा । शीलं वेत्यर्थः । पक्षे । इमस्स । इमेसिं । इमाण ।। तस्स । तेसिं। ताण ।। एअस्स। एएसिं। एआण । इदं तदोरामापि से आदेशं कश्चिदिच्छति ।।
अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'इदम्, तद् और एतद्' के प्राकृत रूपान्तर में षष्ठी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङस्' और षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'आम्' की संयोजना होने पर मूल उक्त शब्दों और प्रत्ययों दोनों के स्थान पर वैकल्पिक रूप से एवं क्रम से 'से' रूप की तथा 'सिम्' रूप की आदेश प्राप्ति होती है। विशेष स्पष्टीकरण इस प्रकार है:
(१) इद्म+ङस
(२) इदम्+आम्
(३) तद्+ङस्
(४) तद्+ङस्
(५) तद्+आम् (६) तद्+आम्
(७) एतद् +ङस्
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वेदं तदे तदो ङसाम्भ्यां से सिमौ ॥३-८१ ।।
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(अस्य)
(एषाम्)
(तस्य)
(स्त्रीलिंग में तस्याः)
(तेषाम्)
(स्त्रीलिंग में तासाम्)
का प्राकृत आदेश प्राप्त रूप
का प्राकृत आदेश प्राप्त रूप
का प्राकृत आदेश प्राप्त रूप
का प्राकृत आदेश प्राप्त रूप
का प्राकृत आदेश प्राप्त रूप का प्राकृत आदेश प्राप्त रूप
का प्राकृत आदेश प्राप्त रूप
(एतस्य = ) (एतेषां=)
(८) एतद्+आम्
का प्राकृत आदेश प्राप्त रूप
इस प्रकार शब्द और प्रत्यय दोनों के स्थान पर उक्त रूप से 'से' अथवा 'सिं' रूपों की षष्ठी विभक्ति एकवचन में एवं बहुवचन में क्रम से तथा वैकल्पिक रूप से आदेश प्राप्ति हुआ करती है । वाक्यात्मक उदाहरण इस प्रकार है: - 'इदम् ' से संबंधित :- अस्य शीलम् = से सीलं अर्थात् इसका शील-धर्म; अस्य गुणा:- से गुणा अर्थात् इसके गुण-धर्म; एषाम् उत्साहः=सिं उच्छाहो अर्थात् इनका उत्साह । 'तद्' से संबंधितः तस्य शीलम् =से सीलं अर्थात् उसका शील-धर्म; तस्याःशीलं=से सीलं अर्थात् उस (स्त्री) का शील-धर्म; तेषाम! गुणाः- सिं गुणा- उनके गुण-धर्म; तासाम् गुणाः=सिं गुणा अर्थात् उन (स्त्रियों) के गुण-धर्म | 'एतद्' से संबंधित :- एतस्य अहितम् - से अहिअं अर्थात् इसकी हानिं अर्थात् अहित; एतेषाम् गुणा=सिं गुणा अर्थात् इनके गुण-धर्म और एतेषाम् शीलम् = सिंह सीलं अर्थात् इनका शील-धर्म । इन उदाहरणों से
'से''
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'सिं" ।
'सें'।
'से''
'सिं'।
'सें'।
'से' ।
'सिं'।
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