Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 41 (साधन+ई)साधनी संस्कृत प्रथमान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप साहणी और साहणा होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१८७ से 'ध्' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; १-२२८ से 'न्' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति; ३-३१ से 'स्त्रीलिंग रूपार्थक होने से स्त्री प्रत्यय 'ई' की वैकल्पिक प्राप्ति होने से (साधन में) क्रम से 'ई' और 'आ' प्रत्ययों की प्राप्ति और १-११ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि-स् का प्राकृत में लोप होकर क्रम से दोनों रूप साहणी और साहणा सिद्ध हो जाते हैं। (कुरुचर+ई-) कुरुचरी देशज प्रथमान्त एकवचन का रूप है। इसके प्राकृत रूप कुरुचरी और कुरुचरा होते हैं।
ख्या ३-३१ से 'स्त्रीलिंग रूपार्थक होने से स्त्री प्रत्यय 'ई' की वैकल्पिक प्राप्ति होने से- (कुरूचर में) क्रम से 'ई' और 'आ' प्रत्ययों की प्राप्ति और १-११ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'सि-स्' का प्राकृत में लोप होकर क्रम से दोनों रूप कुरुचरी ओर कुरुचरा सिद्ध हो जाते हैं।।३-३१।।
अजातेः पुंस ॥३-३२॥ अजातिवाचिनः पुल्लिंङ्गाद् स्त्रियां वर्तमानात् ङीर्वा भवति। नीली नीला। काली काला। हसमाणी हसमाणा। सुप्पणही सुप्पणहा। इमीए इमाए। इमीणं इमाण। एईए एआए। एईणं एआण। अजातेरितिकिम्। करिणी। अया। एलया।। अप्राप्ते-विभाषेयम्। तेन गोरी कुमारी इत्यादि संस्कृतवनित्यमेव ङीः।।
अर्थः- जातिवाचक संज्ञा वालों के अतिरिक्त संज्ञा वाले, विशेषण वाले, और सर्वनाम वाले शब्दों में पुल्लिंग से स्त्रीलिंग रूप में परिवर्तन करने हेतु 'डी-ई' प्रत्यय की प्राप्ति वैकल्पिक रूप से हुआ करती है। जैसे:-नीला नीली अथवा नीला, काला काली अथवा काला; हसमाना-हसमाणी अथवा हसमाणा; शूर्पणखा-सुप्पणही अथवा सुप्पणहा; अनया इमीए अथवा इमाए अर्थात् इस (स्त्री) के द्वारा; आसाम्=इमीणं अथवा इमाणं अर्थात् इन (स्त्रियों) का; एतया एईए अथवा एआए अर्थात् इस (स्त्री) से; एतासाम्-एईणं अथवा एआणं अर्थात् इन (स्त्रियों) का; इन उदाहरणों में ऐसा समझाया गया है कि जिन संस्कृत स्त्रीलिंग शब्दों में स्त्रीलिंग वाचक प्रत्यय 'आ' की प्राप्ति हुई है; उन स्त्रीलिंग वाले शब्दों में प्राकृत में वैकल्पिक रूप से 'ई' प्रत्यय की प्राप्ति भी हुआ करती है। यों आकारान्त स्त्रीलिंग वाले अन्य शब्दों के संबंध में भी जान लेना चाहिए।
प्रश्नः- जातिवाचक आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में अन्त्य 'आ' प्रत्यय के स्थान पर 'ई' प्रत्यय की प्राप्ति का निषेध क्यों किया गया है?
उत्तरः- जातिवाचक आकारान्त स्त्रीलिंग में अन्त्य 'आ' को 'ई' की प्राप्ति कभी भी नहीं होती है; इसी प्रकार से 'ईकारान्त' की भी 'आकारान्त की प्राप्ति नहीं होती है। अतएव उसकी प्राप्ति का निषेध ही प्रदर्शित करना आवश्यक होने से 'अजातेः' अर्थात् 'जाति वाचक स्त्रीलिंग शब्दों को छोड़ कर' ऐसा मूल-सूत्र में विधान करना पड़ा है। जैसेः करिणी करिणी अर्थात् हथिनी। यह उदाहण ईकारान्त स्त्रीलिंग का है; इसमें 'आकारान्त' का अभाव प्रदर्शित किया गया है। अजा=अया अर्थात् बकरी और एलका एलया अर्थात् बड़ी इलायची; इत्यादि इन उदाहरणों से प्रतीत होता है कि आकारान्त जाति वाचक स्त्रीलिंग शब्दों के प्राकृत-रूपान्तर में अन्त्य 'आ' को 'इ' की प्राप्ति नहीं होती है। यों यह सिद्धान्त निर्धारित हुआ कि जाति वाचक स्त्रीलिंग शब्दों के अन्त्य 'आ' का 'आ' ही रहता है तथा यदि अन्त्य 'ई' हुई तो उस 'ई' की भी 'ई ही रहती है।
प्राकृत भाषा में अनेक स्त्रीलिंग शब्द ऐसे भी पाये जाते हैं, जो कि जाति वाचक नहीं है; फिर भी उनके अन्त्य 'आ' का अभाव है और अन्त्य 'ई' का सद्भाव है; ऐसे शब्दों के संबंध में वृत्ति में कहा गया है कि उन शब्दों को विभाषा वाले-अन्य भाषा वाले जानना; अर्थात् ईकारान्त स्त्रीलिंग वाले ऐसे शब्दों को अन्य भाषा से आये हुए एवं प्राकृत भाषा वाले' जानना; अर्थात् ईकारान्त स्त्रीलिंग वाले ऐसे शब्दों को अन्य भाषा से आये हुए एवं प्राकृत भाषा में 'रूढ हुए;' जानना। जैसे:- गौरी-गोरी और कुमारी कुमारी। ऐसे शब्द प्राकृत भाषा में रूढ़ जैसे हो गये हैं, और इनके वैकल्पिक रूप 'गोरा अथवा कुमारा' जैसे नहीं बनते है। ऐसे नित्य ईकारान्त शब्दों में संस्कृत के समान ही 'स्त्रीलिंग-वाचक' प्रत्यय 'ई'
की प्राप्ति ही हुआ करती है। Jain Education International
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