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द्रव्यस्वभावप्रकाशक
[ गा०७७
जीवपुद्गलयोर्विभावहेतुत्वं दर्शयति
भणिया जे विन्भावा जीवाणं तहय पोग्गलाणं च ।
कम्मेण य जीवाणं कालादो पोग्गले णेया॥७७॥ विभावस्वमानस्य स्वरूपं संबन्धप्रकारं फलं च गदति
मुत्ते खंधविहावो खंधो गुणणिद्धरुक्खजो भणिओ। तं पि य पडुच्च कालं तम्हा कालेण तस्स तं भणियं ॥७८॥
परिणत होता है। उसी परिणमनको आगमको भाषामें औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक भाव कहते हैं। और अध्यात्ममें उसीको शुद्धोपयोग या शुद्धात्माके अभिमुख परिणाम कहते हैं। यह परिणाम शुद्ध पारिणामिक भावरूप शुद्ध आत्मद्रव्यसे कथंचित् भिन्न है, क्योंकि भावनारूप है। किन्तु शुद्ध पारिणामिकभाव भावना रूप नहीं है। यदि वह शुद्ध पारिणामिकसे सर्वथा अभिन्न होता तो इस मोक्षके कारणभूत भावनारूप पर्यायका विनाश होनेपर शुद्ध पारिणामिक भावका भी विनाश प्राप्त होता है। किन्तु उसका कभी विनाश नहीं होता। अतः यह स्थिर हुआ कि शुद्ध पारिणामिक भावके विषयमें भावनारूप जो औपरामिक आदि तीन भाव हैं,वे समस्त रागादिसे रहित होनेसे मोक्षके कारण होते हैं, किन्तु शुद्ध पारिणामिक नहीं। शक्तिरूप मोक्ष तो शुद्ध पारिणामिकमें पहलेसे ही स्थित है। यहाँ व्यक्तिरूप मोक्षका विचार है। आगममें कहा है-'निष्क्रियः शद्धपारिणामिकः' निष्क्रियका अर्थ यह है कि बन्धकारणभूत जो रागादि परिणतिरूप क्रिया होती है, तद्रप वह नहीं होता। इसी तरह मोक्ष के कारणभूत जो शुद्ध भावना परिणतिरूप क्रिया है, उस रूप भी वह नहीं होता। इससे ज्ञात होता है कि शुद्ध पारिणामिक भाव ध्येयरूप होता है, ध्यानरूप नहीं होता क्योंकि ध्यान तो विनाशीक है।
जीव और पुद्गलमें विभावरूप परिणतिका कारण बतलाते हैं
जीवों तथा पुद्गलोंमें जो विभाव कहे हैं उनमेंसे जीवमें विभाव कर्मके निमित्तसे और पुद्गलमें कालके निमित्तसे जानने चाहिए ।।७७।।
इसीको स्पष्ट करते हुए आगे विभाव का स्वरूप, उसका कारण और उसका फल कहते हैं
पुद्गलका स्कन्धरूप परिणमन उसका विभाव है। और स्कन्धरूप परिणमन पुद्गल में पाये जानेवाले स्निग्ध और रूक्ष गुणके कारण कहा है। तथा वह परिणमन कालका निमित्त पाकर होता है, इसलिए कालके द्वारा पुद्गलका विभावरूप परिणाम कहा है ॥७८॥
-पुद्गल परमाणुके दो आदि प्रदेश नहीं होते, इसलिए उसे अप्रदेशी कहते हैं। किन्तु वह एक प्रदेशवाला होता है, इसलिए उसे प्रदेशमात्र कहते हैं । उसमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण पाये जाते हैं । यद्यपि परमाणु स्वभावसे बन्धरहित है, किन्तु उसमें पाये जानेवाले स्निग्ध और रूक्ष गुण बन्धके कारण हैं। उनके कारण वह दूसरे परमाणुके साथ बंध जाता है। यह बन्ध उसकी विभाव परिणति कही जाती है क्योंकि एक द्रव्यका दूसरे द्रव्यके साथ बन्ध दोनोंके स्वाभाविक रूपका घातक है। पुद्गल द्रव्य भी परिणामी है, क्योंकि परिणमन तो वस्तुका स्वभाव है।अतः परमाणुमें वर्तमान स्निग्ध और रूक्षगुणोंमें भी परिणमन होता रहता है और उसके कारण उन गुणों में एक गुणरूप जघन्य शक्तिसे लेकर दो-तीन आदि अविभाग प्रतिच्छेदके क्रमसे अनन्त अविभागी प्रतिच्छेदरूप शक्ति पर्यन्त वृद्धि होती रहती है। वे परमाणु यदि दो, चार या छह शक्तिरूप परिणत होते हैं तो उन्हें सम कहते हैं और यदि तीन,पांच या सात शक्तिरूप
१. पोग्गला अ.क० ख० मु०। "जीवा पोग्गलकाया सह सक्किरिया हवंति ण य सेसा। पुग्गल करणा जीवा खंधा खलु कालकरणा दु ॥९८॥-पञ्चास्ति। 'पुद्गलानां सक्रियत्वस्य बहिरङ्गसाधनं परिणामनिर्वर्तकः काल इति ते कालकरणाः।-अमृतचन्द्रटीका ।
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