________________
-१३]
षोडश विशेषगुणानां नामान्याह-
नयचक्र
Jain Education International
दंसण सुह सत्ति रूवरस गंध फास गमणठिदी । गाहणमुत्तममुत्तं खु चेदणिदरं च ॥१३॥
दूसरे द्रव्यसे भिन्न है, अतः अन्यत्व भी सब द्रव्योंमें पाया जाता है । सभी द्रव्य अपनी-अपनी क्रियाको करने में स्वतन्त्र हैं, अतः कर्तृत्व भी साधारण है । एक विशिष्ट शक्तिवाले द्रव्यके द्वारा दूसरे द्रव्यकी सामर्थ्यको ग्रहण करना भोक्तृत्व है; जैसे आत्मा आहारादि द्रव्यकी शक्तिको खींचने के कारण भोक्ता कहा जाता 1 भोक्तृत्व भी साधारण है, विषद्रव्य अपनी शक्तिसे सबको विषरूप कर देता है। नमकके ढेर में जो गिर जाता है सब नमक हो जाता | पर्यायवत्त्व भी साधारण है, क्योंकि सभी द्रव्य पर्यायवाले हैं । आकाशके सिवाय सभी द्रव्यों में असर्वगतत्व पाया जाता है, अतः वह भी साधारण है। सभी द्रव्य अपनी-अपनी अनादि सन्तान बद्ध हैं, अतः वह भी साधारण है। सभी द्रव्य अपने नियत प्रदेशवाले हैं, अतः प्रदेशवत्त्व भी साधारण है। अरूपत्व भी पुद्गल के सिवाय शेष सब द्रव्योंमें पाया जाता है । द्रव्यदृष्टिसे सभी नित्य हैं, इसलिए नित्यत्व भी साधारण है । इस प्रकार अकलंकदेवने ये साधारण पारिणामिक भाव बतलाये हैं । मगर गुणमें और स्वभाव में अन्तर है । गुण तो स्वभावरूप होते हैं; किन्तु सभी स्वभाव गुणरूप नहीं होते हैं । इसलिए सामान्य गुणोंकी गणना में सबका ग्रहण नहीं किया है। आचार्य अमृतचन्द्रने प्रवचनसार गाथा २ । ३ की व्याख्यामें सामान्य गुण इस प्रकार बतलाये हैं- अस्तित्व, नास्तित्व, एकैत्व, अन्यत्व, द्रव्यत्व, पर्यायत्व, सर्वगतत्व, असर्वगतत्व, सप्रदेशत्व, अप्रदेशत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व, सक्रियत्व, अक्रियत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, कर्तृत्व, अकर्तृत्व, भोक्तृत्व, अभोक्तृत्व और अगुरुलघुत्व । इनमें भी गुण और स्वभावका भेद नहीं किया गया है । आलापपद्धति कर्ता देवसेनने गुणों और स्वभावोंको अलग-अलग गिनाया है । द्रव्यस्वभावप्रकाशके रचयिताने भी उन्हींका अनुसरण किया है। उक्त दस गुणोंमें अन्तके चार गुणोंको विशेष गुणोंमें भी गिनाया है । और ऐसा करनेका कारण भी ग्रन्थकारने आगे स्वयं स्पष्ट किया है । अमृतचन्द्रजीने भी मूर्तत्व, अमूर्तव और चेतनत्व, अचेतनत्वको साधारण गुणोंमें गिनाया है । इनमें से अमूर्तत्व तथा अचेतनत्व तो साधारण हैं। ही, किन्तु चेतनत्व और मूर्तत्व तो विशेष गुण हैं । वस्तुत्व और प्रमेयत्वका अमृतचन्द्रजीने नामोल्लेख नहीं किया है । जिस शक्तिके निमित्तसे द्रव्य कायम है और उसका कभी नाश नहीं होता, उसे अस्तित्व गुण कहते हैं । जिस शक्ति निमित्तसे द्रव्यमें अर्थक्रिया होती है, उसे वस्तुत्वगुण कहते हैं । जिस शक्तिके निमित्तसे द्रव्यमें सदा उत्पाद-व्यय होता रहता है, उसे द्रव्यत्व कहते हैं । जिस शक्तिके निमित्तसे द्रव्य किसी-न-किसीके ज्ञानका विषय होता है, उसे प्रमेयत्वगुण कहते हैं । जिस शक्तिके निमित्तसे एक द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप परिणमन नहीं करता और न एक गुण दूसरे गुणरूप परिणमन करता है तथा एक द्रव्यके गुण जुदे-जुदे नहीं होते, उसे अगुरुलघुत्रगुण कहते हैं । जिस शक्तिके निमित्तसे द्रव्यका कुछ-न-कुछ आकार होता है, उसे प्रदेशवत्व गुण कहते हैं । जिस शक्तिके निमित्त से जानना - देखनापना हो, उसे चेतनत्वगुण और जिस शक्तिके निमित्तसे जड़पना हो उसे अचेतनत्व गुण कहते हैं। जिस शक्तिके निमित्तसे रूपादिसे युक्त हो, उसे मूर्तत्वगुण और न हो उसे अमूर्तत्व गुण कहते हैं ।
आगे सोलह विशेष गुणोंके नाम बतलाते हैं
ज्ञान, दर्शन, सुख, वोर्य, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, गमनहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, वर्तनाहेतुत्व, अवगाहन हेतुत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व ये द्रव्योंके विशेष गुण हैं ॥ १३ ॥ मन्यत्वं द्रव्यत्वं पर्यायत्वं सर्वगतत्वमसर्वगतत्वं सप्रदेशत्वमप्रदेशत्वं मूर्तत्वममूर्तत्वं सक्रियत्वमक्रियत्वं चेतनत्वमचेतनत्वं कर्तृत्वमकर्तृत्वं भोक्तृत्वमभोक्तृत्वमगुरुलघुत्वं चेन्यादयः सामान्यगुणाः । - प्रव० सा०, २१३ आत्म० टी० | 'अस्तित्वं वस्तुत्वं द्रव्यत्वं प्रमेयत्वं अगुरुलघुत्वं प्रदेशत्वं चेतनत्वमचेतनत्वं मूर्तत्वममूर्तित्वं द्रव्याणां दश सामान्यगुणाः । —आलाप० ।
१. 'वण्ण रस गंध फासा विज्जते पोग्गलस्स सुहुमादो । पुढवीपरियंतस्स य सद्दो सो पोग्लोचित्ते आगा
७
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org