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नयचक्र
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व्यवहाररत्नत्रयसे परम्परा मोक्ष १७२ आत्मध्यानसे उत्पन्न हुई भेदभावना व्यवहारसे बन्ध, अतः उसकी गौणता १७३ कर्मजन्य ज्ञान ज्ञायकभाव नहीं है
१९९ वीतरागचारित्रके अभावमें सरागचारित्रकी
ध्यानप्रत्ययोंमें सुखप्रत्ययका स्वरूप
१९९ गौणता कैसे? १७४ सुखके चार भेद
१९९ शुद्धचारित्रके द्वारा शुभका नाश १७५ आत्मस्वरूपके अवलोकनकी प्रेरणा
२०० समयसारमें प्रतिपादित वीतरागचारित्र वाले
आत्मामें आचरण करनेका उपाय
२०० साधुकी आलोचना आदि विषकुम्भ १७६ सरागचारित्र जारप
सरागचारित्र और वीतरागचारित्रमें कथंचित शुभ-अशुभ कर्मोंके संवरके कारण १७६ अविनाभाव
२०१ ध्येय आत्माके ग्रहणका उपाय
१७७ चारित्रका फल और उसकी वृद्धि की भावना २०३ संवेदनके द्वारा आत्मध्यानका उपदेश १७८ विभावरूप स्वभावके अभावकी भावना २०३ संवित्तिका स्वरूप स्वामी और भेद १७९ सामान्य गुणकी प्रधानतासे भावना २०३ संवित्तिको सामग्री
१८. विपक्षी द्रव्यके स्वभावके अभाव रूपसे भावना २०४ ध्याता और ध्येयका सम्बन्ध तथा ध्येयके नाम १८. विशेषगणोंकी प्रधानतासे भावना
२०४ परम निज तत्त्व
१८१ सामान्य में विशेषोंकी उत्पत्ति और विनाशके कार्यसमयसार और कारणसमयसार १८२ सम्बन्धमें दृष्टान्त
२०४ कारणसमय ध्यानके योग्य १८३ परमार्थज्ञानरूप परिणतिका फल
२०५ कारणसमयसे कार्यसमयकी सिद्धिका समर्थन १८३ नयचक्रकी रचनामें हेतु
२०५ एक ही उपादान कार्य और कारण कैसे १८४ प्रकृतनयचक्र ग्रन्थकी उपयोगिता
२०६ अशुद्ध संवेदनसे बन्ध, शुद्ध संवेदनसे मोक्ष १८४ उसकी रचना कैसे हुई स्वसंवेदनज्ञान ही कारणसमयसाररूप
नयचक्रके कर्ता देवसेनगुरुको नमस्कार २०७ परिणामता है
१८७ दोहोंमें निबद्ध द्रव्यस्वभावप्रकाशको माइल्लऔदयिक आदि पांच भावोंके भेद १८७ धवलने गाथाबद्ध किया
२०७ औदयिक भावके इक्कीस और औपशमिकभावके
परिशिष्ट १ दो भेद
१८८ क्षायोपशमिक भावके अठारह भेद
१८८ आलापपद्धतिकी विषयसूची २०९-२२८ क्षायिकभावके नौ भेद
१८८ वीरभगवान्को नमस्कार करके गुण, स्वभाव निजपरमभावके श्रद्धानादिके बिना मूढ़
तथा पर्यायोंका कथन करनेकी प्रतिज्ञा २०९ अज्ञानी
१८९ अलापपद्धति शब्दका अर्थ पारिणामिकभाव ही ध्येय है
उसकी रचनाका उद्देश्य जीवका भाव ही संसार और मोक्षका हेतु १९१
द्रव्यके भेद और द्रव्यका लक्षण
२०९ अभेद और अनुपचरित स्वरूप ही निश्चय
द्रव्योंके दस सामान्यगुण
२१० निश्चय और व्यवहारसे ज्ञानका विषय १९२ द्रव्योंके सोलह विशेषगुण
२१० निश्चयष्टिसे मोक्षकी प्राप्ति व्यवहारके अनसरण- पर्यायका स्वरूप तथा भेद
२११ से बन्ध १९३ स्वभावपर्यायका स्वरूप
२११ निश्चयका लेप व्यवहार १९४ छह वृद्धियां, छह हानियाँ
२११ निश्चयकी आराधनाका फल और सामग्री १९४ विभावपर्यायके भेद
२१२ ज्ञानकी महत्ताका कथन
१९५ विभावद्रव्यव्यंजनपर्याय योगीका स्वरूप १९६ विभावगुण व्यंजनपर्याय
२१२ आत्मध्यानकी आन्तरिक सामग्री १९६ स्वभावद्रव्य व्यंजनपर्याय
२१२ लक्षणसे आत्माको ग्रहण करने का उपाय १९७ स्वभावगुण व्यंजनपर्याय
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