Book Title: Naychakko
Author(s): Mailldhaval, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 266
________________ २१६ परिशिष्ट नैगमस्त्रेधा भूतभाविवर्तमानकालभेदात् । अतीते वर्तमानारोपणं यत्र स भूतनैगमो, यथा-अय दीपोत्सवदिने श्रीवर्द्धमानस्वामी मोक्षं गतः । भाविनि भूतवत् कथेनं यत्र स भाविनैगमो यथा, अर्हन् सिद्ध एव । कर्तुमारब्धमीषनिष्पन्नमन्निष्पन्नं वा वस्तु निष्पन्नवत्कथ्यते यत्र स वर्तमान नैगमो यथा-ओदनः पच्यते । इति नैगमस्त्रेधा। संग्रहो द्विविधः । सामान्यसंग्रहो यथा-सर्वाणि द्रव्याणि परस्परमविरोधीनि । विशेषसंग्रहो यथा-सर्वे जीवाः परस्परमविरोधिनः । इति संग्रहोऽपि द्वेधा। व्यवहारोऽपि द्वेधा। सामान्यसंग्रहभेदकव्यवहारो यथा-द्रव्याणि जीवाजीवाः । विशेषसंग्रहभेदकव्यवहारो यथा-जीवाः संसारिणो मुक्ताश्च । इति व्यवहारोऽपि द्वेधा । ऋर्जुसूत्रो द्विविधः । सूक्ष्म सूत्रो यथा--एकसमयावस्थायी पर्यायः । स्थूलर्जुसूत्रो यथामनुष्यादिपर्यायास्तदायुःप्रमाणकालं तिष्ठन्ति । इति ऋजुसूत्रोऽपि द्वेधा । नैगमनयके भूत, भावि और वर्तमानकालके भेदसे तीन भेद हैं । जहाँ अतीतमें वर्तमानका आरोप किया जाता है वह भूत नैगमनय है। जैसे--आज दीपावलीके दिन श्री भगवान् वर्द्धमान स्वामी मोक्ष गये थे। जहाँ भाविमें भूतकी तरह कथन किया जाता है वह भावि नैगमनय है। जैसे--अर्हन्त सिद्ध हो है ( अर्हन्तदशाके पश्चात् ही सिद्धदशा होती है। किन्तु इस कथनमें भावि सिद्ध दशाको भूतकी तरह कहा गया है)। कोई कार्य करना प्रारम्भ किया, वह कुछ हुआ या नहीं हुआ, किन्तु उसे निष्पन्न (हुए) की तरह जहाँ कहा जाता है उसे वर्तमान नैगमनय कहते हैं। जैसे भात पक रहा है ( पक जानेपर भात होता है । चावल पकाये जाते हैं। अभी वे पके नहीं हैं, फिर भी उनमें भातका आरोप करके अनिष्पन्न या किंचित निष्पन्नको ही निष्पन्नकी तरह कहा गया है ) इस तरह नैगमनयके तीन भेद हैं। संग्रहनयके दो भेद है । सामान्य संग्रहनय, जैसे-सब द्रव्य परस्परमें विरोधरहित हैं। विशेष संग्रह नय, जैसे-सब जीव परस्परमें विरोधरहित हैं । इस प्रकार संग्रहनय भी दो प्रकारका है । विशेषार्थ-सबका एक रूपसे संग्रह करनेवाला नय सामान्य संग्रहनय है और उसके किसी अन्तर्गत भेदका एक रूपसे संग्रह करनेवाला नय विशेष संग्रह नय है। जैसे-सब द्रव्योंको द्रव्यत्व सामान्यकी अपेक्षा एक रूपसे ग्रहण करना सामान्य संग्रहनयका विषय है और किसी एक द्रव्यके अवान्तर भेदोंको उस एक द्रव्य रूपसे संग्रह करनेवाला नय विशेष संग्रह नय है । व्यवहारनयके भी दो भेद हैं। एक सामान्य संग्रहका भेदक व्यवहारनय, जैसे द्रव्योंके जीव और अजीव द्रव्य ये दो भेद हैं । दूसरा विशेष संग्रहका भेदक व्यवहार नय, जैसे-जीवके भेद संसारी और मुक्तजीव होते हैं। इस प्रकार व्यवहार नयके भी दो भेद हैं । विशेषार्थ-संग्रह नयके द्वारा संगृहीत पदार्थोंके भेद-प्रभेद करनेवाले नयको व्यवहार नय कहते हैं । चूँकि संग्रहके दो भेद हैं, इसलिए उसका भेद करनेवाले व्यवहार नयके भी दो भेद हैं । ऋजुसूत्र नयके भी दो भेद है। एक सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय, जैसे-पर्याय एक समय तक रहती है.। दूसरा स्थूलऋजुसूत्रनय, जैसे- मनुष्य पर्याय मनुष्य की आयु पर्यन्त रहती है । इस प्रकार ऋजुसूत्रनयके भो दो भेद हैं। १. -अद्य दीपोत्सवपर्वणि महावीरस्वामिनो मोक्षं गताः घ०। २. -नं भावि- अ. आ. क० ख० ग०। ३. -'इति .."धा' नास्ति आ० घ. प्रत्याः। ४. द्वेधा आ० । अ० क० ख० ज० प्रतिषु 'संग्रहो द्विविधः' इति पदं नास्ति। ५. 'इति"धा' नास्ति आ. घ. प्रत्योः । ६. आ० क० ख० ज० प्रतिषु 'व्यवहारोऽपि द्वेधा' इति पदं नास्ति । ७. 'इति"द्वधा' नास्ति आ० घ० ज० प्रतिषु । ८. अ० क० ख० ग० ज० प्रतिषु 'ऋजुसूत्रो द्विविधः' इति पदं नास्ति । ९. 'इतिधा ' नास्ति आ० घ. प्रत्योः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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