Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] वडिपरूवणा
१६७ गुणा । कुदो, तप्पाओग्गुव्वेल्लणकंडयमेतत्तादो। एवं सुकलेस्सिएसु । णवरि तिरि०. मणुस्सेसु सुक्कलेस्सिएसु सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं जहण्णमवट्ठाणं पि संभवदि।
$ २२२. अणुदिसादि जाव सबट्टसिद्धि त्ति अट्ठावीसपयडीणं णस्थि अप्पाबहुगं । एवमाहार०-आहारमिस्स०-अवगद०-अकसा० आभिणि०-सुद०-ओहि०मणपज०-संजद'. सामाइय-छेदो०-परिहार०-सुहुम०-जहाक्खाद०-संजदासंजद०-ओहिदंस०-सम्मादि०. खइय०-वेदय०-उवसम०-सासण-सम्मामि०दिहि ति। अभविय० छव्वीसं पयडीणं जहण्णवडि-हाणि-अवट्ठाणाणं णत्थि अप्पाबहुगं; समाणत्तादो । एवमप्पाबहुए समत्ते पदणिक्खेवाणुगमो समत्तो।
वड्डो * एत्तो वड्डी।
६ २२३. एत्तो पदणिक्खेवादो उवरि वड्ढेि भणामि त्ति भणिदं होदि । का वड्डी णाम ? पदणिक्खेवविसेसो वड्डी । तं जहा-पदणिक्खेवे उक्क० वड्डी उद्ध० हाणी उक्कस्समवट्ठाणं च परविदं ताणि च वडि-हाणि-अवट्ठाणाणि एगसरूवाणि ण होंति, अणेगसरूवाणि त्ति जण जाणावेदि तेण पदणिक्खेवविसेसो वड्डि ति घेत्तव्यं । सबसे थोड़ी है। इससे जघन्य वृद्धि असंख्यातगुणी है, क्योंकि उसका प्रमाण तत्प्रायोग्य उद्वतनकाण्डकमात्र है। इसी प्रकार शुक्ललेश्यावाले जीवोंमे जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्च और मनुष्य शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अवस्थान भी सम्भव है।
६ २२२. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंका अल्पबहुत्व नहीं है । इसी प्रकार आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदवाले, अकषायी, आभिनि बोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपरायिकसंयत, यथाख्यातसंयत, संयतासंयत, अवधिदर्शनी. सम्यग्दृष्टि. क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना । अभव्योंमें छब्बीस प्रकृतितियोंकी जघन्य वृद्धि, हानि और अवस्थान नहीं होनेसे अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि ये तीनों समान हैं। इस प्रकार अल्पबहुत्वके समाप्त होनेपर पदनिक्षेपानुगम समाप्त हुआ।
वृद्धि * अब यहां से वृद्धि का कथन करते हैं ।
२२३. इसके अर्थात पदनिक्षेपके अनन्तर अब वृद्धिका कथन करते हैं। यह इस सूत्रका तात्पर्य है।
शंका-वृद्धि किसे कहते हैं ?
समाधान--पदनिक्षेपविशेषको वृद्धि कहते हैं। खुलासा इस प्रकार है-पदनिक्षेपमें उत्कृष्ट वृद्धि, उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थानका कथन किया। किन्तु वे वृद्धि, हानि और अवस्थान एकरूप न होकर अनेकरूप हैं यह बात बँकि इससे जानी जाती है, अतः पदनिक्षेप विशेषको वृद्धि कहते हैं ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए।
१ ता• प्रतौ मणपज. [ संजदा ] संजद आ० प्रतौ मणपज० संजदासंजद० इति पाठः ।
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