Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] हिदिविहत्तीए द्विदिसंतकम्मट्ठाणपरूवणा
३३३ ६६३५. के. मेत्तेण १ कोघोदएण खवगसेढिं चडिदस्स दुसमयूणदोआवलियपरिहीणलोभवेदगद्धामेत्तेण ।
* अणंताणुपंधीणं चदुण्हं हिदिसंतकम्मट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ।
६६३६. कुदो, अढकसायप्पहुडि जाव लोभसंजलणं ति ताव एदेसिं कम्माणं खवणकालादो अणंताणुबंधिविसंजोयणकालस्स संखेजगुणत्तादो। संखेजगुणत्तं कुदो णव्वदे ? हिदिसंतकम्मट्ठाणाणं थोवबहुतजाणावणटं परूविदअद्धप्पाबहुअसुत्तादो।
* मिच्छत्तस्स हिदिसतकम्मठाणाणि विसेसाहियाणि । ___६६३७. कुदो ? किंचूणसागरोवमचत्तारिसत्तभागेहि ऊणचत्तालीससागरोवमकोडाकोडिमेत्तअणंताणुबंधिचउक्कढिदिसंतकम्मट्ठाणाणमुवरि सागरोवमतिण्णिसत्तभागेहि ऊणतीसंसागरोवमकोडाकोडीमेत्तहिदिसंतकम्महाणेहि अहियत्तवलंभादो।
* सम्मत्तस्स हिदिसतकम्मट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ।
६३८. के. मेत्तेण ? एइंदियाणं मिच्छत्तजहण्णहिदीए दंसणमोहक्खवणाए लद्धमिच्छत्त जहण्णहिदिसंतकम्मट्ठाणेहि ऊणाए अंतोमुहुत्तब्भहियसम्मत्तचरिमुव्वेल्लणजहण्णफालिं मिच्छत्ते खविदे सम्मत्तेण लट्ठाणेहि परिहीणमवणिदे जत्तिया समया
$ ६३५. शंका-कितने अधिक हैं ?
समाधान—क्रोधके उदयसे क्षपक श्रेणीपर चढ़े हुए जीवके दो समय कम आवलि हीन लोभवेदकालप्रमाण अधिक हैं।
* इनसे अनन्तानुबन्धीचतुष्कके स्थितिसत्कर्म स्थान विशेष अधिक हैं।
$ ६३६. क्योंकि आठ कषायोंसे लेकर लोभसंज्वलनतक इन कर्मोंके क्षपणाकालसे अनन्तानुबन्धीका विसंयोजनाकाल संख्यातगुणा है।
शंका-वह संख्यातगुणा है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-स्थितिसत्कर्मस्थानोंके अल्पबहुत्वके ज्ञान कराने के लिये कहे गये काल सम्बन्धी अल्पबहुत्व विषयक सूत्रसे जाना जाता है।
इनसे मिथ्यात्वके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक हैं। ६६३७. क्योंकि एक सागरके सात भागोंमेंसे कुछ कम चार भाग कम चालीस कोडाकोड़ी सागरप्रमाण अनन्तानुबन्धी चतुष्कके स्थितिसत्कर्मस्थानोंके ऊपर एक सागरके सात भागोंमेंसे तीन भाग कम तीस कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण स्थितिसत्कर्म अधिक पाये जाते हैं।
ॐ इनसे सम्यक्त्वके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक हैं। ६६३८. शंका-कितने अधिक हैं ?
समाधान-दर्शनमोहकी क्षपणाके समय जो मिथ्यात्वके स्थितिसत्कर्मस्थान प्राप्त होते हैं उन्हें एकेन्द्रियों सम्बन्धी मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिमेंसे कम करके जो शेष बचे उनमेंसे मिथ्यात्वके क्षय होनेपर सम्यक्त्वके साथ प्राप्त होनेवाले स्थानोंसे हीन अन्तर्मुहूर्त अधिक सम्यक्त्वकी अन्तिम उद्वेलना फालिको कम करके जितने समय शेष रहें उतने स्थितिसत्कर्मस्थान होते हैं।
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