Book Title: Naychakko
Author(s): Mailldhaval, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 314
________________ २६४ परिशिष्ट युक्ति हो है और न आगम ही है । प्रत्येक स्यादिस्त आदि वाक्य सकलका प्रतिपादक न होनेसे विकलादेश हैयह युक्ति समीचीन नहीं है, क्योंकि ऐसी स्थितिमें तो उन वाक्योंके समुदायको भी विकलादेशत्व का प्रसंग आता है । तथा सातों वाक्य मिलकर भी समस्त अर्थका प्रतिपादन नहीं कर सकते । समस्त श्रुत ही समस्त अर्थोंका कथन कर सकता है । शंका- उक्त सात वाक्योंका समुदाय ही तो सम्पूर्ण श्रुत है। उनसे भिन्न कोई अन्य श्रुत नहीं है । समाधान — तब तो एक, अनेक आदि सप्तभंगात्मक वाक्योंको अश्रुतपनेका प्रसंग आता है, क्योंकि सम्पूर्णश्रुतके अर्थका 'स्यादस्ति' आदि सात प्रकारके वाक्यसे प्रकाशन हो जाता है। अतः प्रकाशितको प्रकाशित करना अर्थ है । शंका-उसके द्वारा तो अस्तित्व आदि सात धर्मोका हो कथन होता है और एक अनेक आदि सात धर्मोका कथन एक, अनेक आदि विशेषधर्मरूप सात वाक्योंके द्वारा होता है। अतः व्यर्थ होनेसे उसे अश्रुतपनेका प्रसंग नहीं आता है ? समाधान-तब तो अनन्त धर्मात्मक वस्तुका कथन न करनेके कारण 'स्यादस्ति' आदि वाक्योंको सकलादेशीपना नहीं बन सकेगा । यदि अस्तित्व आदि सात धर्मोंको मुख्यतासे, शेष अनन्त सप्तभंगियों के विषयभूत अनन्त सात धर्मस्वरूप वस्तुका अभेदवृत्ति या अभेदोपचार के द्वारा कथन करनेसे अस्तित्व आदि सप्तभेदरूप वाक्यको सकलादेशी मानते हो, तो 'कथंचित् जीवादि वस्तु सत्स्वरूप हो है' यह वाक्य भी सकलादेशी हैं; क्योंकि यह एक वाक्य अस्तित्वधर्मकी मुख्यतासे शेष अनन्तधर्मात्मक वस्तुका कथन करता है । कथंचित् जीवादि वस्तु नास्ति स्वरूप ही हैं, यह दूसरा वाक्य नास्तित्वधर्मको मुख्यतासे शेष अनन्त धर्मात्मक वस्तुका कथन करता है । कथंचित् जीवादिवस्तु अवक्तव्य ही हैं, यह वाक्य अवक्तव्य धर्मकी मुख्यतासे शेष अनन्तधर्मात्मक वस्तुका कथन करता है । जीवादि वस्तु कथंचित् अस्ति नास्तिरूप ही हैं, यह वाक्य क्रमसे विवक्षित दोनों धर्मोकी मुख्यतासे शेष अनन्त धर्मात्मक वस्तुका कथन करता है । इसी तरह कथंचित् अस्ति अवक्तव्यकी मुख्यतासे पाचवाँ वाक्य, कथंचित् नास्ति अवक्तव्य धर्मकी मुख्यतासे छठा वाक्य तथा कथंचित् अस्ति नास्ति - अवक्तव्य धर्मकी मुख्यतासे सातवाँ वाक्य शेष अनन्त धर्मात्मक वस्तुका कथन करता है । अतः उक्त सातों वाक्यों में से प्रत्येक वाक्य सकलादेशी है । शंका- फिर तो प्रथम वाक्यसे ही सम्पूर्ण वस्तुका कथन हो जानेके कारण दूसरे आदि वाक्य निष्फल हैं ? समाधान - तब तो एक ही सप्तभंगीके द्वारा सम्पूर्ण वस्तुका कथन होनेसे अन्य सप्तभंगियाँ क्यों नहीं निष्फल कही जायेंगी ? शंका- एक सप्तभंगीके द्वारा प्रधानरूपसे अपने विषयभूत सात धर्मस्वरूप अर्थका ही कथन होता - है, अन्य सप्तभंगियाँ भी अपने-अपने विषयभूत अन्य अन्य सात धर्मोका कथन करती हैं, अतः वे निष्फल नहीं हैं । समाधान — तो प्रथम वाक्यके द्वारा अपने विषयभूत एक धर्मात्मक वस्तुका प्रधानरूपसे कथन किया जाता है । इसी तरह दूसरे आदि वाक्य भी अपने-अपने विषयभूत एक-एक धर्मात्मक वस्तुका कथन करते हैं, तब वे निष्फल क्यों हैं ? शंका- वस्तुका एक धर्मात्मकपना प्रधान कैसे हुआ ? समाधान- चूँकि शब्दके द्वारा वैसा ही कहा जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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