Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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118 : प्राकृत व्याकरण
शेष दो रूपों में-(याने यूयम्-) तुम्हे ओर तुझे में सूत्र-संख्या ३-१०४ से आदेश प्राप्त द्वितीय रूप 'तुब्भे' में स्थित 'ब्भ' अंश के स्थान 'म्ह और 'ज्झ' अंश रूप की आदेश प्राप्ति होकर क्रम से सातवां और आठवां रूप 'तुम्हे एवं तुझे भी सिद्ध हो जाते हैं। ___ तिष्ठथ संस्कृत अकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप चिट्ठह होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-१६ से संस्कृत आदेश-प्राप्त रूप 'तिष्ठ' की मूल धातु 'स्था' के स्थान पर प्राकृत में चिट्ठ' रूप की आदेश प्राप्ति और ३-१४३ से वर्तमानकाल के द्वितीय पुरुष के बहुवचन में संस्कृत प्राप्तव्य परस्मैपदीय प्रत्यय 'थ' के स्थान पर प्राकृत में 'ह' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर चिट्ठह रूप सिद्ध हो जाता है।।३-९१।।
तं तुं तुमं तुवं तुह तुमे तुए अमा ।। ३-९२।। युष्मदोमा सह एते सप्तादेशा भवन्ति ।। तं तुं तुमं तुह तुमे तुए वन्दामि।।
अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' के द्वितीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'अम्म्' की संयोजना होने पर मल शब्द और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर आदेश-प्राप्त संस्कत रूप 'त्वाम' के स्थान पर प्राकत में क्रम से सात रूपों की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। वे सात रूप क्रम से इस प्रकार हैं:- तं, तुं, तुमं, तुवं, तुह, तुमे और तुए। उदाहरण इस प्रकार है:- (अहम्) त्वाम् वन्दामि= (अहं) तं, (अथवा) तुं, (अथवा) तुमं, (अथवा) तुवं, (अथवा) तुह, (अथवा) तुमे और (अथवा) तुए वन्दामि अर्थात् (मैं) तुझे वन्दन करता हूं।
त्वाम् संस्कृत द्वितीया एकवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप सात होते हैं। तं, तुं, तुम, तुवं, तुह, तुमे और तुए। इन सातों रूपों में सूत्र-संख्या ३-९२ से संस्कृत रूप 'त्वाम्' के स्थान पर क्रम से इन सातों रूपों की आदेश प्राप्ति होकर ये सातों रूप क्रम से 'तं, तुं, तुम तुवं, तुह, तुमे और तुए सिद्ध हो जाते हैं। 'वन्दामि क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-६ में की गई है।।३-९२।।
वो तुज्झ तुब्भे तुम्हे उव्हे भे शसा ॥३-९३॥ युष्मदः शसा सह एते षडादेशा भवन्ति। वो तुज्झ तुब्भ।। ब्भो म्हज्झौ वेति वचनात् तुम्हे तुझे तुम्हे उय्हे भे पेच्छामि।। ____ अर्थः-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' के द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'शस्=अस्' की संयोजना होने पर 'मूल शब्द और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर आदेश-प्राप्त संस्कृत रूप 'युष्मान्' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से छह रूपों की आदेश प्राप्ति हआ करती है। वे छह रूप क्रम से इस प्रकार हैं:- वो. तज्झ. तब्भे, तय्हे. उय्हे और भे।
धान से आदेश-प्राप्त ततीय रूप तब्भे में स्थित 'ब्भ' अंश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'म्ह' और 'ज्झ' अश रूप का क्रम से आदेश प्राप्ति हुआ करती है; तद्नुसार उक्त छः रूपों के अतिरिक्त दो रूप और इस प्रकार होते हैं:- 'तम्हे और तज्ञयों 'यष्मान' के स्थान पर प्राकत में कल आठ रूपों की क्रम से (एवं वैकल्पिक रूप से) आदेश प्राप्ति हुआ करती है। उदाहरण इस प्रकार है:- (अहम्) युष्मान् प्रेक्षे-वो, (अथवा) तुज्झ, (अथवा) तुब्भे, (अथवा) तुम्हे, (अथवा) तुझे (अथवा) तुम्हे, (अथवा) उव्हे और (अथवा) भे पेच्छामि अर्थात् (मैं) आप (सभी) को देखता हूं।
युष्मान् संस्कृत द्वितीया बहुवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप आठ होते हैं:- वो, तुज्झ, तुब्भे, तुम्हे, तुज्झे, तुम्हे, उव्हे, और भे। इन आठों रूपों में सूत्र-संख्या ३-९३ से संस्कृत रूप 'युष्मान् के स्थान पर क्रम से इन आठों रूपों की आदेश प्राप्ति होकर ये आठों रूप क्रम से 'वो, तुज्झ तुब्भे, तुम्हे, तुज्झे, तुम्हे, उव्हे और भे' सिद्ध हो जाते हैं।
प्रेक्षे संस्कृत आत्मनेपदीय सकर्मक क्रियापद का रूप है। इसका प्राकृत रूप पेच्छामि होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से मूल संस्कृत धातु 'प्रेक्ष' में स्थित 'र' का लोप; ३-३ से 'क्ष्' के स्थान पर 'छ' की प्राप्ति; २-८९ से आदेश-प्राप्त
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