Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 89 से 'क' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'डेसिं' प्रत्यय की प्राप्ति; प्राप्त प्रत्यय 'डेसिं' में स्थित 'ङ्' इत्संज्ञक होने से 'क' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' की इसंज्ञा होकर इस 'अ' का लोप एवं हलन्त 'क्' में उपर्युक्त 'एसिं' प्रत्यय की संयोजना होकर प्रथम रूप केसिं सिद्ध हो जाता है।
'काण' रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-३३ में की गई है।
सर्वासाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त स्त्रीलिंग के सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप सव्वेसिं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से मूल संस्कृत शब्द 'सर्व' में स्थित हलन्त 'र' का लोप; २-८९ से लोप हुए 'र' के पश्चात् रहे हुए 'व' को द्वित्व 'व्व' की प्राप्ति; ३-३२ और २-४ के विधान से 'सव्व' में पुल्लिगत्व से स्त्रीलिंगत्व के निर्माणार्थ 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-६१ से 'सव्व' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'डेसिं' प्रत्यय की प्राप्ति; प्राप्त प्रत्यय 'डेसिं' में स्थित 'ड्' इत्संज्ञक होने से 'सव्वा' में स्थित अन्त्य स्वर 'आ' की इत्संज्ञा होकर इस 'आ' का लोप एवं हलन्त सव्व् में उपर्युक्त 'एसिं' प्रत्यय की संयोजना होकर (पुल्लिंग रूप के समान प्रतीत होने वाला यह स्त्रीलिंग रूप) सव्वेसिं सिद्ध हो जाता है।
अन्यासाम संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त स्त्रीलिंग के सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप अन्नेसिं होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७८ से मूल संस्कृत शब्द 'अन्य' में स्थित 'य' का लोप; २-८९ से लोप हुए 'य' के पश्चात् रहे हुए 'न' को द्वित्व 'न्न' की प्राप्ति; ३-३२ और २-४ के विधान से 'अन्न' में पुल्लिगत्व से स्त्रीलिंगत्व के निर्माणार्थ 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-६१ से 'अन्ना' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान प्राकृत में 'डेसिं' प्रत्यय की प्राप्ति; प्राप्त प्रत्यय 'डेसिं' में स्थित 'ड्' इत्संज्ञक होने से प्राप्तांग 'अन्ना' में स्थित अन्त्य स्वर 'आ' की इत्संज्ञा होकर इस 'आ' का लोप एवं हलन्त 'अन्न्' में उपर्युक्त 'एसिं' प्रत्यय की संयोजना होकर (पुल्लिंग रूप के समान प्रतीत होने वाला यह स्त्रीलिंग रूप) अन्नेसिं सिद्ध हो जाता हैं।
तासाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त स्त्रीलिंग के सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप तेसिं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'तद्' में स्थित अन्त्य व्यञ्जन 'द्' का लोप; ३-३२ और २-४ के विधान से 'त' में पुल्लिगत्व से स्त्रीलिंगत्व के निर्माणार्थ 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति और ३-६१ से 'ता' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'डेसिं प्रत्यय की प्राप्ति, प्राप्त प्रत्यय 'डेसिं' में स्थित 'ड्' इत्संज्ञक होने से प्राप्तांग 'ता' में स्थित अन्त्य स्वर 'आ' की इत्संज्ञा होकर इस 'आ' का लोप एवं हलन्त 'त्' में उपर्युक्त 'एसिं' प्रत्यय की संयोजना होकर (पुल्लिंग रूप के समान प्रतीत होने वाला यह स्त्रीलिंग रूप) तेसिं सिद्ध हो जाता है। ३-६१।।
किंतभ्यां डासः ।। ३-६२।। किंतद्भ्यां परस्यामः स्थाने डास इत्यादेशो वा भवति।। कास। तास। पक्षे। केसिं। तेसिं। __ अर्थः- संस्कृत सर्वनाम 'किम्' के प्राकृत रूपान्तर 'क' में और संस्कृत सर्वनाम 'तद्' के प्राकृत रूपान्तर 'त' में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'डास' (प्रत्यय) की प्राप्ति हुआ करती है। प्राकृत में प्राप्त प्रत्यय 'डास्' में स्थित 'ड्' इत्संज्ञक है, तदनुसार प्राकृत सर्वनाम रूप 'क' और "त" में स्थित अन्त्य स्वर "अ" की इत्संज्ञा होने से इस अन्त्य स्वर "अ" का लोप हो जाता है एवं तत्पश्चात् शेष रहे हुए हलन्त सर्वनाम रूप"क" और 'त्" अंग में उक्त षष्ठी के बहुवचन का प्रत्यय "डास-आस" की संयोजन होती है। जैसे:-केषाम्-कास और तेषाम्=तास। वैकल्पिक पक्ष होने से (केषाम्=) केसिं और (तेषाम्=) तेसिं रूप भी बनते हैं। ___ केषाम् संस्कृत षष्ठी बहुवचनान्त पुल्लिंग के सर्वनाम का रूप है इसके प्राकृत रूप कास और केसि होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र-संख्या ३-७१ से मूल संस्कृत शब्द "किम्" के स्थान पर प्राकृत में "क" रूप की प्राप्ति; ३-६२ से प्राकृत "क" में षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय "आम" के स्थान पर प्राकृत में "डास"प्रत्यय की प्राप्ति, प्राप्त प्रत्यय "डास्" में स्थित "ड" इत्संज्ञक होने से "क" में स्थित अन्त्य स्वर "अ" की इत्संज्ञा होकर इस "अ'का लोप एवं हलन्त "क" में उपर्युक्त "आस' प्रत्यय की संयोजना होकर प्रथम रूप कास सिद्ध हो जाता है।
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