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नयचक्र पर्यायद्वैविध्यं निदर्श्य जीवादिद्रव्येषु कस्क: पर्यायो भवतीत्याह
'सम्भावं खु विहावं दव्वाणं पज्जयं जिणुद्दिटुं।
सवेसिं च सहावं विभावं जीवपोग्गलाणं च ॥१८॥ द्रव्यगुणयोः स्वभावविभावापेक्षया पर्यायाणां चातुर्विध्यं निरूपयति
दव्वगुणाण सहावं पज्जायं तह विहावदो णेयं । जीवे जे वि सहावा ते वि विहावा हु कम्मकदा ॥१९॥
आगे पर्यायके दो भेदोंको बतलाकर जीवादि द्रव्योंमें कौन-कौन पर्याय होती है-यह कहते हैं
जिनेन्द्रदेवने द्रव्योंकी पर्याय स्वभाव और विभाव रूप कही है । सब द्रव्योंमें स्वभाव पर्याय होती है। केवल जीव और पुद्गल द्रव्यमें विभाव पर्याय होती है॥ १८ ॥
विशेषार्थ-वस्तुमें होनेवाले परिणमन या परिवर्तनको पर्याय कहते हैं । जहाँ वस्तु नित्य है वहाँ वह परिवर्तनशील भी है,यह ऊपर बतला आये हैं । अतः न तो द्रव्यके बिना पर्याय होती है और न पर्यायके बिना द्रव्य होता है। वह पर्याय दो प्रकारकी होती है-स्वभावपर्याय और विभावपर्याय। कुन्दकुन्द स्वामीने भी पर्यायके दो भेद किये हैं-एक स्व-परसापेक्ष और एक निरपेक्ष । स्व-पर सापेक्ष पर्यायका ही दूसरा नाम विभाव पर्याय है और निरपेक्ष पर्यायका दूसरा नाम स्वभाव पर्याय है। इन दो प्रकारको पर्यायोंमें-से स्वभाव पर्याय तो सभी द्रव्योंमें होती हैं। किन्तु विभाव पर्याय जीव और पुद्गलद्रव्यमें ही होती हैं । इन दोनों द्रव्योंमें एक वैभाविकी शक्ति होती है। उसके कारण दूसरे द्रव्यका सम्बन्ध होने पर इन दोनों द्रव्योंकी विभाव परिणति होती है। जैसे-जीवका पुद्गल कर्मों के साथ सम्बन्ध होने पर दोनोंकी विभाव परिणति होती है अतः जीवकी नर-नारक आदि पर्याय विभावपर्याय है और पुद्गल परमाणुओंकी कर्मरूप पर्याय भी विभाव पर्याय है। इस तरह विभाव पर्याय दो ही दृव्योंमें होती है। शेष द्रव्योंमें नहीं। __ आगे द्रव्य और गुणोंमें स्वभाव और विभावकी अपेक्षासे पर्यायोंके चार भेद बतलाते हैं
द्रव्य और गुणोंमें स्वभाव पर्याय और विभाव पर्याय जाननी चाहिए। जीवमें जो स्वभाव हैं,कर्मकृत होने से वे भी विभाव हो जाते हैं ॥ १९ ॥
विशेषार्थ-द्रव्य गुणात्मक है,ऐसा कुन्दकुन्दाचार्यने प्रवचनसार (गा० ९३) में कहा है। अर्थात् उन गुणोंका आत्मा ही द्रव्य है [द्रव्यसे गुणोंकी सत्ता जुदी नहीं है । व्यवहारमें ऐसा कहा जाता है कि द्रव्यमें गुण रहते हैं । किन्तु यथार्थ में द्रव्य गुणोंसे तन्मय है । गुणोंसे द्रव्यको सत्ता या द्रव्यसे गुणोंकी सत्ता पृथक् नहीं है। अतः गणात्मक द्रव्यमें होनेवाली पर्याय द्रव्यपर्याय और गणपर्यायके भेदसे दो प्र है। तथा द्रव्यपर्याय स्वभावपर्याय और विभावपर्यायके भेदसे दो प्रकारकी है। इसी तरह गुणपर्याय भी स्वभावपर्याय और विभावपर्यायके भेदसे दो प्रकारको है। यह पहले कह आये हैं जो पर्याय स्वपर सापेक्ष होती है उसे विभावपर्याय कहते हैं और विभावपर्याय केवल जीवद्रव्य और पदगलद्रव्यमें ही होती है। इन्हीं दोनों द्रव्योंके मेलसे यह संसारकी परिपाटी चल रही है। परमाणु पुद्गल द्रव्यकी स्वभावपर्याय है। और दो या तीन आदि परमाणुओंके संयोगसे उत्पन्न द्वघणुक, व्यणुक आदि पुद्गल द्रव्यकी विभावपर्याय हैं। इसी तरह मुक्तावस्था जीवकी स्वभावपर्याय है और जीव तथा पुद्गलके संयोगसे उत्पन्न हुई देव, मनुष्य आदि पर्याय जीवकी विभावपर्याय है । इसी तरह गुणोंमें भी समझ लेना चाहिए। समस्त द्रव्योंमें रहनेवाले अपने-अपने अगुरुलघु गुण द्वारा प्रति समय होनेवाली छह प्रकारको हानिवृद्धि रूप पर्याय स्वभाव गुणपर्याय है। तथा पुद्गलस्कन्धके रूपादि गुण और जीवके ज्ञानादि गुण जो पुद्गल के संयोगसे हीनाधिक रूप
१. 'पज्जाओ दुवियप्पो सपरावेक्खो य णिरवेक्खो,'-नियम. गा० १४ । २. जीवे जीवस-अ.मु. क० ख० ज० । 'णरणारयतिरियसुरा पज्जाया ते विहावमिदि भणिदा ॥ कम्मोपाधि विवज्जिय पज्जाया ते सहावमिदि भणिदा ॥ नियम. गा. १५।
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