Book Title: Naychakko
Author(s): Mailldhaval, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 312
________________ २६२ परिशिष्ट स्याच्छब्दादप्यनेकान्तसामान्यस्यावबोधने । शब्दान्तरप्रयोगोऽत्र विशेषप्रतिपत्तये ॥५५॥ जीवके अस्तित्वका प्रसंग आयेगा अर्थात जैसे जीव जीवत्व रूपसे है. वैसे ही पुदगलादिके अस्तित्व रूपसे मा उसके अस्तित्वका प्रसंग आयेगा, क्योंकि 'जीव है ही इस वाक्यसे ऐसा ही अर्थ निकलता है। यदि तुम कहोगे कि हम प्रकरण आदिसे जीवमें पुद्गल आदिके अस्तित्वको व्यावृत्ति. कर देंगे,तो उसे 'जीव है ही' इस वाक्यका शब्दार्थ तो नहीं मान सकते; क्योंकि इस वाक्यसे सुननेवालेको ऐसा बोध नहीं होता कि जीव अमुक रूपसे तो है और अमुक रूपसे नहीं है। शंका-जीवमें अस्तित्व सामान्य पाया जाता है। पुद्गल आदिका अस्तित्व तो सामान्य नहीं है विशेष है, अतः पुद्गल आदिके अस्तित्व विशेषको जीवमें प्राप्ति ही नहीं है। तब उसकी निवृत्ति के लिए 'स्यात्' पदका प्रयोग करना व्यर्थ है। समाधान-तब तो 'जीव है ही' इस वाक्यमें 'ही' लगाना व्यर्थ है। शंका-'ही' यह बतलानेके लिए लगाया गया है कि जीव स्वगत अस्तित्व विशेषसे ही 'अस्ति' है। समाधान-स्वगत अस्तित्व विशेषसे ही यदि जीव 'अस्ति' है, तो इसका मतलब हुआ कि परगत अस्तित्वसे जीव 'अस्ति' नहीं है। और तब 'जीव है हो' में ही लगाना व्यर्थ हो जाता है। और बिना 'ही' का वाक्य उचित नहीं है, क्योंकि केवल 'जीव है' कहनेसे तो उसके अस्तित्वकी तरह नास्तित्वका भी अनुषंग आता है । 'हो' का लगाना तो तभी सार्थक हो सकता है, जब सभी प्रकारसे जीवका अस्तित्व स्वीकार करके उसके नास्तित्वका निरास किया जाये; अन्यथा नहीं। किन्तु 'ही' के साथ जीव अस्तित्व सामान्यसे है, पुद्गलादिगत अस्तित्वविशेषसे नहीं है-इस प्रकारका बोध कराने के लिए तो 'स्यात' पदका प्रयोग करना आवश्यक है,क्योंकि उसीसे उक्त प्रकारके अर्थका द्योतन होता है। .. शंका-जो भी वस्तु 'सत्' है,वह स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभावसे ही सत् है ; अन्यसे नहीं, .क्योंकि दूसरोंका कोई प्रकरण ही नहीं है। समाधान-आपका उक्त कथन सत्य है, किन्तु विचारणीय यही है कि किस प्रकारके शब्दसे वैसा अर्थबोध हो सकता है। विचार करनेपर 'स्यात्' पदका प्रयोग ही आवश्यक प्रतीत होता है उसके बिना उक्त प्रकारका अर्थबोध नहीं हो सकता। अत: प्रत्येक वाक्यके साथ 'ही' की तरह ‘स्यात्' पदका भी प्रयोग करना चाहिए। यद्यपि केवल एक 'स्यात्' शब्दसे ही अनेकान्त सामान्यका ज्ञान हो जाता है, फिर भी यहाँ विशेषधर्मोका ज्ञान कराने के लिए अन्य शब्दोंका प्रयोग करना आवश्यक है। 'स्यात् 'शब्दके अनेकान्त आदि अनेक अर्थ हैं । इसपरसे किन्हींका कहना है कि स्यात्' शब्दसे ही जब अनेकान्तात्मक वस्तुका कथन हो जाता है, तो उसके साथमें 'जीव अस्ति एव' आदि शब्दोंका प्रयोग करना व्यर्थ है किन्तु यदि ऐसा कहनेवाले 'स्यात्' शब्दको अनेकान्त विशेषका वाचक मानकर प्रयोग करते हैं,तब तो उसके साथ अन्य शब्दोंका प्रयोग न करनेपर कोई आपत्ति नहीं है,क्योंकि 'स्यात' शब्दसे ही अन्य शब्दोंका बोध हो जाता है। किन्तु यदि अनेकान्त सामान्यके वाचक 'स्यात्' शब्दका वे प्रयोग करते हैं,तो 'जीव अस्ति एव' आदि शब्दोंका प्रयोग निरर्थक नहीं है। क्योंकि 'स्यात्' शब्दसे अनेकान्त सामान्यका बोध होनेपर भी विशेषका ज्ञान करानेके लिए विशेष शब्दोंका प्रयोग आवश्यक होता है। जैसे वृक्ष शब्दसे वृक्ष सामान्यका बोध होनेपर भी विशेपार्थीको आमका पेड़ या नीमका पेड़ आदि कहना होता है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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