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द्रव्यस्वभावप्रकाशक
[गा०२८३
'गुणपज्जायालक्खणसहावणिक्खेवणयपमाणं च । जाणदि जदि सवियप्पं दव्वसहावं खु बुझेदि ॥२८३॥
इति निक्षेपाधिकारः। दर्शनज्ञानचारित्रस्वामिनो नमस्कृत्य दर्शनादीनां व्याख्यानार्थमाह
दसणणाणचरित्तं सम्मग परमं च जेहि उवलद्धं ।
पणविवि ते परमेट्टी वोच्छेहं णाणसणचरितं ॥२८४॥ ग्यवहारपरमार्थाभ्यां रत्नत्रयमेव मोक्षमार्गो न शुमाशुमावित्याह
दसणणाणचरित्तं मग्गं मोक्खस्स भणिय दुविहं पि ।
णहु सुहमसुहं होदि हु तं पि य बंधो हवे णियमा ॥२८५॥ विशेषार्थ-यथार्थ तत्त्वको जाने बिना यथार्थ तत्त्वका श्रद्धानरूप सम्यग्दर्शन नहीं हो सकता और सम्यग्दर्शनके बिना न सम्यक्ज्ञान हो सकता है और न सम्यक्चारित्र हो सकता है। तथा यथार्थ तत्त्वका ज्ञान निक्षेप,नय और प्रमाणके बिना नहीं हो सकता। इसलिए सबसे प्रथम निक्षेप,नय और प्रमाणके स्वरूपको जानना आवश्यक है। इसीसे इस ग्रन्थमें इन तीनोंका स्वरूप विस्तारसे बतलाया है। अतः उसका सम्यक् रीतिसे अध्ययन करना चाहिए।
यदि आप गुण, पर्याय, लक्षण, स्वभाव, निक्षेप, नय और प्रमाणको भेद सहित जानते हैं तो आप द्रव्यके स्वभावको समझ सकते हैं। अर्थात् द्रव्यके स्वभावको जाननेके लिए गुणपर्याय आदिका जानना आवश्यक है ॥२८३।।
इति निक्षेपाधिकार। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रके स्वामियोंको नमस्कार करके सम्यग्दर्शन आदिका स्वरूप कहते हैं
जिन्होंने उत्कृष्ट सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्रको प्राप्त कर लिया है अर्थात् क्षायिक सम्यक्त्व, केवलज्ञान और यथाख्यातचारित्रसे युक्त अर्हन्तपरमेष्ठीको और सिद्धपरमेष्ठीको नमस्कार करके मैं सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रके स्वरूपको कहूँगा ।।२८४।।
आगे कहते हैं-व्यवहार और परमार्थसे रत्नत्रय ही मोक्षका मार्ग है, शुभ और अशुभ नहीं
व्यवहार सम्यग्दर्शन, व्यवहारसम्यग्ज्ञान और व्यवहारचारित्र तथा निश्चय सम्यग्दर्शन, निश्चयसम्यग्ज्ञान और निश्चय सम्यक्चारित्रको मोक्षका मार्ग कहा है। शुभ और अशुभ भाव मोक्षके मार्ग नहीं हैं, उनसे तो नियमसे कर्मबन्ध होता है ।।२८५॥
विशेषार्थ-शास्त्रोंमें जो व्यवहार और निश्चयके भेदसे दो प्रकार मोक्षमार्ग कहा है, उसका ऐसा अभिप्राय नहीं है कि मोक्षके दो मार्ग हैं। मोक्षमार्ग तो एक ही रूप है, वह है रत्नत्रयरूप । सब आचार्योने ऐसा ही कहा है। यथा-सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ( तत्त्वार्थसूत्र )। 'समयसार कलशम आचार्य अमृतचन्द्रजीने कहा है-'एको मोक्षपथो य एष नियतो दृग्ज्ञप्तिवृत्तात्मकः'-दर्शन-ज्ञान-चारित्रस्वरूप यही एक मोक्षमार्ग है। उस मोक्षका कथन दो नयोंसे किया जाता है। यही आचार्यकल्प पं० टोडरमलजीने अपने मोक्षमार्ग प्रकाशक ( अ० ७ में ) कहा है- 'मोक्षमार्ग दो नहीं हैं। मोक्षमार्गका निरूपण दो प्रकार है, जहाँ सच्चे मोक्षमार्गको मोक्षमार्ग निरूपित किया जाय सो निश्चय मोक्षमार्ग है और जहाँ जो मोक्षमार्ग तो है नहीं, परन्तु मोक्षमार्गका निमित्त है व सहचारी है उसे उपचारसे मोक्षमार्ग कहा जाय वह व्यवहार मोक्षमार्ग है, क्योंकि निश्चय, व्यवहारका सर्वत्र ऐसा ही लक्षण है। सच्चा निरूपण सो निश्चय, उपचार निरूपण सो
१. गुणपज्जयाण लक्खण अ० मु० ज० । २. सम्मगुणपर अ. क० । ३. अविलुद्धं क.।
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