Book Title: Kasaypahudam Part 09
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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[19] सम्यग्दृष्टि जीवके मात्र पुरुषवेदका ही बन्ध होता है और बन्धकालमें विध्यातसंक्रम सम्भव नहीं, इसलिए तो इसके विध्यातसंक्रमका विधान नहीं किया। यही बात क्रोधसंज्वलन आदि तीन प्रकृतियोंके विषयमें जान लेना चाहिए। तथा इन चारों प्रकृतियोंका अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमें भी बन्ध होता है, इसलिए इनके गुणसंक्रमका विधान नहीं किया । इनका उद्वेलनासंक्रम नहीं होता यह तो स्पष्ट ही है। इस प्रकार इन प्रकृतियोंके शेष दो संक्रम होते हैं यह स्पष्ट हो जाता है।
हास्य, रति, भय और जुगुप्सा इन प्रकृतियोंके अपने-अपने द्रव्यके असंख्यात भाग करके उनमेंसे बहुभाग सर्वसंक्रमका द्रव्य है। शेष एक भागके असंख्यात भाग करके उनमेंसे बहुभाग गुणसंक्रमका द्रव्य है और शेष एक भाग अधःप्रवृत्तसंक्रमका द्रव्य है। इन चारों प्रकृतियोंका श्राठवें गुणस्थानमें भी बन्ध होता है, इसलिए इनका भी विध्यातसंक्रम नहीं है, क्योंकि बन्धव्युच्छितिके बाद इनका-गुणसंक्रम होने लगता है। इनका उद्बलना संक्रम नहीं होता यह तो स्पष्ट ही है।
लोभसंज्वलनका मात्र अधःप्रवृत्तसंक्रम ही होता है, क्योंकि इसका एक तो नौवें गुणस्थानमें भी बन्ध होता है, दूसरे नौवें गुणस्थानमें अन्तरकरण क्रियाके बाद श्रानुपूर्वी संक्रम प्रारम्भ हो जाता है,
यह अपने उदयसे क्षयको प्राप्त होनेवाली प्रकृति है और चौथे यह उद्वेलना प्रकृति नहीं है, इसलिए इसके अन्य चारों संक्रमोंका निषेध कर मात्र अधःप्रवृत्तसंक्रमका विधान किया है। स्वोदयसे क्षयको तो सम्यक्त्व प्रकृति भी प्राप्त होती है पर उसमें जो गुणसंक्रम और सर्वसंक्रमका विधान किया है वह क्षपणाकी अपेक्षासे नहीं किया है। किन्तु उद्वेलनाके अन्तिम स्थितिकाण्डकका पतन होते समय उपान्त्य समय तक उद्लनासंक्रम न होकर गुणसंक्रम होता है और अन्तिम समयमें सर्वसंक्रम होता हैं, इस अपेक्षासे इस प्रकृतिके गुणसंक्रम और सर्वसंक्रम होनेका विधान किया है।
___ यह मोहनीयकी अट्ठाईस प्रकृतियों के पाँच संक्रमोंकी अपेक्षा भागाभागका विचार है। स्वामित्व आदि शेष अनुयोगद्वारों तथा भुजगार, पदनिक्षेप वृद्धि और स्थान इन अनुयोगद्वारोंका कथन विस्तारसे मूलमें किया ही है और इन अनुयोगद्वारों के विषयमें स्वतन्त्र वक्तव्य नहीं है, , इसलिए यहाँ पर अलगसे स्पष्टीकरण नहीं किया है।