Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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ग० २२] हिदिविहत्तीए उत्तरपयडिभुजगारसामित्तं
६२७. कुदो १ मिच्छत्तद्विदीए उपरि एगसमयं वड्डिद्ण पबद्ध मिच्छत्तहिदिभुज. गारस्स एगसमयकालुवलंभादो ।
* उक्कस्सेण चत्तारि समया ४।
२८. तं जहा--अद्धाक्खपण हिदिबंधे वड्डिदे भुजगारस्स एगो समयो । संकि. लेसक्खएण वड्डिण बद्धे विदियो समयो । एई दियस्स विग्गहं कादण पंचिंदिएसुप्पण्णपढमसमए असण्णिद्विदि बंधमाणस्स तदिओ समभो। सरीरं घेत्तण चउत्थसमए सण्णिहिदि बंधमाणस्स चउत्थो भुजगारसमओ।
२६. का अद्धा णाम ? हिदिबंधकालो। किं तस्स पमाणं । जह० एगसमओ, उक्त ० अंतोमुहत्तं । एदिस्से अद्धाए खओ विणासो अद्धाक्खो णाम । एगहिदिबंधकालो सव्वेसि जीवाणं समाणशरिणामो किण्ण होदि ? ण, अंतरंगकारणमेदेण सरिसत्ताणुव. वत्तीदो। एगजीवस्स सत्रकालमेगपमाणद्धाए द्विदिवंधो किण्ण होदि ?ण, अंतरंगकारणेसु दव्वादिसंबंधेण परियत्तमाणस्त एगम्मि चव अंतरंगकारणे सव्यकालमवहाणामावादो।
३०. को संकिलेसो णाम ? कोह-माण माया-लोहपरिणामविसेसो । ते किं सवासिं
६ २७. क्योंकि मिथ्यात्वकी स्थितिके ऊपर एक समय बढ़ाकर बन्ध करनेपर मिथ्यात्वकी भुजगार स्थितिविभक्तिका एक समय काल पाया जाता है ।
* उत्कृष्ट काल चार समय है ४ ।
६२८. उसका खुलासा इस प्रकार है- अद्धाक्षयसे स्थितिबन्धके बढ़ानेपर भुजगारका पहला समय होता है । संक्ल शक्षयसे स्थितिको बढ़ाकर बन्ध करने पर दूसरा भुजगार समय होता है। एकेन्द्रिय पर्यायसे विग्रह करके पंचेन्द्रियमें उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें असंज्ञीकी स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवके तीसरा भुजगारसमय होता है । शरीर ग्रहण करके चौथे समयमें संज्ञीकी स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवके चौथा भुजगार समय होता है।
$२६. शंका-अदा किसे कहते हैं ? समाधान-स्थितिबन्धके कालको अद्धा कहते हैं। शंका-उसका प्रमाण क्या है ? समाधान-जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त है। इस अद्धाके क्षय अर्थात् विनाशका नाम अद्धाक्षय है। शंका-सब जीवोंके एक स्थितिबन्धका काल समान परिणामवाला यों नहीं होता है ? समाधान- नहीं, क्योंकि अन्तरंग कारणमें भेद होनेसे उसमें समानता नहीं बन सकती है। शंका-एक जीव के सर्वदा स्थितिबन्ध एक समान कालवाला क्यों नहीं होता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि यह जीव अन्तरंग कारणोंमें द्रव्यादिकके सम्बन्धसे परिवर्तन करता रहता है, अतः उसका एक ही अन्तरंग कारणमें सर्वदा अवस्थान नहीं पाया जाता है।
६ ३०. शंका-संक्लश किसे कहते हैं ? समाधान .. क्रोध, मान, माया, और लोभरूप परिणामविशेषको संलश कहते हैं।
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