Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 123 उपर्युक्त प्राप्त दस रूपों में से छट्टे रूप से लगाकर दशवें रूप के अन्त में आगम रूप अनुस्वार की वैकल्पिक रूप से प्राप्ति हुआ करती है; तदनुसार पांच रूपों का निर्माण और इस प्रकार होता है :- तुब्भाणं, तुवाणं, तुमाणं, तुहाणं, और उम्हाणं। सूत्र - संख्या ३ - १०४ के विधान से उपर्युक्त प्रथम दस रूपों में से चौथे, पांचवें और छट्टे रूपों में स्थित 'ब्भ' अंश के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'म्ह' और 'ज्झ' अंश की आदेश प्राप्ति हुआ करती है; तदनुसार छह आदेश प्राप्त रूपों का निर्माण और इस प्रकार होता है :- तुम्ह ओर तुज्झ; तुम्हं और तुज्झं; तुम्हाण और तुज्झाण । सूत्र- संख्या १ - २७ के विधान से पुनः उपर्युक्त 'तुम्हाण और तुज्झाण' में आगम रूप से अनुस्वार की वैकल्पिक रूप से प्राप्ति होने से दो और रूपों का निर्माण होता है; जो कि इस प्रकार है:- तुम्हाणं और तुज्झाणं । इस प्रकार 'युष्माकम्' अथवा वः के प्राकृत रूपान्तर में क्रम से तथा वैकल्पिक रूप से आदेश प्राप्त ये कुल तेईस रूप जानना ।
उदाहरण इस प्रकार है:- युष्माकम् अथवा वः धनम् = तु, वो इत्यादि २३ वां रूप तुज्झाणं धणं अर्थात् तुम सभी का धन
युष्माकम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप 'तु वो भे से लगाकर तुज्झाण' तक २३ होते हैं। इनमें से प्रथम दस रूपों में सूत्र - संख्या ३ - १०० की प्राप्ति; ११ वें से १५ वें तक के रूपों में सूत्र - संख्या १-२७ की प्राप्ति; १६वें से २१ वें तक के रूपों में सूत्र - संख्या ३ - १०४ की प्राप्ति और २२वें तथा २३वें में सूत्र - संख्या १-२७ की प्राप्ति होकर प्रथम रूप से लगाकर २३ वें रूप तक की अर्थात् 'तु, वो, भे, तुब्भ, तुब्भं, तुब्भाण तुवाण, तुमाण, तुहाण, उम्हाण, तुब्भाणं, तुवाणं, तुम्माणं, तुहाणं, उम्हाणं, तुम्ह, तुज्झ तुम्हें, तुज्झ, तुम्हाणं, तुज्झाण, तुम्हाणं और तुज्झाणं' रूपों की सिद्धि हो जाती है।
'धणं' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - ५० में की गई है । ३ - १०० ।।
तु तुम तुमाइ त तए ङिना। ३–१०१।।
युष्मदो ङिना सप्तम्येकवचनेन सहितस्य एते पञ्चादेशा भवन्ति ।। तुमे तुमए तुमाइ तइ तर ठिअं||
अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'डि= इ' की संयोजना होने पर प्राप्त संस्कृत रूप-‘त्वयि' के स्थान पर प्राकृत - रूपान्तर में प्रत्यय सहित अवस्था में क्रम से पांच रूपों की आदेश प्राप्ति होती है। वे पांचों रूप क्रम से इस प्रकार हैं:- (त्वयि = ) तुमे, तुमए, तुमाइ, तइ और तए । उदाहरण इस प्रकार है:त्वयि स्थितम् = तुमे, तुम, तुमाइ, तइ और तए ठिअं अर्थात् तुझ में अथवा तुझ पर स्थित है।
'त्वयि' संस्कृत सप्तमी एकवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम है। इसके प्राकृत में पांच रूप होते हैं। तुमे, तुमए, तुमाइ, तइ और तए; इनमें सूत्र - संख्या ३ - १०१ से संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' में सप्तमी एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङि = इ' की संयोजना होने पर प्राप्त रूप 'त्वयि' के स्थान पर उक्त पांचों रूपों की क्रम से आदेश प्राप्ति होकर क्रम से ये पांचों रूप 'तुमे, तुम, तुमइ, तइ और तए' सिद्ध हो जाते हैं।
'ठिअ' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - १६ में की गई है । । ३ - १०१ |
तु - तुव - तुम - तुह - तुब्भा ङौ ।। ३-१०२।।
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युष्मदो ङौ परत एते पञ्चादेशा भवन्ति । डेस्तु यथा प्राप्तमेव । तुम्मि । तुवम्मि। तुमम्मि । तुहम्मि । तुब्भम्मि । ब्भो म्ह-ज्झौ वेति वचनात् तुम्हम्मि। तुज्झम्मि । इत्यादि ।
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अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द " युष्मद्" के प्राकृत रूपान्तर में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय “ङि=इ" प्राकृत स्थानीय प्रत्यय ‘“म्मि" (और 'ङे=ए') प्रत्यय प्राप्त होने पर " युष्मद्" के स्थान पर प्राकृत में पांच अंग रूपों की क्रम से प्राप्ति होती है, जो इस प्रकार हैं:- युष्मद्-तु, तुव, तुम, तुह, और तुब्भ। उदाहरण यों हैं:- 'त्वयि = तुम्मि, तुवम्मि, तुमम्मि तुहम्मि और तुब्भम्मि । सूत्र- संख्या ३ - १०४ के विधान से उपर्युक्त पञ्चम अंग रूप 'तुब्भ' में स्थित 'ब्भ' अंश के स्थान पर क्रम से तथा वैकल्पिक रूप से 'म्ह' और 'ज्झ' अंश रूप की प्राप्ति हुआ करती है; तदनुसार दो और अंग रूपों
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