Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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क्लीबे स्यमेदमिणमो च ।। ३-७९ ।।
नपुंसकलिङ्गे वर्तमानस्येदमः स्यम्भ्यां सहितस्य इदम् इणमो इणम् च नित्यमा देशा भवन्ति । इदं इणमो इणं धणं चिट्ठा पेच्छ वा।।
प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित 105
अर्थः-संस्कृत सर्वनाम नपुंसकलिंग शब्द 'इदम्' के प्राकृत रूपान्तर में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'सि' प्रत्यय प्राप्त होने पर और द्वितीया विभक्ति के एकवचन में 'अम्' प्रत्यय प्राप्त होने पर मूल शब्द 'इदम्' और उक्त प्रत्यय, इन दोनों के स्थान पर नित्यमेव क्रम से 'इदम्, इणमो और इणं' ये तीन आदेश रूप हुआ करते हैं। यों प्रथमा विभक्ति और द्वितीया विभक्ति दोनों के एकवचन में समान रूप से 'इदम्' के नपुंसकलिंग में उक्त तीन-तीन रूप होते हैं। ये नित्यमेव होते हैं; वैकल्पिक रूप से नहीं। उदाहरण इस प्रकार हैं:- इदं अथवा इणमो अथवा इणं धणं चिट्ठइ=इदम् धनम् तिष्ठति अर्थात् यह धन विद्यमान है। इदं अथवा इणमो अथवा इणं धनम् पश्य अर्थात् इस धन को देखो । उक्त उदाहरण क्रम से प्रथमा विभक्ति और द्वितीया विभक्ति के एकवचन के द्योतक हैं।
इदम् संस्कृत प्रथमा-द्वितीया एकवचनान्त नपुंसकलिंग सर्वनाम रूप है। इसके (दोनों विभक्तियों में समान रूप से) प्राकृत रूप इदं, इणमो और इणं होते हैं। इन तीनों रूपों में सूत्र - संख्या ३-७९ से मूल संस्कृत शब्द 'इदम्' और प्रथमा द्वितीया के एकवचन में क्रम से प्राप्तव्य संस्कृत प्रत्यय 'सि' और 'अम्' सहित दोनों के स्थान पर क्रम से नित्यमेव 'इदं, इणमो और इणं' रूपों की (प्रत्यय सहित) आदेश प्राप्ति होकर ये तीनों रूप इदं, इणमो और इणं सिद्ध हो जाते हैं।
'घणं' रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३-५० में की गई हैं
'चिट्ठई' क्रियापद रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - १९९ में की गई है।
'पेच्छ' क्रिया पद रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या १ - २३ में की गई है। । ३-७९ ।।
किमः किं ।। ३-८०॥
किमः क्लीबे वर्तमानस्य स्यम्भ्यां सह किं भवति । किं कुलं तुह । किं किं ते पडिहाइ ||
अर्थ:-संस्कृत सर्वनाम नपुंसकलिंग शब्द 'किम्' के प्राकृत रूपान्तर में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'सि' प्रत्यय प्राप्त होने पर और द्वितीया विभक्ति के एकवचन में 'अम्' प्रत्यय प्राप्त होने पर मूल शब्द 'किम्' और उक्त प्रत्यय, इन दोनों के स्थान पर नित्यमेव 'कि' आदेश रूप की प्राप्ति होती है। तात्पर्य यह है कि 'किम्+ सि' का प्राकृत रूपान्तर 'किं' होता है। और 'किम्+अम्' का प्राकृत रूपान्तर भी 'किं' ही होता है। प्रथमा - द्वितीया दोनों विभक्तियों के एकवचन में समान रूप से ही प्रत्यय सहित मूल शब्द 'किम्' के स्थान पर 'किं' रूप की प्राकृत में नित्यमेव आदेश प्राप्ति होती है। जैसेः-किम कुलम् तव-किं कुलं तुह अर्थात् तुम्हारा क्या कुल है? (तुम कौन से कुल में उत्पन्न हुए हो ?) यह उदाहरण प्रथमा एकवचन वाला है । किम् किम् ते प्रति भाति - किं किं ते पडिहाइ? तुम्हें क्या क्या मालूम होता है? यह उदाहरण द्वितीया के एकवचन का है।
किम् संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त नपुंसकलिंग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप 'किं' होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३- ८० से मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'किम्' में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'सि' प्रत्यय की संयोजना होने पर शब्द सहित प्रत्यय के स्थान पर 'किं' रूप की नित्यमेव आदेश प्राप्ति होकर किं रूप सिद्ध हो जाता है।
'कुल' रूप की सिद्ध सूत्र - संख्या १ - ३३ मे की गई है।
३-९९
'तव' संस्कृत षष्ठी एकवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप 'तुह' होता है। इसमें सूत्र - संख्या मूल संस्कृत शब्द 'युष्मद्' में संयोजित षष्ठी एकवचन बोधक संस्कृत प्रत्यय 'ङस=अस्' के कारण से प्राप्त रूप ‘तव' के स्थान पर प्राकृत में 'तुह' रूप की आदेश प्राप्ति होकर 'तुह' सिद्ध हो जाता है।
'किम्' संस्कृत द्वितीया एकवचनान्त नपुंसकलिंग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप 'किं' होता है। इसमें सूत्र - संख्या
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