Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 332
________________ गा० २२] विदिविहत्तीए वड्ढीए अप्पाबहुअं ३११ हाणिं कुणमाणजीवेहि । असंखे०भागवड्डिक० असंखे०गुणा । अवट्ठिदक० असंखे० गुणा । असंखे०भागहा० संखे०गुणा । अणंताणुबंधीणं सव्वत्थोवा अवत्तव्वकम्मंसिया। असंखे गुणहाणिक० संखे०गुणा । संखे०गुणहाणि-संखे गुणवड्डिक० दो वि सरिसा असंखे०गुणा । विसंजोयणाए संखे गुणहाणिकंडयजीवेहि हाणी विसेसाहिया त्ति किण्ण भणिदा ? ण, विदियादिपुढविणेरइएसु विसेसाहियत्तप्पसंगादो। ण च एवमुच्चारणाए, तत्थ तासिं सरिसत्तपरूवणादो। तत्थाहिप्पाओ जाणिय वत्तव्यो । संखे०भागहाणि-संखे०भागवड्डिकम्मंसिया दो वि सरिसा संखे०गुणा। उवरि मिच्छत्तभंगो। सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं मूलोधभंगो। ___ ५९४. कायजोगीसु सव्वकम्मसव्वपदाणं मूलोघभंगो। ओरालिकायजोगीसु मणजोगिभंगो। णवरि छब्बीसं पयडीणमसंखे०भागवढि० अणंतगुणा । ओरालियमिस्सकायजोगीसु सव्वत्थोवा संखे०गुणहाणिक० । संखे०भागहाणिक० संखे०गुणा । संखे०गुणवडिक० असंखे०गुणा । संखे०भागवडिक० संख०गुणा । असंख०भागवडिक० अणंतगुणा । अवहि० असंखे०गुणा । असंखे०भागहाणि० संख०गुणा । एदमप्पाबहुअं क्षपकश्रेणीमें मात्र संख्यातभागहानिको करनेवाले जीवोंकी अपेक्षा विशेष अधिक हैं। इनसे असंख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे अवस्थितकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी अपेक्षा अवक्तव्यकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे असंख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिकर्मवाले ये दोनों समान होते हुए भी असंख्यातगुणे हैं। शंका–विसंयोजनामें संख्यातगुणहानिकाण्डकवाले जीवोंकी अपेक्षा हानि विशेष अधिक है यह क्यों नहीं कहा ? समाधान नहीं, क्योंकि ऐसा कथन करनेसे दूसरी आदि पृथिवियोंके नारकियोंमें विशेषाधिकपनेका प्रसंग प्राप्त होता है। और ऐसा उच्चारणामें है नहीं, क्योंकि वहां उनकी समानताका कथन किया है । अतः अभिप्राय समझकर यहां कथन करना चाहिये । इनसे संख्यातभागहानि और संख्यातभागवृद्धिकर्मवाले ये दोनों समान होते हुए भी संख्यातगणे हैं। ऊपर मिथ्यात्वके समान भंग है। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व का भंग मूलोघके समान है। ___५९४. काययोगियोंमें सब कर्मों के सब पदोंका भंग मूलोघके समान है । औदारिककाययोगियोंका भंग मनोयोगी जीवोंके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें छब्बीस प्रकृतियोंकी अपेक्षा असंख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव अनन्तगुणे हैं । औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें संख्यातगुणहानिकर्मवाले जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे संख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातगुणवृद्धिकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे संख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागवृद्धिकर्मवाले जीव अनन्तगुणे हैं। इनसे अवस्थितकर्मवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इनसे असंख्यातभागहानिकर्मवाले जीव संख्यातगुणे हैं । यह अल्पबहुत्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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