Book Title: Kasaypahudam Part 04
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 355
________________ अयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ हिदिविहती ३ तत्तियमेतद्विदिसंत कम्मट्ठाणेहि । मिच्छत्तचरिमफालीदो सम्मत्तस्सुव्वेल्लणाए जा चरिमफाली सा किं सरिसा विसेसाहिया संखेजगुणा असंखे० गुणा वा ? (असंखेअगुणा ति त्थ एलाइरियवच्छयस्स णिच्छओ । कुदो १ मिच्छत्तचरिमफालीदो असंखे०गुणअणंताणुवंधिविसंजोयणाचरिमफालीदो वि सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमुव्वेल्ल णाचरिमफालीए असंखे० गुणत्तस्स डिदिसंकमप्पा बहुअत्तसिद्धाद * सम्मामिच्छत्तस्स हिदिस तकम्मट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ९ ६३९. केत्तियमेत्तेण ? सादिरेयसम्मामिच्छत्तचरिमुव्वेल्ल णफालीए ऊणसम्मत्तचरिमुव्वेल्ल फालिमेत्तेण । संपहि द्विदिसंतकम्मे भण्णमाणे विदियाए पुढवीए सम्मत्तचरिमुव्वेल्लणकंडयादो सम्मामिच्छत्तचरिमुव्वेल्लणकंडयं विसेसाहियमिदि भणिदं । तदो पुव्वावर विरोहेण दूसियाणं ण दोन्हं पि सुत्तट्ठमिदि १ ण एस दोसो, इहत्तादो । किंतु जवसहाइरिएण उवलद्धा वे उवएसा । सम्मत्तचरिमफालीदो सम्मामिच्छत्तचरिमफाली असंखे० गुणहोणा त्ति एगो उवएसो । अवरेगो सम्मामिच्छ तचरिमफाली तत्तो विसेसाहिया ति । एत्थ एदेसिं दोन्हं पि उवएसाणं णिच्छयं काउमसमत्थेण जइवसहाइरिएण एगो एत्थ विलिहिदो अवरेगो ट्ठिदिसंकमे । तेणेदे वे वि उवदेसा थप्पं काढूण वत्तव्वात्ति । ३३४ शंका – सम्यक्त्वकी उद्वेलनाको जो अन्तिम फालि है वह मिध्यात्वकी अन्तिम फालिके क्या समान है या विशेष अधिक है या संख्यातगुणी है या असंख्यातगुणी है ? समाधान — असंख्यातगुणी है, इस प्रकार इस विषय में एलाचार्य के शिष्य हमारा निश्चय है, क्योंकि मिथ्यात्वकी अन्तिम फालिसे अनन्तानुबन्धी विसंयोजनाकी अन्तिम फालि असंख्यातगुणी है । तथा उससे भी सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनाकी अन्तिम फालि असंख्यातगुणी है यह बात स्थितिसत्कर्मके अल्पबहुत्व विषयक सूत्र से सिद्ध है । * इनसे सम्यग्मिथ्यात्व के स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक हैं । ९६३९. शंका — कितने अधिक हैं । समाधान-साधिक सम्यग्मिथ्यात्वकी अन्तिम उद्वेलनाफालिमेंसे सम्यक्त्वकी अन्तिम उद्वेलन फालिको घटा देनेपर जितना शेष रहे तत्प्रमाण स्थितिसत्कर्मस्थान अधिक हैं । शंका- स्थितिसत्कर्मका कथन करते समय दूसरी पृथिवीमें सम्यक्त्वके अन्तिम उद्वेलनाकाण्डकसे सम्यग्मिथ्यात्वका अन्तिम उद्वेलनाकाण्डक विशेष अधिक है ऐसा कहा है, अतः पूर्वापरविरोधसे दूषित होनेके कारण दोनोंका ही सूत्रत्व नहीं बनता ?. समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि यह बात हमें इष्ट है । किन्तु यतिवृषभ आचार्यको दो उपदेश प्राप्त हुए । सम्यक्त्वकी अन्तिम फालिसे सम्यग्मिथ्यात्वकी अन्तिम फालि असंख्यातगुणी हीन है यह पहला उपदेश है । तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी अन्तिम फालि उससे विशेष अधिक है यह दूसरा उपदेश है । यहाँ इन दोनों ही उपदेशोंका निश्चय करनेमें असमर्थ यतिवृषभ आचार्यने एक उपदेश यहाँ लिखा और एक उपदेश स्थितिसंक्रम में लिखा, अतः इन दोनों ही उपदेशोंको स्थगित करके कथन करना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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