Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
128 : प्राकृत व्याकरण ३-१४४ से वर्तमानकाल के तृतीय पुरुष के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'मः' के स्थान पर प्राकृत में 'मो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'भणामो' रूप सिद्ध हो जाता है॥३-१०६।।
णे णं मि अम्मि अम्ह मम्ह मं ममं मिमं अहं अमा ३-१०७।। अस्मदोमा सह एते दशादेशा भवन्ति।। णे णं मि अम्मि अम्ह मम्ह मं ममं मिमं अहं पेच्छ।
अर्थः- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद् के द्वितीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'अम्' की संयोजना होने पर 'मूल शब्द और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर आदेश प्राप्त संस्कृत रूप 'माम् अथवा मा के स्थान पर प्राकृत में क्रम से दस रूपों की आदेश प्राप्ति हुआ करती हैं। वे दस रूप क्रम से इस प्रकार हैं:- (माम्=) णे, णं मि, अम्मि, अम्ह, मम्ह, मं, मम, मिमं, और अहं। उदाहरण इस प्रकार हैं:- माम् पश्य=णे, णं मि, अम्मि अम्ह, मम्ह, मं, ममं, मिमं, अहं पेच्छ अर्थात् मुझे देखो।
माम अथवा मा संस्कृत द्वितीया एकवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप 'णे, णं, मि, अम्मि, अम्ह, मम्ह, मं, मम, मिमं और अहं होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१०७ से मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद् के द्वितीया विभक्ति के एकवचन में संस्कत प्रत्यय 'अम' की संप्राप्ति होने पर प्राप्त रूप 'माम अथवा मा के स्थान पर प्राकृत में उक्त दस रूपों की क्रम से आदेश प्राप्ति होकर क्रम से ये दस रूप-णे, णं, मि, अम्मि, अम्ह, मम्ह, मं, मम, मिमं और अंह सिद्ध हो जाते हैं। पेच्छ क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२३ में की गई है।।३-१०७।।
अम्हे अम्हो अम्ह णे शसा।। ३-१०८॥ अस्मद्ः शसा सह एते चत्वार आदेशा भवन्ति।। अम्हे अम्हो अम्ह णे पेच्छ।।
अर्थः-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'शस्-अस्' की संयोजना होने पर मूल शब्द और प्रत्यय' दोनों के स्थान पर आदेश प्राप्त संस्कृत रूप 'अस्मान् अथवा नः' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से चार रूपों की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। वे आदेश प्राप्त चार रूप क्रम से इस प्रकार हैं:- अस्मान् अथवा नः अम्हे, अम्हो, अम्ह और णे। उदाहरण इस प्रकार है:- अस्मान् अथवा नः पश्च-अम्हे, अम्हो, अम्ह णे पेच्छ अर्थात् हमें अथवा हम को देखो। ___ अस्मान् अथवा नः संस्कृत द्वितीया बहुवचनान्त (त्रिलिंगात्मक) के सर्वनाम रूप हैं इसके प्राकृत रूप अम्हे, अम्हो, अम्ह और णे होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-१०८ से संस्कृत मूल सर्वनाम शब्द हैं। 'अस्मद्' में द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'शस् अस्' की संयोजना होने पर प्राप्त रूप अस्मान् अथवा नः' के स्थान पर प्राकृत में उक्त चार रूपों की क्रम से आदेश प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप 'अम्हे, अम्हो, अम्ह और 'णे सिद्ध हो जाते हैं। 'पेच्छ' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२३ में की गई है। ३-१०८॥
मि मे मम ममए ममाइ मइ मए मयाइ णे टा ॥३-१०९। अस्मदष्टा सह एते नवादेशा भवन्ति।। मि मे ममं ममए ममाइ मइ मए मयाइ णे कय।।
अर्थः-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'अस्मद्' के तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा-आ' की संयोजना होने पर मूल शब्द और प्रत्यय 'दोनों के स्थान पर आदेश-प्राप्त संस्कृत रूप 'मया' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से नव रूपों की आदेश प्राप्ति हुआ करती है। वे आदेश-प्राप्त नव रूप क्रम से इस प्रकार है:-(मया ) मि, मे, ममं, ममए, ममाइ, मइ, मए, मयाइ और णे उदाहरण इस प्रकार हैं:-मया कृतम्-मि, मे, मम, ममए, ममाइ, मइ, मए, मयाइ, णे, कयं अर्थात् मुझ से अथवा मेरे से किया हुआ है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org