Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 101
इयम् संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त स्त्रीलिंग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप इमा होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३-७२ से मूल संस्कृत सर्वनाम शब्द 'इदम्' के स्थान पर 'इम' अंग रूप की आदेश प्राप्ति; २-४ के निर्देश से प्राप्तांग 'इम' में पुल्लिंगत्व से स्त्री-लिंगत्व के निर्माण हेतु 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - ११ से प्राप्तांग 'इमा में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'सिस्' का प्राकृत में लोप होकर इमा रूप सिद्ध हो जाता है । ३-७२।।
पुं- स्त्रियोर्न वायमिमिआ सौ ।। ३-७३ ।।
इदम् शब्दस्य सौ परे अयतिति पुल्लिंगे इमिआ इति स्त्रीलिङ्गे आदेशौ वा भवतः ॥ अहवायं कय-कज्जो । या वाणि-धूआ। पक्षे । इमो । इमा।।
अर्थः- संस्कृत सर्वनाम 'इदम्' के प्राकृत रूपान्तर में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' की प्राप्ति होने पर इदम्+सि' के स्थान पर पुल्लिंग में ' अयम्' रूप की और स्त्रीलिंग में 'इमिआ' रूप की वैकल्पिक रूप से आदेश प्राप्ति हुआ करती है। जैसे:- अथवा अयम् कृतः कार्यः = अहवा अयं कयकज्जो; यह पुल्लिंग का उदाहरण हुआ। स्त्रीलिंग का उदाहरण इस प्रकार है:- इयम् वाणिक्य- दुहिता = इमिआ वाणिअ धूआ । वैकल्पिक पक्ष का सद्भाव होने से पुल्लिंग में 'इदम्+ सि' का 'इमो' रूप भी प्राकृत में बनेगा और स्त्रीलिंग में 'इयम्' का 'इमा' रूप भी बनता है।
' अहवा' अव्यय की सिद्धि सूत्र - संख्या १-६७ में की गई है।
अयम् संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त पुल्लिंग सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप अयम् और इमो होते है। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या ३-७३ के विधान से संस्कृत के समान ही 'अयम्' रूप की आदेश प्राप्ति और १ - २३ से अन्त्य व्यञ्जन 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर अयं रूप सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप 'इमो' की सिद्धि सूत्र संख्या ३-७२ में की गई है।
कृत-कार्यः संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त पुल्लिंग विशेषण रूप है। इसका प्राकृत रूप कय-कज्जो होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १२६ से आदि स्वर 'ऋ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; १-७७ से 'त्' का लोप; १-१८० से लोप हुए 'तू' के पश्चात् शेष रहे हुए 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; १-८४ से दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; २-२४ से संयुक्त व्यञ्जन 'र्य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; २-८९ से आदेश प्राप्त 'ज' को द्वित्व 'ज्ज' की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो-ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कय- कज्जो रूप सिद्ध हो जाता है।
इयम् संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप इमिआ और इमा होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र - संख्या ३-७३ से सम्पूर्ण संस्कृत रूप 'इयम्' के स्थान पर प्राकृत में 'इमिआ' रूप की आदेश प्राप्ति वैकल्पिक रूप से होकर प्रथम रूप 'इमिआ ' सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप 'इमा' की सिद्धि सूत्र - संख्या ३-७२ में की गई है।
वाणिक्य- दुहिता संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त स्त्रीलिंग संज्ञा रूप है। इसका प्राकृत रूप वाणिअ-धूआ होता है। इसमें सूत्र - संख्या २- ७७ से हलन्त व्यञ्जन 'क्' का लोप; १-१७७ से 'य्' का लोप; २- १२६ से सम्पूर्ण शब्द 'दुहिता' के स्थान पर प्राकृत में ' धूआ' रूप की आदेश प्राप्ति; ४ - ४४८ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्राप्त 'सि=स्' की प्राप्ति और १ - ११ से प्राप्त हलन्त प्रत्यय 'स्' का लोप होकर वाणिअ-धूआ रूप सिद्ध हो जाता है ।। ३-७३ ।।
स्सि स्सयोरत्।।३-७४।।
इदमः स्सि स्स इत्येतयोः परयोरद् भवति वा ।। अस्सि । अस्स । पक्षे इमादेशोपि । इमस्सि । इमस्स । बहुलाधिकारादन्यत्रापि भवति । एहि । एसु । आदि । एभिः । एषु । आभिरित्यर्थः ।।
अर्थ:- संस्कृत सर्वनाम शब्द 'इदम्' के प्राकृत रूपान्तर में सप्तमी विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्राकृत प्रत्यय
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