Book Title: Pragnapana Sutra Part 04
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रज्ञापना सूत्र
भावार्थ - इसी प्रकार अनेक असुरकुमारों से लेकर अनेक वैमानिकों की अपेक्षा से, क्रियासम्बन्धी आलापक कहने चाहिए। विशेषता यह है कि अनेक औदारिक शरीरधारी जीवों की अपेक्षा से, क्रिया सम्बन्धी आलापक जीवों के क्रिया सम्बन्धी आलापक के समान कहने चाहिए।
असुरकुमारे णं भंते! जीवाओ कइकिरिए ?
गोयमा! जहेव णेरइए चत्तारि दंडगा तहेव असुरकुमारे वि चत्तारि दंडगा भाणियव्वा, एवं च उवउज्जिऊणं भावेयव्वं ति । जीवे मणूसे य अकिरिए वुच्चइ, सेसा अकिरिया ण वुच्चंति ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एक असुरकुमार, एक जीव की अपेक्षा से कितनी क्रियाओं वाला होता है ?
उत्तर - हे गौतम! जैसे नैरयिक की अपेक्षा से क्रियासम्बन्धी चार दण्डक कहे गए हैं, वैसे ही एक असुरकुमार की अपेक्षा से भी क्रिया सम्बन्धी चार दण्डक कहने चाहिए ।
इस प्रकार का उपयोग लगाकर विचार कर लेना चाहिए कि एक जीव और एक मनुष्य ही अक्रिय कहा जाता है, शेष सभी जीव अक्रिय नहीं कहे जाते । सर्व जीव, औदारिक शरीरधारी अनेक जीवों की अपेक्षा से पांच क्रिया वाले होते हैं। नैरयिकों और देवों की अपेक्षा से पांच क्रियाओं वाले नहीं कहे जाते ।
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एवं एक्केक्क जीवपए चत्तारि चत्तारि दंडगा भाणियव्वा एवं एवं दंडगसयं सव्वे वि य जीवाईया दंडगा ॥ ५८७ ॥
भावार्थ - इस प्रकार एक-एक जीव के पद में चार-चार दण्डक कहने चाहिए | यों कुल मिलाकर सौ दण्डक होते हैं। ये सब एक जीव आदि से सम्बन्धित दण्डक हैं।
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विवेचन प्रस्तुत सूत्र में जीवों को दूसरे जीवों की अपेक्षा लगने वाली क्रियाओं का कथन किया गया है। जैसे नैरयिक पद में चार दण्डक कहे हैं उसी प्रकार शेष असुरकुमार आदि तेइस दंडकों में भी चार चार दण्डक कहने चाहिये किन्तु जीव पद और मनुष्य पद में क्रिया रहित भी होते हैं ऐसा कहना चाहिए । विरति में शरीर को वोसिरा देने के कारण शरीर निमित्तक क्रियाएं असंभव है । शेष जीव अक्रिय नहीं होते क्योंकि विरति के अभाव में भवान्तर के शरीर को नहीं वोसिराने के कारण क्रिया लगती है। इस प्रकार सामान्यतया जीव पद में एक दण्डक और नैरयिक आदि के २४ दण्डक ये कुल मिला कर २५ दण्डक हुए। फिर एक एक पद के चार-चार दण्डक (एक जीव, अनेक जीव, एक नैरयिक, अनेक नैरयिक) हुए। इस प्रकार कुल मिला कर २५x४ = १०० दण्डक हुए।
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