________________
द्रव्यस्वभावप्रकाशक
[गा०१४
ज्ञानादिविशेषगुणानां संभवद्भेदानाह
अट्ठ चदु णाणदंसणभेया सत्तिसुहस्स इह दो दो।
वण्ण रस पंच गंधा दो फासा अट्ठ णायव्वा ॥१४॥ षड्दव्येषु प्रत्येक संभवत्सामान्यविशेषगुणान्प्ररूपयति----
ऍक्कॅक्के अट्ठा सामण्णा हुति सव्वदध्वाणं ।
छज्जीवपोग्गलाणं इयराणं वि सेस तितिभेया ॥१५॥ आगे इन विशेष गुणोंके अवान्तर भेद बतलाते हैं
ज्ञानगुणके आठ भेद हैं, दर्शनगुणके चार भेद हैं। वीर्य और सुखके दो-दो भेद हैं। रूप या वर्णके पांच भेद हैं, रसके भी पाँच भेद हैं, गन्धके दो भेद हैं और स्पर्शके आठ भेद जानने चाहिए ॥१४॥
विशेषार्थ-ज्ञान गुणके आठ भेद है-~-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान । जो ज्ञान पाँच इन्द्रिय और मनसे उत्पन्न होता है, वह मतिज्ञान है। मतिज्ञानसे जाने हुए पदार्थका अवलम्बन लेकर जो विशेष ज्ञान होता है ,वह श्रुतज्ञान है । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी मर्यादाको लिये हुए मूर्त पदार्थको प्रत्यक्ष जाननेवाले ज्ञानको अवधिज्ञान कहते हैं.. अर्थके निमित्तसे होनेवाली मनकी पर्यायोंके
ज्ञानको मनःपर्यय ज्ञान कहते हैं। और इन्द्रिय, प्रकाश, मन आदिकी सहायताके बिना सब द्रव्योंकी सब पर्यायोंको प्रत्यक्ष जाननेवाले ज्ञानको केवलज्ञान कहते हैं । दर्शनके चार भेद हैं--चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन । चक्षुजन्य मतिज्ञानसे पहले होनेवाले दर्शनको चक्षुदर्शन कहते है। चक्षुके सिवाय अन्य इन्द्रियोंसे होनेवाले ज्ञानके पहले होनेवाले दर्शनको अचक्षदर्शन कहते हैं। अवधिज्ञानसे पहले होनेवाले दर्शनको अवधिदर्शन कहते हैं तथा केवलज्ञानके साथ होनेवाले दर्शनको केवलदर्शन कहते हैं। शक्ति या वीर्यके दो भेद है-क्षायिक वीर्य और क्षायोपशमिकवीर्य । जो वीर्यान्तरायके क्षयसे प्रकट होता है. वह क्षायिकवीर्य है और जो वीर्यान्तरायके क्षयोपशमसे प्रकट होता है, वह क्षायोपशमिक वीर्य है। इसी तरह सूखके भी दो भेद है-एक इन्द्रियजन्य सुख और दूसरा अतीन्द्रिय सुख। वणं य है-शुक्ल, कृष्ण, नील, लाल और हरा। रसके भी पाँच भेद है-चर्परा, कटुक, कसैला, खट्टा, मीठा । गन्धके दो भेद है-सुगन्ध और दुर्गन्ध । स्पर्शके आठ भेद है-कटोर, कोमल, भारी, हल्का, चिकना, रूखा, शीत और उष्ण । ये विशेष गुणोंके भेद हैं।
आगे छहों द्रव्योंमें पाये जानेवाले सामान्य और विशेष गुणोंको बतलाते हैं
सब द्रव्यों में से प्रत्येक द्रव्यमें आठ-आठ सामान्य गुण होते हैं तथा विशेष गुणोंमें-से जीव और पुद्गल द्रव्यमें छह-छह और शेष द्रव्योंमें तीन-तीन विशेष गुण होते हैं ॥१५॥
विशेषार्थ-प्रत्येक द्रव्यमें आठ-आठ सामान्य गुण होते हैं । सब सामान्य गुण ऊपर दस बतलाये हैं। उनमें से जीव द्रव्यमें अचेतनत्व और मूर्तत्व गुण नहीं है । पुद्गलद्रव्यमें चेतनत्व और अमूर्तत्व नहीं है। धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य और कालद्रव्यमें चेतनत्व और मूर्तत्व नहीं है। इस तरह दो-दो गुण कम होनेसे प्रत्येक द्रव्यमें आठ-आठ सामान्य गुण होते हैं। विशेष गुण सोलह बतलाये हैं। उनमें से जीवद्रव्यमें ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, चेतनत्व और अमूर्तत्व ये छह विशेष गुण हैं । पुद्गलद्रव्यमें रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, सस्सवगाहो धम्मदव्वस्स गमणहेतुत्तं । धम्मेदरदव्वस्स दु गुणो पुणो ठाणकारणदा ॥ कालस्स बट्टणा से गणोवओगो त्ति अप्पणो भणिदो। णेया संखेवादो गणा हि मुत्तिपहीणाणं ॥' प्रवच. गा० २, ४०-४२ । 'अवगाहहेतुत्वं गतिनिमित्तता स्थितिकारणत्वं वर्तनायतनत्वं रूपादिमत्ता चेतनत्वमित्यादयो विशेषगुणाः ।
-प्रवच० २१३ टी० आत्म०। 'ज्ञानदर्शनसुखवीर्याणि स्पर्शरसगन्धवर्णाः, गतिहेतुत्वं, स्थितिहेतुत्वमवगाहनाहेतुत्वं वर्तनाहेतुत्वं चेतनत्वमचेतनत्वं मूर्तत्वममूर्तत्वं द्रव्याणां षोडश विशेषगुणाः ।'-आलाप० । १. 'प्रत्येक जीवपुद्गलयोः षट् । इतरेषां प्रत्येकं त्रयो गुणा:'-- आलाप.। -तियभयो अ. क० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org