Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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120 प्राकृत व्याकरण
रूप 'युष्माभिः' के स्थान पर इन छह रूपों की आदेश प्राप्ति होकर ये छह रूप 'भे तुब्भेहिं, उज्झेहिं, उम्हेहिं, हिं और उय्येहिं सिद्ध हो जाते हैं।
शेष दो रूपों में (याने युष्माभिः = तुम्हेहिं और तुज्झेहिं में ) सूत्र - संख्या ३- १०४ से पूर्वोक्त द्वितीय रूप आदेश - प्राप्त रूप 'तुब्भेहिं' में स्थित 'भ' अंश के स्थान पर 'म्ह' और 'ज्झ' अंश रूप की आदेश प्राप्ति होकर क्रम से सातवां और आठवां रूप 'तुम्हेहिं' और 'तुज्झेहिं" सिद्ध हो जाता है।
'भुत' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या २- ७७ में की गई है । ३ - ९५ ।।
तइ - तुव - तुम - तुह तुब्भा ङसौ ।। ३-९६॥
युष्मदो सौ पञ्चम्येकवचने परत ते पंचादेशा भवन्ति । ङसेस्तु तो दो दुहि हिन्तो लुको यथाप्राप्तमेव । । तइत्तो।। तुवत्तो। तुमत्तो। तुहत्तो। तुब्भत्तो । ब्भो म्ह- क्ष्झो वेति वचनात् तुम्हत्तो । तुज्झत्तो ॥ एवं दो दु हि हिन्तो लुक्ष्वप्युदाहार्यम्। तत्तो इति तु त्वत इत्यस्य व लोपे सति ।।
अर्थः-संस्कृत सर्वनाम शब्द 'युष्मद्' के प्राकृत रूपान्तर में पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय ‘ङसि=अस्' के प्राकृत स्थानीय प्रत्यय ' त्तो, दो-ओ, दु=उ, हि, हिन्तो और लुक्' प्रत्ययों की क्रम से प्राप्ति होने पर सम्पूर्ण मूल संस्कृत शब्द ‘युष्मद्' के स्थान पर प्राकृत रूपान्तर में क्रम से पांच-अंग रूपों की प्राप्ति होती है; जो कि क्रम से इस प्रकार है:- तइ, तुव, तुम तुह और तुब्भ। सूत्र- संख्या ३ -१०४ के निर्देश से प्राप्तांग पांचवें रूप 'तुब्भ' में स्थित 'ब्भ' अंश के स्थान पर क्रम से एवं वैकल्पिक रूप से 'म्ह और 'ज्झ' अंश रूप की आदेश हुआ करती है; यो 'युष्मद्' के उक्त पांच अंग रूपों के अतिरिक्त ये दो रूप 'तुम्ह और तुज्झ' और होते है। इस प्रकार 'युष्मद्' के प्राकृत रूपान्तर में पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में प्रत्ययों के संयोजनार्थ सात अंग रूपों की क्रम से प्राप्ति होती है; तत्पश्चात् सातों प्राप्तांगो में से प्रत्येक अंग में क्रम से ( एवं वैकल्पिक रूप से) छह छह प्रत्ययों की आर्थत् 'त्तो, ओ, उ, हि, हिन्तो और
क' प्रत्ययों की प्राप्ति होती हैं इस प्रकार 'युष्मद्' के पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में प्राकृत में बयालीस (= ४२) रूप होते हैं; जो कि क्रम से इस प्रकार है:- 'तइ' अंग के रूपः - तइत्तो, तईओ, तईउ, तईहि, तईहिन्तो और तई ( = त्वत् = ) अर्थात् तेरे से । 'तुव' अंग के रूप:- - तुवत्तो, तुवाओ, तुवाउ, तुवाहि, तुवाहिन्तो और तुवा (= त्वत्- ) अर्थात् तेरे से। 'तुम' अंग रूपः- तुमत्तो, तुमाओ, तुमाउ, तुमाहि, तुमाहिन्तो और तुम (त्वत् = ) अर्थात् तेरे से । यों शोषांग 'तुह, तुब्भ, तुम्ह, और तुज्झ' के रूप भी समझ लेना चाहिये ।
प्राकृत में प्राप्त रूप 'तत्तों' की प्राप्ति 'त्वत' से हुई है। इसमें सूत्र - संख्या २- ७९ से 'व्' का लोप हुआ है और १-३७ से विसर्ग के स्थान पर 'डो-ओ' की प्राप्ति होकर ' तत्तो' प्राकृत रूप निर्मित हुआ है। अतः इस रूप ' तत्तो' को उक्त ४२ रूपों से भिन्न ही जानना ।
नीचे साधनिका उन्हीं रूपों की जा रही है; जो कि वृत्ति में उलिखित है । अत, प्राप्त शेष रूपों की साधनिका स्वयमेव कर लेनी चाहिये।
त्वत् (अथवा 'त्वद्') संस्कृत पञ्चमी एकवचनान्त (त्रिलिंगात्मक ) सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप तइत्तो, तुवत्तो, तुहत्तो, तुब्भत्तो और तुज्झत्तो होते हैं। इनमें से प्रथम पांच रूपों में सूत्र - संख्या ३ - ९६ से मूल संस्कृत शब्द 'युष्मद्' के स्थान पर क्रम से पांच अंगों की आदेश प्राप्ति; छट्टे ओर सातवें रूपों में सूत्र - संख्या ३ - १०४ के निर्देश से छट्ठे ओर सातवें अंग रूप की प्राप्ति; तत्पश्चात् क्रम से सातों अंग-रूपों में सूत्र - संख्या ३-८ से पंचमी विभक्ति के एकवचनार्थ में 'तो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से सातों रूप - 'तइत्तो, तुवत्तो, तुवत्तो, तुहत्तो, तुब्भत्तो, तुम्हत्तो ओर तुज्झत्तो सिद्ध हो जाते हैं ।
त्वत्तः संस्कृत तद्धित रूपक शब्द है। इसका रूप तत्तो होता है। इसमें सूत्र - संख्या २- ७९ से 'व्' का लोप और १-३७ से विसर्ग के स्थान पर 'डो=ओ' की प्राप्ति होकर प्राकृत तद्धित रूप 'तत्तो' सिद्ध हो जाता है । ३ - ९६ ।।
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