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नयचक्र स्वभावानां युक्तिपथप्रस्थायित्वं, नामभेदं च दर्शयति
भावा णेयसहावा पमाणगहणेण होंति णिव्वत्ता।
ऍक्कसहावा वि पुणो ते चिय णयभेयगहणेण ।।५७॥ स्वमावा द्विविधाः सामान्या विशेषाश्च । तत्र सामान्यस्वभावानां नामान्याह
'अत्थि त्ति णस्थि णिच्चं अणिच्चमेगं अणेग भेदिदरं ।
भव्वाभव्वं परमं सामण्णं सव्वदव्वाणं ॥५॥ विशेषस्वमावानां नामान्याह
चेदणमचेदणं पि हु मुत्तममुत्तं च एगबहुदेसं ।
सुद्धासुद्धविभावं उवयरियं होइ कस्सेव ॥५९॥ जाये और एकान्तको न माना जाये तो सम्यग् एकान्तके अभावमें उनके समुदायरूप अनेकान्तका भी अभाव हो जाये । जैसे शाखा आदिके अभावमें वृक्षका अभाव हो जाता है।
आगे स्वभावोंको युक्तिसे सिद्ध करते हए उनके नाम बतलाते हैं
प्रमाणके द्वारा ग्रहण किये जानेपर पदार्थ अनेक स्वभाववाले सिद्ध होते हैं। और प्रमाणके भेद नयोंके द्वारा ग्रहण किये जानेपर वे हो पदार्थ एक स्वभाववाले प्रतीत होते हैं ।।५७॥
विशेषार्थ-अनेक धर्मात्मक वस्त प्रमाणका विषय है। और प्रमाणसे गहीत वस्तके एकदेशको ग्रहण करनेवाला नय है। अतः जब हम प्रमागके द्वारा वस्तुको जानते हैं तो उसमें अनेक स्वभावोंका बोध होता है और जब नयके द्वारा जानते हैं तो वस्तु के किसी एक स्वभावका बोध होता है। जैसे द्रव्यपर्यायात्मक वस्तु प्रमाणका विषय है। किन्तु जब हम उसी वस्तुको नयके द्वारा जानते हैं तो या तो उसके द्रव्यरूपकी ही प्रतीति होती है या पर्यायरूपकी ही प्रतीति होती है।
स्वभावके दो प्रकार हैं सामान्य और विशेष । पहले सामान्य स्वभावोंके नाम कहते हैं
अस्ति, नास्ति, नित्य-अनित्य, एक-अनेक, भेद-अभेद, भव्य-अभव्य और परमभाव ये ग्यारह सामान्य स्वभाव हैं जो सब द्रव्योंमें पाये जाते हैं ॥५८॥
विशेषार्थ-सभी पदार्थ स्वरूपसे सत् और अपने-से भिन्न अन्य सब पदार्थों के स्वरूपकी अपेक्षा असत् हैं अनः अस्ति और नास्ति स्वभाव सभी पदार्थों में पाया जाता है। सभी पदार्थ द्रव्यरूपसे नित्य एक और अभेदरूप है तथा पर्याय दृष्टिसे अनित्य अनेक और भेदरूप हैं। सभी जानते हैं कि द्रव्य एक और नित्य होता है तथा उसकी पर्यायें अनेक और अनित्य होती हैं । अथवा अनेक स्वभाववाला होनेसे अनेक है और गुण गुणी आदिके भेदसे भेदरूप है। जो आगे होनेके योग्य हो वह भव्य है और होने के योग्य न हो वह अभव्य है।सभी द्रव्य अपने-अपने अनुरूप ही परिणमन करते हैं और कभी भी पररूप परिणमन नहीं करते। अतः भव्य और अभव्य स्वभाव भी सभीमें पाया जाता है । सभी द्रव्य पारिणामिक भावप्रधान होनेसे परम स्वभाव हैं। जो भाव अन्य निरपेक्ष होता है उसे पारिणामिकभाव कहते हैं। इस तरह ये ग्यारह स्वभाव सामान्य हैं।
आगे विशेष स्वभावों के नाम गिनाते हैं
चेतन, अचेतन, मर्त, अमर्त, एकप्रदेशो. बहप्रदेशी. शद्ध. अशद विभाव और उपचरित.ये दस विशेष स्वभाव हैं, क्योंकि ये सभी द्रव्योंमें नहीं पाये जाते, किसी-किसीमें ही पाये जाते हैं ।।५९॥
१. 'स्वभावाः कथ्यन्ते । अस्तिस्वभावः, नास्तिस्वभावः, नित्यस्वभावः, अनित्यस्वभावः, एकस्वभावः, अनेकस्वभावः, भेदस्वभावः, अभेदस्वभावः, भव्यस्वभावः, अभव्यस्वभावः, परमस्वभाव:-द्रव्याणामेकादशसामान्यस्वभावाः ॥'-आलाप० । २. 'चेतनस्वभावः, अचेतनस्वभावः, मूर्तस्वभावः, अमूर्तस्वभावः, एकप्रदेशस्वभावः, अनेकप्रदेशस्वभावः, विभावस्वभावः, शुद्धस्वभावः, अशुद्धस्वभावः, उपचरितस्वभावः, एते द्रव्याणां दशविशेषस्वभावाः।-'आला..
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