Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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78 : प्राकृत व्याकरण 'य' की प्राप्ति; और ३-५६ से प्राप्त रूप 'रायन्' में स्थित अन्त्य 'अन्' अवयव के स्थान पर 'आण' आदेश की प्राप्ति,
और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में प्राप्तांग अकारान्त रूप 'रायाण' में संस्कृत प्रत्यय 'सि' के स्थान पर प्राकृत में 'डो ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रायाणो रूप सिद्ध हो जाता है।
राजानः संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन रूप है। इसका प्राकृत रूप रायाणा होता है। इसमें 'रायाण' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१२ से प्राप्तांग 'रायाण' में स्थित अन्त्य 'अ' के आगे प्रथमा-बहुवचन बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से 'आ' की प्राप्ति और ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'जस्' का प्राकृत में लोप होकर रायाणा रूप सिद्ध हो जाता है।
राजानम् संस्कृत द्वितीयान्त एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप रायाणं होता है। इसमें 'राजन् रायाण' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-५ से प्राप्तांग- रायाण में द्वितीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'अम्म् ' के समान ही प्राकृत में भी 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार के प्राप्ति होकर रायाणं रूप सिद्ध हो जाता है।
राज्ञः संस्कृत द्वितीयान्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप रायाणे होता है। इसमें 'राजन्-रायाण' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१४ से प्राप्तांग 'रायाण' में स्थित अन्त्य 'अ' के 'आगे द्वितीया-बहुवचन-बोधक प्रत्यय का सद्भाव होने से 'ए' की प्राप्ति और ३-४ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'शस्' का प्राकृत में लोप होकर रायाणे रूप सिद्ध हो जाता है।
राज्ञा संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप रायाणेण होता है। इसमें 'राजन्-रायाण' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१४ से प्राप्तांग ‘रायाण' में स्थित अन्त्य 'अ' के 'आगे तृतीया-बहुवचन; (बोधक-प्रत्यय) का सद्भाव होने से 'ए' की प्राप्ति और ३-६ से तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'टा=आ' के स्थान पर प्राकृत में 'णि' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रायाणेण रूप सिद्ध हो जाता है। __राजभिः संस्कृत तृतीयान्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप 'रायाणेहिं होता है। इसमें 'राजन् रायाण' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त विधि अनुसार तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१५ से प्राप्तांग 'रायाण' में स्थित अन्त्य 'अ' के आगे तृतीया बहुवचन (बोधक-प्रत्यय) का सद्भाव होने से 'ए' की प्राप्ति और ३-७ से तृतीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'भिस्' के स्थान पर प्राकृत में 'हिं प्रत्यय की प्राप्ति होकर रायाणेहिं रूप सिद्ध हो जाता है।
राज्ञः संस्कृत पञ्चम्यन्त एकवचन रूप है। इसका प्राकृत-रूप रायाणाहिन्तो होता है। इसमें 'राजन्=रायाण' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त विधि-अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१२ से प्राप्तांग 'रायाण' में स्थित अन्य 'अ' के आगे पंचमी एकवचन-(बोधक प्रत्यय) का सद्भाव होने से 'आ' की प्राप्ति और ३-८ से पंचमी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'डसि अस्' के स्थान पर प्राकृत में 'हिन्तो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रायाणाहिन्तो रूप सिद्ध हो जाता है।
राज्ञः संस्कृत षष्ठ्यन्त एकवचन रूप है। इसका प्राकृत रूप रायाणस्स होता है। इसमें 'राजन् रायाण' अंग की प्राप्ति-उपर्युक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१० से षष्ठी विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'ङस्-अस्' के स्थान पर प्राकृत में संयुक्त 'स्स' प्रत्यय की प्राप्ति होकर रायाणस्स रूप सिद्ध हो जाता है।
राज्ञाम् संस्कृत षष्ठ्यन्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप रायाणाणं होता है। इसमें 'राजनरायाण' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त विधि अनुसार; तत्पश्चात् सूत्र-संख्या ३-१२ से प्राप्तांग 'रायाण' में स्थित-अन्त्य 'अ' के 'आगे षष्ठीबहुवचन-(बोधक प्रत्यय) का सद्भाव होने से 'आ' की प्राप्ति; ३-६ से षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२७ से प्राप्त प्रत्यय 'ण' पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर रायाणाणं रूप सिद्ध हो जाता है। राज्ञि संस्कृत सप्तम्यन्त एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप रायाणम्मि होता है। इसमें राजन्=रायाण' अंग की
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