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द्रव्यस्वभावप्रकाशक
"नित्यैकान्तमतं यस्य तस्यानेकान्तता कथम् । 'अथानेकान्तता यस्य तस्यैकान्तमतं स्फुटम् ||१|| "
आगे ग्रन्थकार दृष्टान्तपूर्वक अनेकान्तका समर्थन करते हैं
द्रव्य विश्व स्वभाव है—अनेक रूप है, उसके एकदेश को ही देखकर मिथ्यादृष्टियोंने एक स्वभाव मान लिया है; जैसे कुछ जन्मान्धोंने हाथीको मान लिया था ॥ ५६ ॥
[ गा०५६
विशेषार्थ- - कुल जन्मसे अन्धे मनुष्य एक दिन शहर में से जाते थे। आगे मार्ग में हाथी खड़ा था । किसीने उनसे कहा - बचकर जाओ, आगे हाथी खड़ा है। यह सुनकर उन अन्धोंके मनमें हाथी को देखने की उत्कण्ठा हुई कि हाथी कैसा होता है ! अतः वे हाथीके पास जाकर उसके अंगोंको टटोलकर देखने लगे । किसी ने हाथीका पैर पकड़ा, तो किसीने सूँड़, किसीने पेट और किसीने पूँछ । उसके बाद वे सब अन्धे हाथी के स्वरूप के बारेमें अपनी-अपनी जानकारी बतलाने लगे । जिसने पैर देखे थे, वह बोला- हाथी तो स्तम्भ जैसा होता है । जिसने पेट पकड़ा था, वह बोला-ढोल सरीखा होता है । जिसने पूँछ पकड़ी थी, वह बोलालाठी सरीखा होता है । इस तरह सब अन्धे आपस में झगड़ने लगे और अपनी-अपनी ही बातको सच कहने लगे । उनको झगड़ता देखकर एक पुरुष उनके पास आया और उनसे झगड़ने का कारण जानकर बोलातुम सभी लोगों का कहना ठीक है । तुम सबने हाथी के एक-एक अंगको देखा है, पूरा हाथी नहीं देखा । यदि तुम सबकी बातों को जोड़ दिया जाये तो पूरा हाथी बन सकता है । हाथी के पैर स्तम्भ सरीखे हैं, उसका पेट ढोल सरीखा है, उसकी पूंछ लाठी सरीखी है । अतः हाथी ढोलकी तरह भी है, लाठोकी तरह भी है और स्तम्भ सरीखा भी किन्तु इनमें से एक ही बातको मानना गलत हैं । इसी तरह वस्तु नित्य भी
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है, अनित्य भी है, एक भी है, अनेक भी है, सत् भी है, असत् भी है । द्रव्यरूपसे नित्य है, एक है, सत् है, पर्यायरूपसे अनित्य है, अनेक है, असत् है । कोई वादी आकाशको नित्य और दीपकको क्षणिक कहते हैं, क्योंकि वे आकाशमें स्थिरता और दोपकमें क्षणिकता देखते हैं । किन्तु आकाश भी पर्याय दृष्टिसे अस्थिर है और जिन तत्त्वों से दीपक बना है, उन तत्त्वोंकी नित्यताकी दृष्टिसे दीपक भी नित्य है । अतः अनेकान्तात्मक वस्तुके केवल एक - एक धर्मको ही देखकर मिध्यादृष्टिवालोंने उसे एकरूप मान लिया है। यथार्थमें वस्तु अनेकवर्णात्मक है |
कहा भी है
जो नित्य एकान्तमतका अनुयायी है, उसके अनेकान्तता कैसे संभव है ! किन्तु जो अनेकान्तमतका अनुयायी है, वह स्पष्ट रूप से एकान्तमतानुयायी भी है ||
एक के हैं वे तो अनेकान्तमतानुयायी हो ही नहीं सकते अनुयायो अवश्य हैं क्योंकि एकान्तों के समूहका
इसका स्पष्ट रूप यह है जो एकको ही मानता है वह अनेकको माननेवाला कैसे हो सकता है किन्तु जो अनेकको मानता है वह एकको भी अवश्य मानता है क्योंकि एक-एक मिलकर ही अनेक होते बिना अनेक बन नहीं सकते । अतः जो एकान्तमतानुयायी किन्तु जो अनेकान्तमत के अनुयायी हैं वे एकान्तमत के भी नाम हो अनेकान्त है । किन्तु विशेषता इतनी है वे एकान्त यथार्थता के विरोधी नहीं हैं वे सब सापेक्ष होते हैं । एकान्त और अनेकान्त दोनों ही सम्यक् और मिथ्या के भेदसे दो प्रकारके होते हैं । एक धर्मका सर्वथा अवधारण करके अन्य धर्मोका निराकरण करनेवाला मिथ्या एकान्त है । और प्रमाणके द्वारा निरूपित वस्तु के एक देशको सयुक्ति ग्रहण करनेवाला सम्यक् एकान्त है । इसी तरह एक वस्तुमें युक्ति और आगमसे अविरुद्ध अनेक विरोधी धर्मोको ग्रहण करनेवाला सम्यगनेकान्त है तथा वस्तुको तत् अतत् आदि स्वभावसे शून्य कहकर उसमें अनेक धर्मोकी मिथ्या कल्पना करनेवाला वचनविलास मिथ्या अनेकान्त है । सम्यग् एकान्तको नय कहते हैं और सम्यक् अनेकान्तको प्रमाण कहते हैं । यदि अनेकान्तको अनेकान्त ही माना
१. अनेकान्तमतं यस्य अ० क० मु० ज० । अथानेकान्तमतं यस्य तस्यैकान्तं स्फुटम् ख० ।
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