Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 39 हैं। इनमें सूत्र-संख्या ३-२९ से संस्कृत प्रत्यय 'उसि' के स्थान पर प्राकृत में 'अ-आ-इ-ए' प्रत्ययों की प्राप्ति होकर एवं अन्त्य हस्व स्वर 'इ' को इसी सूत्र से 'ई' की प्राप्ति होकर क्रम से चारों रूप बुद्धीअ, बुद्धीआ, बुद्धीइ, बुद्धीए सिद्ध हो जाते हैं। ____ सख्याः - संस्कृत पञ्चम्यन्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप सहीअ, सहीआ, सहीइ और सहीए होते हैं। इनमें 'सही' रूप तक की साधनिका इसी सूत्र में वर्णित रीति अनुसार और ३-२९ से संस्कृत प्रत्यय 'ङसि' के स्थान पर प्राकृत में 'अ-आ-इ-ए' प्रत्ययों की प्रप्ति होकर क्रम से चारों रूप 'सहीअ, सहीआ, सहीइ और सहीएं' सिद्ध हो जाते हैं।
धेन्वाः- संस्कृत पञ्चम्यन्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप धेणूअ, धेणूआ, धेणूइ, धेणूए, धेणूओ, धेणूउ और धेणूहिन्तो होते हैं। इनमें 'धेणू' रूप तक की साधनिका ऊपर इसी सूत्र में वर्णित रीति अनुसार और ३-२९ से आदि के चार रूपों में संस्कृत पंचमी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'ङसि' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'अ-आ-इ-ए' प्रत्ययों की प्राप्ति एवं इसी सूत्र से अन्त्य हस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर आदि के चार रूप 'धेणूअ धेणूआ, धूणइ और धेणुए' सिद्ध हो जाते हैं।
अन्त के तीन रूपों में सूत्र-संख्या ३-१२४ के अधिकार से एवं ३-८ के विधान से पंचमी विभक्ति के एकवचन में 'ओ-उ-हिन्तो' प्रत्ययों की क्रमिक प्राप्ति तथा ३-१२ से अन्त्य हस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर अन्त के तीन रूप 'धेणूओ, धेणूउ और धेणूहिन्तो' भी सिद्ध हो जाते हैं। __ वध्वाः संस्कृत पञ्चम्यन्त एकवचन रूप है। इसके प्राकृत रूप वहूअ, वहूआ, वहूइ और वहूए होते हैं। इनमें 'वहू' रूप तक की सिद्धि इसी सूत्र में वर्णित रीति अनुसार और ३-२९ के संस्कृत पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य 'ङसि' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से अ, आ, इ, ए प्रत्ययों की प्राप्ति होकर चारों रूप क्रम से वहअ, वहूआ, वहूइ और वहूए सिद्ध हो जाते हैं।
'आगओ' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या 1-209 में की गई है।
रत्याः संस्कृत पञ्चम्यन्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप रईओ, रईउ और रईहिन्तो होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१७७ से मूल संस्कृत शब्द 'रति' में स्थित 'त्' का लोप; ३-८ से संस्कृत पञ्चमी विभक्ति के वचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'डसि' के स्थान पर प्राकृत में क्रम से 'ओ, उ और हिन्तो प्रत्ययों की प्राप्ति और ३-१२ से शब्दान्त्य हस्व स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्ति होकर क्रम से तीनों रूप' रईओ, रईउ और रईहिन्तो सिद्ध हो जाते हैं।
'वच्छेण रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२७ में की गई है। 'वच्छस्स' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२४९ में की गई है। 'वच्छम्मि' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-११ में की गई है। 'वच्छाओ' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१२ में की गई है।
मुग्धा- संस्कृत प्रथमान्त एकवचन रूप है। इसका प्राकृत रूप मुद्धा होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७७ से हलन्त 'ग्' का लोप; २-८९ से 'ध्' को द्वित्व 'ध' की प्राप्ति; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ध्' के स्थान पर 'द्' की प्राप्ति; ४-४४८ से संस्कृत प्रथमा विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' ('इ' की इत्संज्ञा होने से) स्' की प्राप्ति, और १-११ से प्राप्त अन्त्य हलन्त स्' का लोप होकर प्राकृत रूप मुद्धा सिद्ध हो जाता है। 'बुद्धी':- रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१८ में की गई है।
सखी:- संस्कृत प्रथमान्त एकवचन रूप है। इसका प्राकृत रूप सही होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति, ४-४४८ से संस्कृत प्रथमा विभक्ति के एकवचन प्राप्तप्य में प्रत्यय 'सि-('इ' की इत्संज्ञा होने से)-स्' की प्राप्ति और १-११ से प्राप्त अन्त्य हलन्त 'स्' का लोप होकर प्राकृत रूप सही सिद्ध हो जाता है। 'धेणू रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-१९ में की गई है। For Private & Personal Use Only
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